।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीयावि.सं.२०७१शुक्रवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रहलादजीने विचार किया कि मेरेको पिताजीने सत्संग, भजन-ध्यानके लिये मना किया हैअतः ठाकुरजी उनपर नाराज हैं । इसलिये प्रहलादजीने ठाकुरजीसे क्षमा माँग ली कि महाराज ! पिताजीको क्षमा करोजिससे उनका कल्याण हो जाय । भगवान्‌ने कहा कि तेरे वंशका कल्याण हो गयापिताकी क्या बात है !

माँका ऋण सबसे बड़ा होता है । परन्तु पुत्र भगवान्‌का भक्त हो जाय तो माँका ऋण नहीं रहता और माँका कल्याण भी हो जाता है !

                        कुलं पवित्रं जननी कृतार्था       वसुन्धरा पुण्यवती च तेन । 
                        अपारसंवित्सुखसागरेऽस्मिन्  लीनं परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ॥
                                                           (स्कन्दपुराणमाहे कौमार ५५ । १४०)

ज्ञान एवं आनन्दके अपार समुद्र परब्रह्म परमात्मामें जिसका चित्त विलीन हो गया हैउसका कुल पवित्र हो जाता हैमाता कृतार्थ हो जाती है और पृथ्वी पवित्र हो जाती है ।

इसलिये बहनो ! माताओ ! अपने बालकोंको भगवान्‌में लगाओउनको भक्त बनाओ‒
जननी जणै तो भक्त जणकै दाता कै सूर ।
नहिं तो रहिजै बाँझड़ी मती गमाजे नूर ॥

आपकी गोदीमें भक्त आयेभगवान्‌का भजन करनेवाला आये । ‘गोद लिये हुलसी फिरे, तुलसी सो सुत होय’‒ऐसा बेटा हो । गोस्वामीजी महाराजकी वाणीसे जगत्‌का कितना उपकार हुआ है ! उनकी वाणीसे कितनोंको शान्ति मिलती है ! ऐसे बालक होना बिलकुल आपके हाथकी बात है । बालकका पहला गुरु माँ है । माँका स्वभाव पुत्रपर ज्यादा आता है‒‘माँ पर पूत, पिता पर घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा ।’ कारण कि वह माँके पेटमें रहता हैमाँका दूध पीता हैमाँसे बोली सीखता हैमाँसे चलना-बैठनाखाना-पीना आदि सीखता है । माँ दाईकानाईकादर्जीका,धोबीकामेहतरका काम भी करती है और ऊँची-से-ऊँची शिक्षा देनेका काम भी करती है । माँकी शिक्षा पाये बालक बड़े सन्त होते हैं । जितने-जितने सन्त हुए हैंमूलमें उनकी माताएँ बड़ी श्रेष्ठऊँचे दर्जेकी हुई हैं । उनकी शिक्षा पाकर बालक श्रेष्ठ हुए । ऐसे आप भी अपने बालकोंको तैयार करो ।आपका बेटा होपोता होदौहित्र होउसको बचपनमें ऐसी बातें सिखाओ कि वह भक्त बन जायभजनमें लग जाय । आपको कितना पुण्य होगा ! उस बालकका उद्धार होगा और उसके द्वारा कितनोंको लाभ होगाकितनोंका कल्याण होगा ! भक्तके द्वारा दूसरोंको स्वतः-स्वाभाविक लाभ होता है । उसके वचनोंसेदर्शनसेचिन्तनसेउसका स्पर्श करके बहनेवाली हवासे दूसरोंको लाभ होता है । अतः माताएँ बहनेंभाई सब-के-सब भगवान्‌के भजनमें तल्लीन हो जाओ,भक्त बन जाओ । इससे बड़ा भारी उपकार होगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे