इसलिए आप अपने माता-पिताका, सास-ससुरका आदर करो,
सेवा करो, सत्कार करो तो आपका असर पड़ेगा
बालकोंपर । वृद्धावास्थामें भी आपकी सेवा करेंगे । परन्तु आप ऐसा नहीं
करोगे, अपने माइतोंकी सेवा नहीं करोगे तो
बालकोंपर भी ऐसा असर पड़ेगा । उनका स्वाभाव भी ऐसा ही बनेगा । आप सदा ही ऐसे नहीं रहोगे, जीते रहोगे तो बूढ़े भी
होओगे । उस समय वे सेवा नहीं करेंगे, फिर आप कहेंगे कि ये सेवा नहीं करते, बात
नहीं मानते । तो तुमने अपने माइतों-(बड़ों-) की सेवा कितनी की ? अब तुम क्यों आशा
रखो ? इसलिए अपना आचरण अच्छा बनाओ ।
आजकल तो
माँ-बाप बच्चोंको
व्यसन सिखाते हैं, खेल सिखाते हैं । चाय पिलाते है, छोटे-छोटे छोरोंको । आजकल छोरा दूध नहीं पी सकते, मलाई आ जाय तो घृणा करते हैं ।
बड़े आश्चर्यकी बात है ! हमें तो बचपनकी बात याद है, दूध पीना होतो कहते थे कि क्या
है इसमें, तारा (घीकी बूँदें) तो है ही नहीं ! आजकल घी तो कौन पी सके, हिम्मत ही
नहीं है । वे मलाई ही नहीं खा सकते, चाय पीते हैं । राम ! राम ! राम ! चायसे माथा खराब हो जाय, नींद आवे नहीं । स्वास्थ्य बिगड़ जाय,
आँखें खराब हो जायँ, दवाई लगे नहीं और पैसा लगे ज्यादा मुफ्तमें । यह दशा हो रही
है, तो भाई ! ऐसा मत करो । गायोंका पालन करो, उनकी रक्षा करो । आपका जो
गाँव है, क़स्बा है, अकाल पड़ जाय तो गायोंके लिये आप खर्च करो तो बड़ा अच्छा है । मोटर आप रख लेते हो धुएँके लिये और गायें
नहीं रख सकते । कुत्ता-पालन तो कर लेंगे, गौऊका पालन नहीं करेंगे । वाह ! वाह !
वाह ! रे कलियुग महाराज ! आपने लिया अजब दिखायी ! यह दशा हो रही है ।
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