।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, रविवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

भरोसो जाहि दूसरो सो करो ।
मोको तो रामको नाम कलपतरु कलि कल्यान करो ॥ १ ॥
करम, उपासन, ग्यान, बेदमत, सो सब भाँति खरो ।
मोहि तो सावनके अंधहि’ ज्यों सूझत रंग हरो ॥ २ ॥
चाटत रह्यो स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो ।
सो हौं सुमिरत नाम-सुधारस पेखत परूसि धरो ॥ ३ ॥
स्वारथ औ परमारथ हू को नहिं कुंजरो-नरो ।
सुनियत सेतु पयोधि पषाननि करि कपि-कटक तरो ॥ ४ ॥
प्रीति-प्रतीति जहाँ जाकी, तहँ ताको काज सरो ।
मेरे तो माय-बाप दोउ आखर, हौं सिसु-अरनि अरो ॥ ५ ॥
संकर साखि जो राखि कहौं कछु तौ जरि जीह गरो ।
अपनो भलो राम-नामहि ते तुलसिहि समुझि परो ॥ ६ ॥
(विनय-पत्रिका, पद २२६)

जिसे दूसरेका भरोसा हो, वह भले ही करे, पर मेरे तो यह रामनाम ही कल्पवृक्ष है । अन्तमें कहते हैं‒मेरे तो माय-बाप दोउ आखर’‒मेरे तो माँ-बाप ये दोनों अक्षर र’ और म’ हैं । मैं तो इनके आगे बच्चेकी तरह अड़ रहा हूँ । यदि मैं कुछ भी छिपाकर कहता होऊँ तो भगवान् शंकर साक्षी हैं; मेरी जीभ जलकर या गलकर गिर जाय । गवाही देनेवालेसे कहा जाता है कि सच्चा-सच्चा कहते हो न ? तो गंगाजल उठाओ सिरपर !’ ऐसे भगवान् शंकर जो गंगाको हर समय सिरपर अपनी जटामें धारण किये हुए रहते हैं, उनकी साक्षीमें कहता हूँ । वे कहते हैं तुलसीदासको तो यही समझमें आया कि अपना कल्याण एक रामनामसे ही हो सकता है । इस प्रकार रामनाम लेनेसे लोक-परलोक दोनों सुधर जाते हैं । कितनी बढ़िया बात है !

नहि कलि करम न भगति बिबेकू ।
राम   नाम    अवलंबन      एकू ॥
कालनेमि  कलि   कपट   निधानू ।
नाम   सुमति  समरथ    हनुमानू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । ७-८)

वेदोंमें तीन काण्ड हैं‒कर्मकाण्ड उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड । इसलिये कहते हैं कि कलियुगमें कर्मका भी सांगोपांग अनुष्ठान नहीं कर सकते, भक्तिका भी सांगोपांग अनुष्ठान नहीं कर सकते और ग्यान पंथ कृपान कै धारा’ वह तो कड़ा है ही, कर ही नहीं सकते । तो कहते हैं एक  रामनाम ही अवलम्बन है उसके लिये ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे