।। श्रीहरिः ।।
गीता-पाठकी

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विधियों-४



(गत् ब्लॉगसे आगेका)
संस्कृत भाषाका उच्चारणकरनेकी विधि

शब्दका जैसा रूप है, उसको बीचमेंसे तोडकर न पढ़े एवं लघु और गुरुका, विसर्गों और अनुस्वारोंका तथा श,ष, स का लक्ष्य रख कर पढ़े तो संस्कृत भाषाका उच्चारण शुद्ध हो जाता है ।

१—उच्चारणमें इ, उ, ऋ—इन तीन अक्षरोंके लघु और गुरुका ध्यान विशेष रखना चाहिये । क्योंकि अ और आ का उच्चारण-भेद तो स्पष्ट स्वतः ही हो जाता है और लृ का उच्चारण बहुत कम आता है तथा वह दीर्ध होता ही नहीं । ऐसे ही ए, ऐ, ओ, औ—ये अक्षर लघु होते ही नहीं ।

२—संयोगके आदिका, विसर्गोंके आदिका स्वर गुरु हो जाता है; क्योंकि संयोगका उच्चारण करनेसे पिछले स्वरपर जोर लगेगा ही तथा विसर्ग जो कि आधे ‘ह’ की तरह बोले जाते हैं, उनके उच्चारणसे भी स्वरपर जोर लगता ही है । जिससे पीछेवाला स्वर गुरु हो जाता है । व्यञ्जनोंका उच्चारण बिना स्वरके सुखपूर्वक होता ही नहीं और व्यञ्जनके आगे दूसरा व्यञ्जन आ जानेसे पीछेवाले स्वरके अधीन ही उसका उच्चारण रहेगा; इसलिये पीछेवाला स्वर गुरु होता है ।

३—अनुस्वार और विसर्ग किसी-न-किसी स्वरके ही आश्रित होते हैं; स्वरके बाद उच्चारित होनेसे ही उनकी अनुस्वार और विसर्ग संज्ञा होती है । अतः इनका उच्चारण करनेसे स्वाभाविक ही पिछला स्वर गुरु हो जाता है । यहाँ अनुस्वारके विषयमें यह ध्यान देनेकी बात है कि उसका उच्चारण आगेवाले व्यञ्जनके अनुरूप होता है अर्थात् आगेका व्यञ्जन जिस वर्णका होगा, उस वर्गके पञ्चम अक्षरके अनुस्वारका उच्चारण होगा । जैसे क, ख, ग, घ, ङ परे होनेपर अनुस्वरका उच्चारण ‘ङ्’ की तरह; च, छ, ज, झ, ञ परे होनेपर ‘ञ्’ की तरह; ट, ठ, ड, ढ, ण परे होनेपर ‘ण्’ की तरह; त, थ,द, ध, न परे होनेपर ‘न्’ की तरह; प, फ, ब, भ, म परे होनेपर ‘म्’ की तरह करना चाहिये । यह नियम केवल इन पचीस अक्षरोंके लिये ही है । य, र, ल, व, श, ष, स, ह—ये आठ अक्षर परे होनेपर शुद्ध अनुस्वरका ही उच्चारण करना ही चाहिये जो कि केवल नाशिकासे होता है ।

४—श, ष, स—इन तीनोंका उच्चारण-भेद समझते हुए इनको निम्नलिखित रीतिसे पढ़ना चाहिये । मूर्धासे ऊँचे तालुमें जीभ लगाकर ‘श’ का उच्चारण करनेसे तालव्य शकारका ठीक उच्चारण होगा तथा दाँतोंकी तरफ थोड़ा नीचे लगाकर ‘ष’ का उच्चारण करनेसे मूर्धन्य षकारका ठीक उच्चारण होगा एवं दोनों दाँतोंको मिलाकर ‘स’ का उच्चारण करनेसे स्वाभाविक ही जीभ दाँतोंके लगेगी, तब दन्त्य सकारका ठीक उच्चारण होगा ।

—‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे

http://www.swamiramsukhdasji.org/swamijibooks/pustak/pustak1/html/GeetaDarpan/purvarth/ch97_250.htm