“ होहि राम को नाम जपु ”
अध्यात्मरामायणमें भगवान्
शंकर खुद रामजीसे कहते हैं‒‘भगवन् ! मैं भवानीके सहित काशीमें रहता हूँ । ‘मुमूर्षुमाणस्य दिशामि मन्त्रं तव रामनाम’ आपका जो
राम-नाम मन्त्र है उसका मैं दान देता हूँ मरनेवालेको कि ले लो भाई जिससे तुम्हारा
कल्याण हो जाय । एक सज्जन कहते थे, मैंने कई आदमियोंको
देखा है । काशीमें मरनेवालेका कान ऊँचा हो जाता है ! मानो शंकर इस कानमें मन्त्र
देते हैं । वह नाम अपने भी ले सकते हैं, कितनी मौजकी बात है ! कितना ऊँचा
नाम है ! जो भगवान् शंकरका इष्ट है, वह हम ले सकते हैं कलियुगी जीव ! कैसी कृपा
हो गयी, अलौकिक कृपा हो रही है । थोड़ी-सी बात है । नाम लेने लग जाय, ‘राम राम राम’
। सन्तोंने कहा है, ‘मुक्ति मुण्डे में थारे’ तेरे
मुँहमें मुक्ति पड़ी है । राम-राम लेकर निहाल हो जा तू । ऐसा सस्ता भगवान्का नाम ।
जपने लग जाओ, सीधी बात है । खुला भगवान्का नाम है । तिजोरियोंमें बन्द धनको तो आप
हिम्मत करके खुला लेते हैं । पर चौड़े (खुले) पड़े इस धनको लेते ही नहीं ।
राम दड़ी चौड़े पड़ी, सब कोई खेलो आय ।
दावा नहीं
सन्तदास जीते सो
ले जाय ॥
जो चाहे सो ले जाय, कैसी बढ़िया बात ! कितनी उत्तम बात !
सबके लिये खुला है । किसीके लिये मनाही नहीं, ऐसा भगवान्का नाम तत्परतासे लिया
जाय, उत्साहपूर्वक, प्रेमसे, अपने प्रभुका समझ करके ।
सन्तोंने कहा‒परलोकमें नाम लेनेवाले और नाम न लेनेवाले
दोनों रोते हैं । क्यों ? नाम लेनेवाले रोते हैं कि इस बातका पता नहीं था कि नामकी
इतनी महिमा निकलेगी । यह पता होता तो रात-दिन नाम लेते । नाम न लेनेवाले रोते हैं
कि हमरा समय खाली चला गया । भाई, अब अपनेको पता लग गया । मरनेके बाद पश्चात्ताप
करोगे तब क्या होगा ? अभी समय है । जबतक यह श्वासकी धोंकनी चलती है, आँखें
टिमटिमाती हैं, जीते हैं‒यह मौका है; भगवान्का नाम ले लें । लोग हँसे तो परवाह
नहीं ।
हस्ती की चाल चलो मन मेरा,
जगत कूकरी को भुसबा
दे ।
तूं तो राम सिमर जग हंसवा दे ॥
लोग हँसते हैं तो अच्छी बात‒हँसो भाई, हँसकर खुश होते हैं । खुशीमें हँसी आती है, बड़े आनन्दकी
बात है । हम भगवान्का नाम लेवें तो उनको हँसी आवे, बड़ी अच्छी, बड़े आनन्दकी,
बड़ी खुशीकी बात है । अपने तो भगवान्के नाममें लग जाओ, बस । हँसी करो, तिरस्कार
करो, दिल्लगी उड़ाओ, कोई बात नहीं है । सम्मान-मानमें तो नुकसान है । अपमान, निन्दा
सहनेमें नुकसान नहीं है । इससे पापोंका ही नाश होता है । इधर आप नाम लो और वे
हँसी-दिल्लगी उड़ावें तो डबल लाभ होगा ।
तेरे भावैं जो करो, भलौ बुरौ
संसार ।
नारायण तू बैठिकै अपनौ भुवन बुहार ॥
दूसरे करते हैं कि नहीं करते हैं‒इस तरफ खयाल करनेकी जरूरत
नहीं है । जैसे भूख लगती है तो यह पूछते नहीं कि तुमलोगोंने भोजन कर लिया है कि
नहीं; क्योंकि मैं अब भोजन करना चाहता हूँ । जब प्यास लगती है तो यह नहीं पूछते कि
तुमलोगोंने जल पिया है कि नहीं; क्योंकि मैं जल पीना चाहता हूँ । प्यास लग गयी तो
पी लो भाई जल । ऐसे भगवान्के नामकी प्यास लगनी चाहिये भीतर । दूसरा लेता है कि
नहीं लेता है । क्या करता है, क्या नहीं करता है । पर खुदको लाभ ले ही लेना चाहिये
।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒
‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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