भगवान् शंकर और विष्णु इन दोनोंका आपसमें बड़ा प्रेम है । गुणोंके
कारणसे देखा जाय तो भगवान् विष्णुका सफेद रूप होना चाहिये और भगवान् शंकरका काला रूप
होना चाहिये; परन्तु भगवान् विष्णुका श्याम वर्ण है और भगवान् शंकरका गौर
वर्ण है, बात क्या है । भगवान् शंकर ध्यान करते हैं भगवान् विष्णुका और
भगवान् विष्णु ध्यान करते हैं भगवान् शंकरका । ध्यान करते हुए दोनोंका रंग बदल गया
। विष्णु तो श्यामरूप हो गये और शंकर गौर वर्णवाले हो गये‒‘कर्पूरगौरं करुणावतारम् ।’
अपने ललाटपर भगवान् रामके धनुषका तिलक करते हैं शंकर और शंकरके
त्रिशूलका तिलक करते हैं रामजी । ये दोनों आपसमें एक-एकके इष्ट हैं । इस वास्ते इनमें
भेद-बुद्धि करना, तिरस्कार करना, अपमान करना बड़ी गलती है । इससे भगवन्नाम महाराज रुष्ट हो जायँगे
। इस वास्ते भाई, भगवान्के नामसे लाभ लेना चाहते हो तो भगवान् विष्णुमें और शंकरमें
भेद मत करो ।
कई लोग बड़ी-बड़ी भेद-बुद्धि करते हैं । जो भगवान् कृष्णके भक्त
हैं, भगवान् विष्णुके भक्त हैं, वे कहते हैं कि हम शंकरका दर्शन ही नहीं करेंगे । यह गलतीकी
बात है । अपने तो दोनोंका आदर करना है । दोनों एक ही हैं । ये दो रूपसे प्रकट होते
हैं‒‘सेवक स्वामि सखा सिय पी के ।’
‘अश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिराम्’‒वेद,
शास्त्र और सन्त-महापुरुषोंके वचनोंमें अश्रद्धा
करना अपराध है ।
(४) जब हम नाम-जप करते हैं तो हमारे लिये वेदोंके पठन-पाठनकी
क्या आवश्यकता है ? वैदिक कर्मोंकी क्या आवश्यकता है । इस प्रकार वेदोंपर अश्रद्धा
करना नामापराध है ।
(५) शास्त्रोंने बहुत कुछ कहा है । कोई शास्त्र कुछ कहता है तो
कोई कुछ कहता है । उनकी आपसमें सम्मति नहीं मिलती । ऐसे शास्त्रोंको पढ़नेसे क्या फायदा
है ? उनको पढ़ना तो नाहक वाद-विवादमें पड़ना है । इस वास्ते नाम-प्रेमीको शास्त्रोंका
पठन-पाठन नहीं करना चाहिये, इस प्रकार शास्त्रोंमें अश्रद्धा करना नामापराध है ।
(६) जब हम नाम-जप करते हैं तो गुरु-सेवा करनेकी क्या आवश्यकता
है ? गुरुकी आज्ञापालन करनेकी क्या जरूरत है ?
नाम-जप इतना कमजोर है क्या ?
नाम-जपको गुरु-सेवा आदिसे बल मिलता है क्या ?
नाम-जप उनके सहारे है क्या ?
नाम-जपमें इतनी सामर्थ्य नहीं है जो कि गुरुकी सेवा करनी पड़े
? सहारा लेना पड़े ? इस प्रकार गुरुमें अश्रद्धा करना नामापराध है ।
वेदोंमें अश्रद्धा करनेवालेपर भी नाम महाराज प्रसन्न नहीं होते
। वे तो श्रुति हैं, सबकी माँ-बाप हैं । सबको रास्ता बतानेवाली हैं । इस वास्ते वेदोंमें
अश्रद्धा न करे । ऐसे शास्त्रोंमें-पुराण,
शास्त्र, इतिहासमें भी अश्रद्धा न करे,
तिरस्कार-अपमान न करे । सबका आदर करे । शास्त्रोंमें,
पुराणोंमें, वेदोंमें, सन्तोंकी वाणीमें, भगवान्के नामकी महिमा भरी पड़ी है ।
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