(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒महाभारत
ग्रन्थको घरमें रखना अथवा पढ़ना चाहिये या नहीं ?
स्वामीजी‒कोई हर्ज नहीं है । सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने घरमें ही महाभारतको पढ़ा है,
संक्षिप्त किया है और प्रेसमें छपवाया है । यह मेरे सामनेकी
बात है । इससे कोई हानि नहीं होती । अमावस्या,
पूर्णिमा आदिके दिन महाभारतको पढ़नेका माहात्म्य बताया गया है
। आपको वहम हो तो पहले शान्तिपर्व और अनुशासनपर्व पढ़ो,
फिर शुरूसे महाभारत पढ़ो ।[1]
जैसे हम प्यासे मर रहे हैं और गंगाजी भी पासमें है,
पर हम गंगाजीतक जायँ ही नहीं,
उसका जल पीयें ही नहीं तो गंगाजी क्या करे ?
ऐसे ही अनेक विलक्षण महात्मा हुए हैं,
भगवान्के अनेक अवतार हुए हैं,
पर हमारी मुक्ति नहीं हुई तो इसका कारण यह था कि हमने चेत नहीं
किया । इसलिये अपना उद्धार करनेके लिये आपको चेत करनेकी आवश्यकता
है । संसारके पदार्थ प्रारब्धसे मिलते हैं,
पर परमात्माकी प्राप्ति नया काम है,
जिसको आप कर सकते हैं । यह काम अपने-आप होनेवाला नहीं है,
प्रत्युत लगनसे होनेवाला है । लगन नहीं होगी तो अच्छे महात्मा
मिलनेपर भी आप लाभ नहीं ले सकोगे । यदि एक दिन भी आप सावधान
होकर भगवान्में मन लगाओ तो वह दिन वर्षभरमें आपको अलग दीखेगा !
अभी सत्संग मिला है तो इससे लाभ ले लो । ऐसा मत सोचो कि यह अवसर
सदा रहेगा । जैसे सावनमें हरी-हरी घास होती है तो गधा समझता है कि यह सदा रहेगी,
पर यह सदा नहीं रहेगी,
ऐसे ही सत्संगका यह मौका सदा नहीं रहेगा ।
मौका चूक जाय तो फिर नहीं मिलता । इसलिये मौका मिल जाय तो जल्दी
लाभ ले लो । लोग रुपयोंसे लाभ समझते हैं, पर रुपयोंसे लाभ नहीं होता,
रुपयोंको सेवामें लगानेसे लाभ होता है । आपके पास रुपये हैं
तो उनके द्वारा सेवा करके लाभ ले लो । दुःखी मिले तो सेवा करके लाभ ले लो । सत्संग
मिले तो सत्संग करके लाभ ले लो । नींद आये तो सो जाओ,
नींद न आये तो भजन करो । रातमें नींद खुल जाय तो भजन करनेमें
लग जाओ, अच्छी पुस्तकें पढ़नेमें लग जाओ । इस तरह हरदम सावधान रहो;
‘हे नाथ ! हे नाथ !!’ पुकारो । हरदम भगवान्से कहते रहो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । आप लाभ उठाओ तो आपके द्वारा दूसरोंको भी लाभ होगा । जैसे सिगरेट पीनेवाला कइयोंको सिगरेट पीना सिखा देता है, ऐसे
ही भजन करनेवाला कइयोंको भजनमें लगा देता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
अथवा भारतं गेहे न तं वै बाधते कलिः ॥
(स्कन्दपुराण, वैष्णव॰ वैशाख॰ २२ । ९६)
‘मानद ! जिसके घरमें शालग्राम शिला अथवा महाभारतकी पुस्तक हो, उसे कलियुग बाधा नहीं दे सकता ।’
|