(गत ब्लॉगसे आगेका)
यह कलियुग महाराज कालनेमि राक्षस है,
कपटका खजाना है और नाम महाराज हनुमान्जी हैं । हनुमान्जी संजीवनी
लेनेके लिये जा रहे थे । रास्तेमें प्यास लग गयी । मार्गमें कालनेमि तपस्वी बना हुआ
बड़ी सुन्दर जगह आश्रम बनाकर बैठ गया । रावणने यह सुन लिया था कि हनुमान्जी संजीवनी
लाने जा रहे हैं और संजीवनी सूर्योदयसे पहले दे देंगे तब तो लक्ष्मण जी जायगा और नहीं
तो मर जायगा । इसलिये किसी तरहसे हनुमान्को रोकना चाहिये । कालनेमिने कहा कि ‘मैं रोक लूँगा ।’ वह तपस्वी बनकर बैठ गया । हनुमान्जीने साधु देखकर उसे नमस्कार
किया । ‘तुम कैसे आये हो ?’ ‘महाराज ! प्यास लग गयी ।’
तो बाबाजी कमण्डलुका जल देने लगा । ‘इतने जलसे मेरी तृप्ति नहीं होगी ।’
‘अच्छा, जाओ, सरोवरमें पी आओ ।’ वहाँ गये तो मकड़ीने पैर पकड़ लिया,
उसका उद्धार किया । उसने सारी बात बतायी कि ‘महाराज ! यह
कालनेमि राक्षस है और आपको कपट करके ठगनेके लिये बैठा है ।’
हनुमान्जी लौटकर आये तो वह बोला‒‘लो भाई,
आओ ! दीक्षा दें तुम्हारेको ।’
हनुमान्जीने कहा‒‘महाराज, पहले गुरुदक्षिणा तो ले लीजिये ।’
पूँछमें लपेटकर ऐसा पछाड़ा कि प्राणमुक्त कर दिये । कलियुग कपटका खजाना है । जो नाम महाराजका आश्रय ले लेता है, वह
कपटमें नहीं आता ।
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल ।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७)
राम नाम नृसिंह भगवान हैं । कलियुग महाराज हिरण्यकशिपु है और
‘जापक जन’‒भजन करनेवाले प्रह्लादके समान हैं । जैसे भगवान् नृसिंहने प्रह्लादकी
हिरण्यकशिपुको मारकर रक्षा की थी, ऐसे भक्तोंकी रक्षा कलियुगसे नाम महाराज करते हैं । ‘जिमि
पालिहि दलि सुरसाल’ यह ‘राम’ नाम देवताओंके शत्रु राक्षसोंको (कलियुगको) मारकर भजन करनेवालोंकी
रक्षा करनेवाला है ।
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा ।
करउँ नाइ रघुनाथहिं माथा ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २८ । १-२)
भावसे, कुभावसे, क्रोधसे या आलस्यसे,
किसी तरहसे नाम जपनेसे दसों दिशाओंमें मंगल-ही-मंगल होता है
। तुलसीदासजी महाराज कहते हैं‒ऐसे जो नाम महाराज हैं,
उनका स्मरण करके और रघुनाथजी महाराजको नमस्कार करके मैं रामजीके
गुणोंका वर्णन करता हूँ । प्रकरण आरम्भ किया तो ‘बंदउँ
नाम राम रघुबर को’ नाम-वन्दनासे आरम्भ किया और प्रकरणकी समाप्तिमें भी रामजीकी
वन्दना करते हैं । नाम-वन्दना और नाम-महिमा करनेके बाद रामजीके गुण और रामचरितकी महिमा
कहते हैं । अपनेको ऐसा नाम मिल गया, बड़ी मौजकी बात है । इसमें सबका अधिकार है ।
जाट भजो गूजर भजो भावे
भजो अहीर ।
तुलसी रघुबर नाममें सब काहू का सीर ॥
राम दड़ी चौड़े पड़ी सब कोई खेलो आय ।
दावा नहीं सन्तदास जीते सो ले जाय ॥
इसलिये नाम लेकर मालामाल हो जाओ, चलते-फिरते, उठते-बैठते
हर समय राम राम राम राम..... ।
कबिरा सब जग निर्धना धनवता नहिं कोय ।
धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!!
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
|