।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल द्वादशीवि.सं.२०७७, रविवा
भगवन्नाम


“ होहि राम को नाम जपु ”

अध्यात्मरामायणमें भगवान्‌ शंकर खुद रामजीसे कहते हैं‒‘भगवन्‌ ! मैं भवानीके सहित काशीमें रहता हूँ । ‘मुमूर्षुमाणस्य दिशामि मन्त्रं तव रामनाम’ आपका जो राम-नाम मन्त्र है उसका मैं दान देता हूँ मरनेवालेको कि ले लो भाई जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाय । एक सज्जन कहते थे, मैंने कई आदमियोंको देखा है । काशीमें मरनेवालेका कान ऊँचा हो जाता है ! मानो शंकर इस कानमें मन्त्र देते हैं । वह नाम अपने भी ले सकते हैं, कितनी मौजकी बात है ! कितना ऊँचा नाम है ! जो भगवान्‌ शंकरका इष्ट है, वह हम ले सकते हैं कलियुगी जीव ! कैसी कृपा हो गयी, अलौकिक कृपा हो रही है । थोड़ी-सी बात है । नाम लेने लग जाय, ‘राम राम राम’ । सन्तोंने कहा है, ‘मुक्ति मुण्डे में थारे’ तेरे मुँहमें मुक्ति पड़ी है । राम-राम लेकर निहाल हो जा तू । ऐसा सस्ता भगवान्‌का नाम । जपने लग जाओ, सीधी बात है । खुला भगवान्‌का नाम है । तिजोरियोंमें बन्द धनको तो आप हिम्मत करके खुला लेते हैं । पर चौड़े (खुले) पड़े इस धनको लेते ही नहीं ।

राम दड़ी चौड़े पड़ी, सब कोई खेलो आय ।
दावा  नहीं  सन्तदास  जीते  सो  ले जाय ॥

जो चाहे सो ले जाय, कैसी बढ़िया बात ! कितनी उत्तम बात ! सबके लिये खुला है । किसीके लिये मनाही नहीं, ऐसा भगवान्‌का नाम तत्परतासे लिया जाय, उत्साहपूर्वक, प्रेमसे, अपने प्रभुका समझ करके ।

सन्तोंने कहा‒परलोकमें नाम लेनेवाले और नाम न लेनेवाले दोनों रोते हैं । क्यों ? नाम लेनेवाले रोते हैं कि इस बातका पता नहीं था कि नामकी इतनी महिमा निकलेगी । यह पता होता तो रात-दिन नाम लेते । नाम न लेनेवाले रोते हैं कि हमरा समय खाली चला गया । भाई, अब अपनेको पता लग गया । मरनेके बाद पश्चात्ताप करोगे तब क्या होगा ? अभी समय है । जबतक यह श्वासकी धोंकनी चलती है, आँखें टिमटिमाती हैं, जीते हैं‒यह मौका है; भगवान्‌का नाम ले लें । लोग हँसे तो परवाह नहीं ।

हस्ती की चाल  चलो  मन  मेरा,
जगत  कूकरी   को   भुसबा  दे ।
तूं तो राम सिमर जग हंसवा दे ॥

लोग हँसते हैं तो अच्छी बात‒हँसो भाई, हँसकर खुश होते हैं । खुशीमें हँसी आती है, बड़े आनन्दकी बात है । हम भगवान्‌का नाम लेवें तो उनको हँसी आवे, बड़ी अच्छी, बड़े आनन्दकी, बड़ी खुशीकी बात है । अपने तो भगवान्‌के नाममें लग जाओ, बस । हँसी करो, तिरस्कार करो, दिल्लगी उड़ाओ, कोई बात नहीं है । सम्मान-मानमें तो नुकसान है । अपमान, निन्दा सहनेमें नुकसान नहीं है । इससे पापोंका ही नाश होता है । इधर आप नाम लो और वे हँसी-दिल्लगी उड़ावें तो डबल लाभ होगा ।

तेरे भावैं जो करो,  भलौ  बुरौ  संसार ।
नारायण तू बैठिकै अपनौ भुवन बुहार ॥

दूसरे करते हैं कि नहीं करते हैं‒इस तरफ खयाल करनेकी जरूरत नहीं है । जैसे भूख लगती है तो यह पूछते नहीं कि तुमलोगोंने भोजन कर लिया है कि नहीं; क्योंकि मैं अब भोजन करना चाहता हूँ । जब प्यास लगती है तो यह नहीं पूछते कि तुमलोगोंने जल पिया है कि नहीं; क्योंकि मैं जल पीना चाहता हूँ । प्यास लग गयी तो पी लो भाई जल । ऐसे भगवान्‌के नामकी प्यास लगनी चाहिये भीतर । दूसरा लेता है कि नहीं लेता है । क्या करता है, क्या नहीं करता है । पर खुदको लाभ ले ही लेना चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे