।। श्रीहरिः ।।
मुक्ति सहज है-२


जैसे कोयला काला होता है तो वह काला कब हुआ ? अग्रिसे अलग हुआ तब काला हुआ । अग्रिमें रहते हुए तो वह चमकता था । परन्तु अलग हुआ तो काला हो गया । अब इसे कोई धोवे, साफ करे तो इसका कालापन, साफ नहीं होता । इसके लिये आता है—‘कोयला हो नहीं उजला सौ मन साबुन लगाय ।’ सौ मन साबुन लगानेपर भी उजला नहीं होता तो कैसे हो ! कि यह जिसका अंश है, जिससे यह अलग हुआ है, उसी आगमें रख दिया जाय तो चमक उठेगा । पर आगका अंगार लेकर लाईन खींची जाय तो वह भी काली खीची जायगी । क्योंकि वह भी आगसे अलग हो गया । ऐसे यह जीव परमात्मासे अलग हुआ तब काला हुआ । अब उस कालेपनको धोनेके लिये साबुन लगाता है कि धन हो जाय, मान हो जाय, बड़ाई हो जाय, आदर हो जाय तो हम सुखी हो जायेंगे । इससे सुख नहीं होगा तो किससे सुख होगा ? यह अपने अंशी परमात्माको अपना मान लेगा तो सुखी हो जायगा, चमक उठेगा ।

आप थोड़ा-सा विचार करो तो पता चले कि लाखों-अरबों मनुष्योंमें से दो-चार मनुष्य भी सुखी हो गये क्या ? धनसे, मानसे, बड़ाईसे बड़े-बड़े मिनिस्टरी जिनके पास हैं, वे सुखी हो गये हैं क्या ? बड़े-बड़े धनियोंसे, बड़े-बड़े विद्वानोंसे आप एकान्तमें मिलो कि आप सुखी हो गये हैं क्या ? आपको कोई दुःख तो नहीं है । जो सच्चे हृदयसे परमात्मा लगे हैं उनको भी पूछो । तब आपको वास्तविकताका पता लग जायगा । जो ‘बाह्यस्पर्श’ है वे तो दुःखोंके कारण हैं । असली सुखकी प्राप्तिके लिये क्या करें ? भगवान् को पुकारो ‘हे नाथ ! हे नाथ ! हम तो भूल गये महाराज !’ भगवान् को याद दिला दो तो भगवान् कृपा कर देंगे फिर मौज हो जायगी ।
‘सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥’ (गीता ५/२९)

प्राणिमात्रके सुहृद् परमात्माके रहते हुए हम दुःख पावें बड़े आश्चर्य की बात है । महान् आनन्दस्वरूप वे परमात्मा हमारे खुदके हैं कैसी मौजकी बात है । पर यह अपने परमात्माको छोड़कर परायोंसे प्रेम करता है । बच्चे आपसेमें खेलते हुए जब कोई किसीको मारपीट करता है, तब दौड़ करके माँके पास आता है तो माँकी गोदमें ही रहो ना ! मौजसे, आनन्दसे ! क्यों बाहर जावे ? ऐसे ही यह जीव भगवान् से विमुख होकर दुःख पाता है । इस वास्ते नाशवान् से विमुख हो जाय, क्योंकि भाई ! यह तो ठहरने वाला है नहीं । सन्तों ने कहा है ।

चाख सब छाड़िया माया रस खारा हो ।

नाम सुधा रस पीजिये छिन बारम्बारा हो ॥

हमने तो यह सब चख लिया; पर मायाका रस खारा है । मीठा तो भगवान् का नाम है । नाम लेकर पुकारो, ‘हे नाथ ! हे नाथ ! हे प्रभो !’ ऐसे प्रभुको पुकारो तो निहाल हो जाओगे । ‘शरणे आया बहुत सुख पायो’ इस प्रकार सन्तोंने कहा है । प्रभुके चरणोंके शरण होनेमें बड़ा सुख है । असली सुख है । असली सुखसे वञ्चित क्यों रहते हो ? सबके लिए खुला पड़ा है यह नामका खजाना । कैसा ही मनुष्य क्यों न हो ? ‘अपि चेत्सुदुराचारः’ पापी-से-पापी भी, दुष्ट-से-दुष्ट भी भगवान् के सन्मुख हो जाय ।

सन्मुख
होई जीव मोहि जबही । जन्म कोटि अघ नासहिं तबही ॥

करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जा, क्योंकि पाप सब आगंतुक हैं और तुम परमात्माके हो । इस वास्ते परमात्माके हो जाओ । संसारकी सब चीजें मिट रही है अब उनको पकड़कर सुखी रहना चाहते हैं । तुम खुद रहनेवाले और यह सदा मिटनेवाला तो मिटनेवालेसे कबतक काम चलाओगे ? सोचते नहीं, विचार नहीं करते कि ऐसा सुख ले-लेकर कबतक काम चलाओगे भाई ! घरमें धान्य होता है तब तो रोजाना रोटी बनाओ मौजसे; परन्तु दूसरोंसे ले करके थोडा किसीसे लिया, थोडा किसीसे लिया, ऐसे काम कबतक चलेगा ?


सुख लेते समय यह तो सोचो कि लेकर करोगे क्या ? जिस शरीरके सुखके लिए तुम लेते हो वह शरीर तो प्रतिक्षण अभावमें जा रहा है बेचारा ! इसके लिए सुख पाना चाहते हो । बड़े आश्चर्यकी बात है ! वहम यह हो रहा है कि हम जी रहे हैं । सच्ची बात है कि हम मर रहे हैं, पर ऐसा कह दें किसीको तो नाराज हो जाय कि हमें मरनेकी बात कह दी । अरे भाई ! असली बात है कि हम हरदम मर रहे हैं । कल इस समय जितनी उम्र थी अब उतनी नहीं है । २४ घंटे उम्र कम हो गई । मृत्युका दिन २४ घंटे नजदीक आ गया और यूँ आते-आते चट आ जायेगा वह दिन । वह दिन पता नहीं है कब आ जाय ।
— ‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे(दि.१६/०४/१९८३, मुरली मनोहर धोरा, बीकानेरके प्रवचनसे)