(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक संतसे किसीने पूछा–महाराज ! आप बीड़ी पीते हो ? तो वे
बोले पीते तो नहीं, पर लोग पिला देते हैं । गाड़ीमें बैठते हैं, लोग फूँक मारते हैं
। अब क्या करें ? तो जो नहीं पीना चाहे, उन्हें लोग ऐसे पिला देते हैं । बताओ
उन्हें तंग किया, दुःख दिया । कहा है–‘पर हित सरिस धर्म
नहीं भाई । पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥’ दूसरोंको पीड़ा दी, तो आपको क्या मिला
? दूसरोंकी स्वतन्त्रतामें भी बाधा डाल दी और
आप सदाके लिए परतन्त्र हो गये, वह भी धुएँके । ऐसे निकम्मे काममें समय लगाया । राम
! राम ! राम !
यह समय भगवान्के लिए लगाओ तो भगवान् मिल जायँ । भक्त बन
जाओ । जिनके लिए भगवान् कहते हैं–‘मैं हूँ संतन का दास भगत मेरे मुकुटमणि ।’ मुकुटमणि बन
जाते हैं । कौन ? जो भगवान्के चरणोंमें समय लगाते हैं, उनका भगवान् भी आदर करते
हैं । उन्होंने क्या किया कि अपने समयको भगवान्के चरणोंमें लगाया । ऐसा कीमती समय
ऐसे नष्ट करनेके लिये है ? ताश खेलनेमें, पत्ते पीटनेमें समय लगा दिया । राम ! राम
! राम ! विद्या-अध्ययन करते, सेवा करते, दूसरोंका उपकार करते तो समयका उपयोग होता ।
कितना बढ़िया काम होता है । वह समय ऐसे बरबाद कर दिया । यह
समय ऐसे नष्ट करनेके लिये नहीं मिला है ।
हमारी बहिनोंकी दशा क्या है ? इधर-उधरकी बातोंमें समय लगा
देती हैं । राम ! राम ! राम ! घरपर कोई बात करनेवाला नहीं मिला तो पड़ोसीके यहाँ
बातें करने चली जाती हैं । समय लगा देती हैं । अगर
नाम-जप करो, कीर्तन करो, रामायणका पाठ करो, दिनभर राम-राम करो तो निहाल हो जाओगी ।
मीराबाईकी मुक्ति हो गयी । इसमें कारण क्या था ? भगवान्का भजन किया । वह भगवान्के
भजनमें लग गयी तो आज मीराबाईके पद गाये जाते हैं । भगवान्में प्रेम पैदा होता है ।
कितनी ऊँची हो गयी मीराबाई ! संसारमें प्रसिद्ध हो गयी । उनका कितना ऊँचा नाम !
परन्तु किसीसे यदि पूछो कि मीराकी सासका क्या नाम है ? तो उत्तर मिलता है कि नहीं,
पता नहीं । भजन करनेसे जीव बड़ा होता है । अतः अपने समयको श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठ
काममें लगाओ । समय बरबाद मत करो । यह पहली बात है ।
दूसरी बात–जो काम करें वह सुचारुरूपसे करें । काम करनेका तरीका, काम करनेकी विद्या बढ़ाते ही चले जाओ ।
लिखना-पढ़ना, बोलना, रसोई बनाना, कपड़े धोना,
सफाई करना, झाड़ू देना, बर्तन आदि साफ करना है । बड़े सफाईसे करो, बड़ी सुन्दर
रीतिसे करो । सुचारुरूपसे करनेसे काम अच्छा होगा । नौकरी ही करना है, तो नौकरीका
काम ऐसे बढ़िया ढंगसे करो कि जिससे मालिक राजी हो जाय । यदि मालिक कभी नाराज होकर
निकाल भी दे तो निकलना तो पड़ेगा, पर आपने वहाँ काम-धन्धा करके जो विद्या हासिल कर
ली, क्या वह उस विद्याको छीन लेगा ? नीतिमें आता है कि ब्रह्माजी भी वापिस नहीं ले
सकते । काम करनेकी योग्यता है, आपका स्वाभाव है, उसे कोई छीन नहीं सकेगा । वह गुण तो आपके पास रहेगा
। वह कितनी बढ़िया बात है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे
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