(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक ही ध्येय, लक्ष्य हो कि हमें पारमार्थिक उन्नति ही करना है । मेरी तो यहाँतक धारणा है कि यदि हृदयमें सत्संगकी जोरदार इच्छा होगी तो उसको सत्संगमें गये बिना लाभ हो जायगा, दूर बैठे ही उसके मनमें उस सत्संगके भाव पैदा हो जायँगे ! भगवान् तो भावको ग्रहण करते हैं‒‘भावग्राही जनार्दनः ।’
भगवान् हमारे सदाके माँ बाप, पति, गुरु, आचार्य हैं,अतः उनकी आज्ञामें चलो । कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र प्रमाण है‒‘तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ’ (गीता १६ । २४) । शास्त्रकी आज्ञा है कि सत्संग, भजन, ध्यान करो । इसलिये कभी मत डरो,निधड़क रहो । पतिकी सेवा करो उत्साहपूर्वक । जैसे, कोई मुनीम या नौकर है, पर उसका मालिक उसको भजन-ध्यानके लिये मना करता है तो उसको मालिकसे कड़वा नहीं बोलना चाहिये, पर मनमें यह विचार पक्का रखना चाहिये कि मैंने इसको समय दिया है और समयके मैं पैसे लेता हूँ, पर मैंने अपना धर्म नहीं बेचा है । यदि वह कहे कि झूठी बही लिखनी पड़ेगी, झूठ-कपट करना पड़ेगा, सेल्स टैक्स और इन्कम टैक्सकी चोरी करनी पड़ेगी, नहीं तो मैं नौकर नहीं रखूँगा तो उसको यह बात मनमें रखनी चाहिये कि अच्छी बात है । वह हमें छोड़ दे तो ठीक है, पर अपने मत छोड़ो ।यदि मालिक ऐसे नौकरका त्याग करेगा तो ऐसा ईमानदार नौकर उसको फिर नहीं मिलेगा । जो आदमी मालिकके कहनेपर सरकारकी चोरी नहीं करता, वह मालिककी भी चोरी नहीं करेगा । उसको मालिक छोड़ देगा तो पीछे वह रोयेगा ही । अपने तो निधड़क, निःशंक रहो कि हमने तो कोई पाप नहीं किया । हम पाप, अन्याय नहीं करते तो कुटुम्बी, सम्बन्धी भले ही नाराज हो जाये उस नाराजगीसे बिलकुल मत डरो । मीराँबाईने कहा है‒‘या बदनामी लागे मीठी !’ वे भगवान्की पक्की भक्त थीं । उन्होंने कलियुगमें गोपी-प्रेम दिखा दिया । उनको कितना मना किया, जहर दिया, सिंह छोड़ दिया और कहा कि तू हमारेपर कलंक लगानेवाली है तो भी मीराँबाईने कोई परवाह नहीं की । अतः आपका हृदय यदि सच्चा है और भजन-ध्यान कर रहे हैं तो कोई धड़कन लानेकी जरूरत नहीं है ।
यदि पति सत्संगमें जानेके लिये मना करता है तो पतिके हितके लिये उससे बड़ी नम्रता, सरलतासे कह दो कि मैं सत्संगकी बात नहीं छोड़ूँगी । आप जो कहो, वही काम करूँगी । आपकी सेवामें कँभी त्रुटि नहीं पड़ने दूँगी, पर सत्संग-भजन नहीं छोड़ूँगी । आप सत्संगमें जानेकी आज्ञा दे दो और खुद भी सत्संगमें चलो तो बड़ी अच्छी बात है,आपकी-हमारी दोनोंकी इज्जत रहेगी, नहीं तो सत्संग मैं जाऊँगी । घरमें कोई शोक हो जाय, कोई मर जाय तो ऐसे समयमें भी सत्संगमें, मन्दिरोंमें और तीर्थोंमें जानेके लिये कोई मना नहीं है अर्थात् जरूर जाना चाहिये । शोकके समय सत्संगमें जानेसे शोक मिटता है, जलन मिटती है, शान्ति मिलती है, इसलिये जरूर जाना चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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