बड़े अच्छे-अच्छे महापुरुष हुए हैं और उन्होंने कहा है‒‘भैया
! भगवान्का नाम लो ।’ असम्भव सम्भव हो जाय । लोगोंने ऐसा करके देखा है । असम्भव बात
भी सम्भव हो जाती है । जो नहीं होनेवाली है वह भी हो जाती है । जिनके ऐसी बीती है उम्रमें,
उन लोगोंने कहा है । ऐसी असम्भव बात सम्भव हो जाय,
न होनेवाली हो जाय । इसमें क्या आश्चर्य है ?
क्योंकि ‘कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ
ईश्वरः’ ईश्वर करनेमें, न करनेमें, अन्यथा करनेमें समर्थ होता है । वह ईश्वर वशमें हो जाय अर्थात्
भगवान् भगवन्नाम लेनेवालेके वशमें हो जाते हैं ।
नाम महाराजसे क्या नहीं हो सकता ?
ऐसा कुछ है ही नहीं,
जो न हो सके अर्थात् सब कुछ हो सकता है । भगवान्का नाम लेनेसे
ऐसे लाभ होता है बड़ा भारी । नामसे बड़े-बड़े असाध्य रोग मिट गये हैं,
बड़े-बड़े उपद्रव मिट गये हैं,
भूत-प्रेत-पिशाच आदिके उपद्रव मिट गये हैं । भगवान्का नाम लेनेवाले
सन्तोंके दर्शनमात्रसे अनेक प्रेतोंका उद्धार हो गया । भगवान्का नाम लेनेवाले पुरुषोंके
संगसे, उनकी कृपासे अनेक जीवोंका उद्धार हो गया है ।
सज्जनो ! आप विचार करें तो यह बात प्रत्यक्ष दीखेगी कि जिन देशोंमें
सन्त-महात्मा घूमते हैं, जिन गाँवोंमें, जिन प्रान्तोंमें सन्त रहते हैं और जिन गाँवोंमें सन्तोंने भगवान्के
नामका प्रचार किया है, वे गाँव आज विलक्षण हैं दूसरे गाँवोंसे । जिन गाँवोंमें सौ-दो-सौ
वर्षोंसे कोई सन्त नहीं गया है, वे गाँव ऐसे ही पड़े हैं अर्थात् वहांके लोगोंकी भूत-प्रेत-जैसी
दशा है । भगवान्का नाम लेनेवाले पुरुष जहाँ घूमे हैं,
पवित्रता आ गयी, विलक्षणता आ गयी, अलौकिकता आ गयी । वे गाँव सुधर गये,
घर सुधर गये, वहाँके व्यक्ति सुधर गये,
उनको होश आ गया । वे स्वयं भी कहते हैं,
हम मामूली थे पर भगवान्का नाम मिला,
सन्त मिल गये तो हम मालामाल हो गये ।
१९९३ वि॰ सं॰ में हमलोग तीर्थयात्रामें गये थे तो काठियावाड़में एक भाई मिला
। उसने हमको पाँच-सात वर्षोंकी उम्र बतायी । अरे भाई ! तुम इतने बड़े दीखते हो,
तो क्या बात है ? उस भाईने कहा‒मैं सात वर्षोंसे ही ‘कल्याण’
मासिक पत्रका ग्राहक हूँ । जबसे इधर रुचि हुई,
तबसे ही मैं अपनेको मनुष्य मानता हूँ । पहलेकी उम्रको मैं मनुष्य
मानता ही नहीं, मनुष्यके लायक काम नहीं किया । उद्दण्ड, उच्छृंखल होते रहे ।
तो बोलो, कितना विलक्षण लाभ होता है ?
‘तीर्थयात्रा-ट्रेन गीताप्रेसकी है’‒ऐसा सुनते तो लोग परिक्रमा करते । जहाँ गाड़ी खड़ी रहती,
वहाँके लोग कीर्तन करते और स्टेशनों-स्टेशनोंपर कीर्तन होता
कि आज तीर्थयात्राकी गाड़ी आनेवाली है ।
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