।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण पंचमी, वि.सं. २०७५ गुरुवार
दस नामापराध



भगवान् शंकर और विष्णु इन दोनोंका आपसमें बड़ा प्रेम है । गुणोंके कारणसे देखा जाय तो भगवान् विष्णुका सफेद रूप होना चाहिये और भगवान् शंकरका काला रूप होना चाहिये; परन्तु भगवान् विष्णुका श्याम वर्ण है और भगवान् शंकरका गौर वर्ण है, बात क्या है । भगवान् शंकर ध्यान करते हैं भगवान् विष्णुका और भगवान् विष्णु ध्यान करते हैं भगवान् शंकरका । ध्यान करते हुए दोनोंका रंग बदल गया । विष्णु तो श्यामरूप हो गये और शंकर गौर वर्णवाले हो गये‒‘कर्पूरगौरं करुणावतारम् ।’

अपने ललाटपर भगवान् रामके धनुषका तिलक करते हैं शंकर और शंकरके त्रिशूलका तिलक करते हैं रामजी । ये दोनों आपसमें एक-एकके इष्ट हैं । इस वास्ते इनमें भेद-बुद्धि करना, तिरस्कार करना, अपमान करना बड़ी गलती है । इससे भगवन्नाम महाराज रुष्ट हो जायँगे । इस वास्ते भाई, भगवान्‌के नामसे लाभ लेना चाहते हो तो भगवान् विष्णुमें और शंकरमें भेद मत करो ।

कई लोग बड़ी-बड़ी भेद-बुद्धि करते हैं । जो भगवान् कृष्णके भक्त हैं, भगवान् विष्णुके भक्त हैं, वे कहते हैं कि हम शंकरका दर्शन ही नहीं करेंगे । यह गलतीकी बात है । अपने तो दोनोंका आदर करना है । दोनों एक ही हैं । ये दो रूपसे प्रकट होते हैं‒‘सेवक स्वामि सखा सिय पी के ।’

‘अश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिराम्’वेद, शास्त्र और सन्त-महापुरुषोंके वचनोंमें अश्रद्धा करना अपराध है ।

(४) जब हम नाम-जप करते हैं तो हमारे लिये वेदोंके पठन-पाठनकी क्या आवश्यकता है ? वैदिक कर्मोंकी क्या आवश्यकता है । इस प्रकार वेदोंपर अश्रद्धा करना नामापराध है ।

(५) शास्त्रोंने बहुत कुछ कहा है । कोई शास्त्र कुछ कहता है तो कोई कुछ कहता है । उनकी आपसमें सम्मति नहीं मिलती । ऐसे शास्त्रोंको पढ़नेसे क्या फायदा है ? उनको पढ़ना तो नाहक वाद-विवादमें पड़ना है । इस वास्ते नाम-प्रेमीको शास्त्रोंका पठन-पाठन नहीं करना चाहिये, इस प्रकार शास्त्रोंमें अश्रद्धा करना नामापराध है ।

(६) जब हम नाम-जप करते हैं तो गुरु-सेवा करनेकी क्या आवश्यकता है ? गुरुकी आज्ञापालन करनेकी क्या जरूरत है ? नाम-जप इतना कमजोर है क्या ? नाम-जपको गुरु-सेवा आदिसे बल मिलता है क्या ? नाम-जप उनके सहारे है क्या ? नाम-जपमें इतनी सामर्थ्य नहीं है जो कि गुरुकी सेवा करनी पड़े ? सहारा लेना पड़े ? इस प्रकार गुरुमें अश्रद्धा करना नामापराध है ।


वेदोंमें अश्रद्धा करनेवालेपर भी नाम महाराज प्रसन्न नहीं होते । वे तो श्रुति हैं, सबकी माँ-बाप हैं । सबको रास्ता बतानेवाली हैं । इस वास्ते वेदोंमें अश्रद्धा न करे । ऐसे शास्त्रोंमें-पुराण, शास्त्र, इतिहासमें भी अश्रद्धा न करे, तिरस्कार-अपमान न करे । सबका आदर करे । शास्त्रोंमें, पुराणोंमें, वेदोंमें, सन्तोंकी वाणीमें, भगवान्‌के नामकी महिमा भरी पड़ी है ।