शास्त्रों, सन्तों आदिने जो भगवन्नामकी महिमा गायी है,
यदि वह इकट्ठी की जाय तो महाभारतसे बड़ा पोथा बन जाय । इतनी महिमा
गायी है फिर भी इसका अन्त नहीं है । फिर भी उनकी निन्दा करे और नामसे लाभ लेना चाहे
तो कैसे होगा ?
जिन गुरु महाराजसे हमें नाम मिला है,
यदि उनका निरादर करेंगे,
तिरस्कार करेंगे तो नाम महाराज रुष्ट हो जायेंगे । कोई कहते
हैं कि हमने गुरु किये पर वे ठीक नहीं निकले । ऐसी बात भी हो जाय तो मैं एक बात कहता
हूँ कि आप उनको छोड़ दो भले ही, परन्तु निन्दा मत करो ।
गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः ।
उत्पथप्रतिपन्नस्य परित्यागो विधीयते ॥
ऐसा विधान आता है । इस वास्ते गुरुको छोड़ दो और नाम-जप करो ।
भगवान्के नामका जप तो करो, पर गुरुकी निन्दा मत करो । जिससे कुछ भी पाया है पारमार्थिक
बातें ली हैं, जिससे लाभ हुआ है, भगवान्की तरफ रुचि हुई है,
चेत हुआ है, होश हुआ है, उसकी निन्दा मत करो ।
‘नाम्न्यर्थवादभ्रमः’‒(७) नाममें अर्थवादका भ्रम है । यह महिमा बढ़ा-चढ़ाकर कही है; इतनी
महिमा थोडी है नामकी ! नाममात्रसे कल्याण कैसे हो जायगा ? ऐसा
भ्रम न करें; क्योंकि भगवान्का नाम लेनेसे कल्याण हो जायगा । नाममें खुद
भगवान् विराजमान हैं । मनुष्य नींद लेता है तो नाम लेते ही सुबोध होता है अर्थात् किसीको
नींद आयी हुई है तो उसका नाम लेकर पुकारो तो वह नींदमें सुन लेगा । नींदमें सम्पूर्ण
इन्द्रियाँ मनमें, मन बुद्धिमें और बुद्धि अविद्यामें लीन हुई रहती है‒ऐसी जगह
भी नाममें विलक्षण शक्ति है । ‘शब्दशक्तेरचिन्त्यत्वात्’ शब्दमें अपार,
असीम, अचिन्त्य शक्ति मानी है । नींदमें सोता हुआ जग जाय । अनादि कालसे
सोया हुआ जीव सन्त-महात्माओंके वचनोंसे जग जाता है,
उसको होश आ जाता है । जिस बेहोशीमें अनन्त जन्म बीत गये । लाखों-करोड़ों
वर्ष बीत गये । ऐसे नींदमें सोता हुआ भी, शब्दमें इतनी अलौकिक विलक्षण शक्ति है,
जिससे वह जाग्रत् हो जाय,
अविद्या मिट जाय, अज्ञान मिट जाय । ऐसे उपदेशसे विचित्र हो जाय आदमी ।
यह तो देखनेमें आता है । सत्संग सुननेसे आदमीमें परिवर्तन आता
है । उसके भावोंमें महान् परिवर्तन हो जाता है । पहले उसमें क्या-क्या इच्छाएँ थीं,
उसकी क्या दशा थी, किधर वृत्ति थी, क्या काम करता था ? और अब क्या करता है ? इसका पता लग जायगा । इस वास्ते शब्दमें
अचिन्त्य शक्ति है ।
नाममें अर्थवादकी कल्पना करना कि नामकी महिमा झूठी गा दी है,
लोगोंकी रुचि करनेके लिये यह धोखा दिया है । थोड़ा ठंडे दिमागसे
सोचो कि सन्त-महात्मा भी धोखा देंगे तो तुम्हारे कल्याणकी,
हितकी बात कौन कहेगा ?
|