(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रहलादजीने विचार किया कि मेरेको पिताजीने सत्संग, भजन-ध्यानके लिये मना किया है, अतः ठाकुरजी उनपर नाराज हैं । इसलिये प्रहलादजीने ठाकुरजीसे क्षमा माँग ली कि महाराज ! पिताजीको क्षमा करो, जिससे उनका कल्याण हो जाय । भगवान्ने कहा कि तेरे वंशका कल्याण हो गया, पिताकी क्या बात है !
माँका ऋण सबसे बड़ा होता है । परन्तु पुत्र भगवान्का भक्त हो जाय तो माँका ऋण नहीं रहता और माँका कल्याण भी हो जाता है !
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च तेन ।
अपारसंवित्सुखसागरेऽस्मिन् लीनं परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ॥
(स्कन्दपुराण, माहे॰ कौमार॰ ५५ । १४०)
ज्ञान एवं आनन्दके अपार समुद्र परब्रह्म परमात्मामें जिसका चित्त विलीन हो गया है, उसका कुल पवित्र हो जाता है, माता कृतार्थ हो जाती है और पृथ्वी पवित्र हो जाती है ।
इसलिये बहनो ! माताओ ! अपने बालकोंको भगवान्में लगाओ, उनको भक्त बनाओ‒
जननी जणै तो भक्त जण, कै दाता कै सूर ।
नहिं तो रहिजै बाँझड़ी, मती गमाजे नूर ॥
आपकी गोदीमें भक्त आये, भगवान्का भजन करनेवाला आये । ‘गोद लिये हुलसी फिरे, तुलसी सो सुत होय’‒ऐसा बेटा हो । गोस्वामीजी महाराजकी वाणीसे जगत्का कितना उपकार हुआ है ! उनकी वाणीसे कितनोंको शान्ति मिलती है ! ऐसे बालक होना बिलकुल आपके हाथकी बात है । बालकका पहला गुरु माँ है । माँका स्वभाव पुत्रपर ज्यादा आता है‒‘माँ पर पूत, पिता पर घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा ।’ कारण कि वह माँके पेटमें रहता है, माँका दूध पीता है, माँसे बोली सीखता है, माँसे चलना-बैठना, खाना-पीना आदि सीखता है । माँ दाईका, नाईका, दर्जीका,धोबीका, मेहतरका काम भी करती है और ऊँची-से-ऊँची शिक्षा देनेका काम भी करती है । माँकी शिक्षा पाये बालक बड़े सन्त होते हैं । जितने-जितने सन्त हुए हैं, मूलमें उनकी माताएँ बड़ी श्रेष्ठ, ऊँचे दर्जेकी हुई हैं । उनकी शिक्षा पाकर बालक श्रेष्ठ हुए । ऐसे आप भी अपने बालकोंको तैयार करो ।आपका बेटा हो, पोता हो, दौहित्र हो, उसको बचपनमें ऐसी बातें सिखाओ कि वह भक्त बन जाय, भजनमें लग जाय । आपको कितना पुण्य होगा ! उस बालकका उद्धार होगा और उसके द्वारा कितनोंको लाभ होगा, कितनोंका कल्याण होगा ! भक्तके द्वारा दूसरोंको स्वतः-स्वाभाविक लाभ होता है । उसके वचनोंसे, दर्शनसे, चिन्तनसे, उसका स्पर्श करके बहनेवाली हवासे दूसरोंको लाभ होता है । अतः माताएँ बहनें, भाई सब-के-सब भगवान्के भजनमें तल्लीन हो जाओ,भक्त बन जाओ । इससे बड़ा भारी उपकार होगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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