(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसे पुरुष और स्त्री दो होते हैं, ऐसे श्रीकृष्ण और श्रीजी दो नहीं हैं । ज्ञानमें तो द्वैतका अद्वैत होता है अर्थात् दो होकर भी एक हो जाता है और भक्तिमें अद्वैतका द्वैत होता है अर्थात् एक होकर भी दो हो जाता है । जीव और ब्रह्म एक हो जायें तो ‘ज्ञान’ होता है और एक ही ब्रह्म दो रूप हो जाय तो ‘भक्ति’ होती है । एक ही अद्वैत-तत्त्व प्रेमकी लीला करनेके लिये, प्रेमका आस्वादन अर्थात् आनन्दित करनेके लिये,सम्पूर्ण जीवोंको प्रेमका आनन्द देनेके लिये श्रीकृष्ण और श्रीजी‒इन दो रूपोंसे प्रकट होता है* । दो रूप होनेपर भी दोनोंमें कौन बड़ा है और कौन छोटा, कौन प्रेमी है और कौन प्रेमास्पद ?‒इसका पता ही नहीं चलता । दोनों ही एक-दूसरेसे बढ़कर विलक्षण दीखते हैं, दोनों एक-दूसरेके प्रति आकृष्ट होते हैं । श्रीजीको देखकर भगवान् प्रसन्न होते हैं और भगवान्को देखकर श्रीजी । दोनोंकी परस्पर प्रेम-लीलासे रसकी वृद्धि होती है । इसीको रास कहते हैं ।
भगवान्की शक्तियों अनन्त हैं, अपार हैं । उनकी दिव्य शक्तियोंमें ऐश्वर्य-शक्ति भी है और माधुर्य-शक्ति भी । ऐश्वर्य-शक्तिसे भगवान् ऐसे विचित्र और महान् कार्य करते हैं, जिन्हें दूसरा कोई कर ही नहीं सकता । ऐश्वर्य-शक्तिके कारण उनमें जो महत्ता, विलक्षणता और अलौकिकता दीखती है वह उनके सिवा और किसीमें देखने-सुननेमें नहीं आती । माधुर्य-शक्तिमें भगवान् अपने ऐश्वर्यको भूल जाते हैं । भगवान्को भी मोहित करनेवाली माधुर्य-शक्तिमें एक मधुरता, मिठास होती है, जिसके कारण भगवान् बड़े मधुर और प्रिय लगते हैं । जब भगवान् ग्वालबालोंके साथ खेलते हैं, तब माधुर्य-शक्ति प्रकट रहती है । यदि उस समय ऐश्वर्य-शक्ति प्रकट हो जाय तो सारा खेल बिगड़ जाय; ग्वालबाल डर जायँ और भगवान्के साथ खेल भी न सकें । ऐसे ही भगवान् कहीं मित्ररूपसे, कहीं पुत्ररूपसे और कहीं पतिरूपसे प्रकट हो जाते हैं तो उस समय उनकी ऐश्वर्य-शक्ति छिपी रहती है और माधुर्य-शक्ति प्रकट रहती है । तात्पर्य यह कि भगवान् भक्तोंके भावोंके अनुसार उन्हें आनन्द देनेके लिये ही अपनी ऐश्वर्य-शक्तिको छिपाकर माधुर्य-शक्ति प्रकट कर देते हैं ।
जिस समय माधुर्य-शक्ति प्रकट रहती है, उस समय ऐश्वर्य-शक्ति प्रकट नहीं होती और जिस समय ऐश्वर्य-शक्ति प्रकट रहती है, उस समय माधुर्य-शक्ति प्रकट नहीं होती । ऐश्वर्य-शक्ति केवल तभी प्रकट होती है, जब माधुर्यभावमें कोई शंका पैदा हो जाय । जैसे, माधुर्य-शक्तिके प्रकट रहनेपर भगवान् श्रीकृष्ण बछड़ोंको ढूँढ़ते हैं, परंतु ‘बछड़े कहाँ गये ?’ यह शंका पैदा होते ही ऐश्वर्य-शक्ति प्रकट हो जाती है और भगवान् तत्काल जान जाते हैं कि बछड़ोंको ब्रह्माजी ले गये हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
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* येयं राधा यश्च कृष्णो रसाब्धिर्देहश्चैकः क्रीडनार्थं द्विधाभूत् । ( श्रीराधातापनीयोपनिषद्)
‘जो ये राधा और जो कृष्ण रसके सागर हैं, वे एक ही हैं, पर लीलाके लिये दो रूप बने हुए हैं ।’
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