गायका दूध पीते हैं, उसे छानते हैं कि कहीं रूआँ (बाल) न आ जाय । दूध तो
प्रसन्नतासे दिया जाता है, बाल टूटनेसे खून आता है खून । बाल आ जाय तो क्या हर्ज
है ? अरे रूआँ एक भी टूटेगा तो गौ माताको दुःख होगा । अतः दुःख देकर ली हुई चीज
बड़ी अनिष्टकारी होती है । लड़केवालोंको कहना चाहिये कि हम
धन नहीं लेंगे, हम तो केवल कन्या लेंगे । कन्या-दान लेते हैं, कन्या-दान लेना भी
तो दान है, बड़ा भारी दान है ! क्यों लेते हैं ? अभी हम लेंगे तो आगे भगवान् हमें
पुत्री देगें तो हम भी कन्या दान करेंगे । ऐसा रिवाज है कि दहेजकी चीजें
घरमें नहीं रखते, उसे कुटुम्बमें, परिवारमें लगा देते हैं । बेटीको, ब्राह्मणोंको,
सबको बाँट देते हैं । घरमें कोई चीज न रह जाय ऐसे मिठाई आदि बाँटते हैं । अपनेपर
तो कर्जा नहीं रहा और लोग सब राजी होते हैं ।
शादीके बाद बहूके पीहरसे कोई चीज आती है तो सास आदि उसकी निन्दा करती हैं कि
क्या चीज भेजी ? बहूरानी सुन रही है, उसको लगे बुरा । भला माँकी निन्दा किसीको
अच्छी लगेगी ? माँकी निन्दासे हृदयमें दुःख होता है । बादमें जब वह हो जायगी
मालिकन तो जो चाहेगी वही होगा । इसलिए उसे प्यार करो, स्नेह करो, राजी रखो, बहूके
घरसे जो आया उसमें अपने घरसे मिलाकर बाँटो । लोगोंसे कहो कि ऐसा बहुत आया है । तो बहूकी माँकी हो जायगी बड़ाई, इससे बहू खुश हो जायगी ।
आप कहेंगे कि रुपया लगता है, पर बीस-पचास रुपये और लगानेसे आदमी अपना हो जायगा ।
बहू आपकी हो जायगी । सदाके लिये खरीदी जायगी । सौ-पचास रुपएमें कोई आदमी ख़रीदा जाय
तो कोई महँगा है ? सस्ता ही पड़ेगा, गहरा विचार करो । व्यवहार भी अच्छा रहेगा,
प्रेम भी बढ़ेगा । बहू भी राजी होगी कि मेरी सासने मेरी माँकी महिमा की है । इतना
खर्च किया, उसका उम्रभर असर पड़ेगा; इसलिए भाई ! थोडा-सा त्याग करो, उसका फल बड़ा
अच्छा होगा ।
जो वस्तुएँ मिली हैं उनका सदुपयोग किया जाय । लड़के-लड़कीका
ठीक तरहसे पालन किया जाय, अच्छी शिक्षा दी जाय । उनके अच्छे भाव बनाये जायँ,
सद्गुणी और सदाचारी बनें । पैसे कमानेमें तो आपको समय रहता है, परन्तु बच्चे क्या कर रहे हैं, कैसे पल रहे हैं, क्या शिक्षा
पा रहे हैं, इन बातोंकी तरफ आप खयाल ही नहीं करते । अरे भाई ! यह सम्पत्ति है असली
। यह मनुष्य महान् हो जायगा
। कितनी बढ़िया बात होगी ! जितने-जितने महापुरुष हुए हैं,
उनकी माताएँ बड़ी श्रेष्ठ हुई हैं । ऐसी माताओंके बालक बढ़िया हुए हैं, संत-महात्मा
हुए हैं । माँका स्वभाव आता है बालकोंमें, इस कारण माताओंको चाहिये कि बालकोंको
अच्छी शिक्षा दें । परन्तु शिक्षा देती हैं उलटी, लड़कियोंको सिखाती हैं कि
अपना धन तो रखना अपने पासमें । जब अलग होगी तो वह धन तेरे पासमें रह जायगा और ऐसे
सिखाकर भेजती हैं कि ससुरालमें काम तू क्यों करे, तेरी जेठानी करे, ननद करे । तू
काम मत किया कर । अब वहाँ कलह होगी, खटपट मचेगी । आपके बहू आयेगी, वह भी अगर ऐसी
सीखी हुई आ जायगी तो वह भी ऐसा ही करेगी, काम नहीं करेगी । फिर आप कहेंगी कि हमारी
बहू काम नहीं करती । आप अच्छा करो तो आपके लिये अच्छा होगा । बुरा करो तो बुरा
होगा भाई !
कलियुग है इस हाथ दे, उस हाथ ले, क्या खूब सौदा नगद है ।
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