(गत ब्लॉगसे आगेका)
सात्विक मनुष्यकी पूर्वसंस्कार आदिके कारण राजस-तामस भोजनकी इच्छा हो जानेपर भी वह इच्छा राजस-तामस पदार्थोंका सेवन करनेके लिये बाध्य नहीं करती;क्योंकि उसमें सत्त्वगुणकी प्रधानता रहनेसे विवेक जाग्रत् रहता है । इतना ही नहीं, सात्त्विक पदार्थ स्वाभाविक प्रिय होनेपर भी उसमें सात्त्विक पदार्थोंकी प्रबल इच्छा नहीं रहती । तीव्र वैराग्य होनेपर तो सात्त्विक पदार्थोंकी भी उपेक्षा हो जाती है । राजस मनुष्यमें शरीरको पुष्ट एवं ठीक रखनेवाले सात्त्विक तथा तामस पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है । रागकी प्रधानता होनेसे यह इच्छा उन पदार्थोंका सेवन करनेके लिये उसको बाध्य कर देती है । तामस मनुष्यमें भी सात्त्विक-राजस मनुष्योंके संगसे सात्त्विक-राजस पदार्थोंके सेवनकी इच्छा (रुचि) हो जाती है; परन्तु मोह‒मूढ़ताकी प्रधानता होनेसे इस इच्छाका उसपर विशेष असर नहीं होता ।
सात्त्विक मनुष्य भी अगर सात्त्विक पदार्थों- (भोजन-) का रागपूर्वक अधिक मात्रामें सेवन करेगा, तो वह भोजन राजस हो जायगा, जो परिणाममें दुःख, शोक, एवं रोगोंको देनेवाला हो जायगा । अगर वह लोभमें आकर अधिक मात्रामें पदार्थोंका सेवन करेगा तो वह सात्त्विक भोजन भी तामस हो जायगा, जो अधिक निद्रा, आलस्यमें लगा देगा ।
राजस मनुष्य भी अगर राजस भोजनको रागपूर्वक करेगा तो परिणाममें रोग, पेटमें जलन आदि होंगे । अगर वह उन्हीं पदार्थोंका सेवन अधिक मात्रामें करेगा तो जलन, दुःख,रोग आदिके साथ-साथ निद्रा, आलस्य आदि भी बढ़ जायँगे । अगर वह विवेक-विचारसे उसी भोजनको थोड़ी मात्रामें करेगा तो उसका परिणाम राजस (दुःख, शोक आदि) न होकर सात्त्विक होगा अर्थात् अन्तःकरणमें निर्मलता, शरीरमें हलकापन, ताजगी आदि होंगे । निद्रा कम आयेगी, आलस्य नहीं आयेगा; क्योंकि उसने युक्ताहार किया है ।
तामस मनुष्य अगर तामस भोजनको मोहपूर्वक करेगा तो तामसी वृत्तियों ज्यादा पैदा होंगी । अगर उसी भोजनको वह थोड़ी मात्रामें करेगा तो वैसी वृत्तियों पैदा नहीं होंगी, सामान्य वृत्तियाँ रहेंगी अर्थात् अधिक मोहित करनेवाली वृत्तियों नहीं होंगी ।
भोजनके पदार्थ सात्त्विक होनेपर भी अगर वे न्याययुक्त एवं सच्ची कमाईके नहीं होंगे, प्रत्युत निषिद्ध रीतिसे पैदा किये होंगे, तो उनका नतीजा अच्छा नहीं होगा ।वे कुछ-न-कुछ राजसी-तामसी वृत्तियों पैदा करेंगे, जिससे पदार्थोंमें राग बढ़ेगा, निद्रा-आलस्य भी ज्यादा होंगे । अतः भोजनके पदार्थ सात्त्विक हों, सच्ची कमाईके हों,पवित्रतापूर्वक बनाये जायँ भगवान्को भोग लगाकर शान्तिपूर्वक थोड़ी मात्रामें पाये जायँ तो उनका नतीजा बहुत ही अच्छा होता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे
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