।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७२, सोमवार
एकादशी-व्रत कल है
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

यह कलियुग महाराज कालनेमि राक्षस है, कपटका खजाना है और नाम महाराज हनुमान्‌जी हैं । हनुमान्‌जी संजीवनी लेनेके लिये जा रहे थे । रास्तेमें प्यास लग गयी । मार्गमें कालनेमि तपस्वी बना हुआ बड़ी सुन्दर जगह आश्रम बनाकर बैठ गया । रावणने यह सुन लिया था कि हनुमान्‌जी संजीवनी लाने जा रहे हैं और संजीवनी सूर्योदयसे पहले दे देंगे तब तो लक्ष्मण जी जायगा और नहीं तो मर जायगा । इसलिये किसी तरहसे हनुमान्‌को रोकना चाहिये । कालनेमिने कहा कि मैं रोक लूँगा ।’ वह तपस्वी बनकर बैठ गया । हनुमान्‌जीने साधु देखकर उसे नमस्कार किया । तुम कैसे आये हो ? महाराज ! प्यास लग गयी ।’ तो बाबाजी कमण्डलुका जल देने लगा । इतने जलसे मेरी तृप्ति नहीं होगी ।’ अच्छा, जाओ, सरोवरमें पी आओ ।’ वहाँ गये तो मकड़ीने पैर पकड़ लिया, उसका उद्धार किया । उसने सारी बात बतायी कि महाराज ! यह
कालनेमि राक्षस है और आपको कपट करके ठगनेके लिये बैठा है ।’ हनुमान्‌जी लौटकर आये तो वह बोला‒‘लो भाई, आओ ! दीक्षा दें तुम्हारेको ।’ हनुमान्‌जीने कहा‒महाराज, पहले गुरुदक्षिणा तो ले लीजिये ।’ पूँछमें लपेटकर ऐसा पछाड़ा कि प्राणमुक्त कर दिये । कलियुग कपटका खजाना है । जो नाम महाराजका आश्रय ले लेता है, वह कपटमें नहीं आता ।

राम  नाम   नरकेसरी    कनककसिपु   कलिकाल ।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७)

राम नाम नृसिंह भगवान हैं । कलियुग महाराज हिरण्यकशिपु है और जापक जन’भजन करनेवाले प्रह्लादके समान हैं । जैसे भगवान् नृसिंहने प्रह्लादकी हिरण्यकशिपुको मारकर रक्षा की थी, ऐसे भक्तोंकी रक्षा कलियुगसे नाम महाराज करते हैं । जिमि पालिहि दलि सुरसाल’ यह रामनाम देवताओंके शत्रु राक्षसोंको (कलियुगको) मारकर भजन करनेवालोंकी रक्षा करनेवाला है ।

भायँ  कुभायँ   अनख  आलसहूँ ।
नाम जपत  मंगल  दिसि  दसहूँ ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा ।
करउँ  नाइ   रघुनाथहिं  माथा ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २८ । १-२)

भावसे, कुभावसे, क्रोधसे या आलस्यसे, किसी तरहसे नाम जपनेसे दसों दिशाओंमें मंगल-ही-मंगल होता है । तुलसीदासजी महाराज कहते हैं‒ऐसे जो नाम महाराज हैं, उनका स्मरण करके और रघुनाथजी महाराजको नमस्कार करके मैं रामजीके गुणोंका वर्णन करता हूँ । प्रकरण आरम्भ किया तो बंदउँ नाम राम रघुबर को’ नाम-वन्दनासे आरम्भ किया और प्रकरणकी समाप्तिमें भी रामजीकी वन्दना करते हैं । नाम-वन्दना और नाम-महिमा करनेके बाद रामजीके गुण और रामचरितकी महिमा कहते हैं । अपनेको ऐसा नाम मिल गया, बड़ी मौजकी बात है । इसमें सबका अधिकार है ।

जाट भजो गूजर भजो  भावे भजो अहीर ।
तुलसी रघुबर नाममें  सब काहू का सीर ॥
राम दड़ी चौड़े पड़ी सब कोई खेलो आय ।
दावा नहीं सन्तदास     जीते सो ले जाय ॥

इसलिये नाम लेकर मालामाल हो जाओ, चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय राम राम राम राम..... ।

कबिरा सब जग  निर्धना   धनवता  नहिं  कोय ।
धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे