(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒रोगकी हम कैसे पहचान करें कि यह रोग तो प्रारब्धजन्य है और यह रोग कुपथ्यजन्य है ?
उत्तर‒पथ्यका सेवन करनेसे, संयमपूर्वक रहनेसे और दवाई लेनेसे भी जो रोग मिटता नहीं, उसको ‘प्रारब्धजन्य’जानना चाहिये । दवाई और पथ्यका सेवन करनेसे जो रोग मिट जाता है उसको ‘कुपथ्यजन्य’ जानना चाहिये ।
कुपथ्यजन्य रोग चार प्रकारके होते हैं‒साध्य, कृच्छ्र-साध्य, याप्य और असाध्य । जो रोग दवाई लेनेसे मिट जाते हैं, वे ‘साध्य’ हैं । जो रोग कई दिनतक दवाई और पथ्यका विशेषतासे सेवन करनेपर दूर होते हैं, वे ‘कृच्छ्र-साध्य’ हैं । जो रोग पथ्य आदिका सेवन करते रहनेसे दबे रहते हैं, जड़से नहीं मिटते वे ‘याप्य’ हैं । जो रोग दवाई आदिका सेवन करनेपर भी मिटते नहीं, वे ‘असाध्य’ हैं ।
प्रारब्धसे होनेवाला रोग तो असाध्य होता ही है, कुपथ्यसे होनेवाला रोग भी कभी-कभी असाध्य हो जाता है । ऐसे असाध्य रोग प्रायः दवाइयोंसे दूर नहीं होते । किसी सन्तके आशीर्वादसे, मन्त्रोंके प्रबल अनुष्ठानसे, भगवत्कृपासे ऐसे रोग दूर हो सकते हैं ।
प्रश्न‒कुपथ्यजन्य रोगके असाध्य होनेमें क्या कारण है?
उत्तर‒इसमें कई कारण हो सकते हैं; जैसे‒(१) रोग बहुत दिनका (पुराना) हो जाय, (२) तात्कालिक रुचिके कारण रोगी कुपथ्यका सेवन कर ले, (३) दवाइयोंके बनानेमें मात्रा आदिकी कमी रह जाय, (४) जिन जड़ी-बूटियों आदिसे दवाइयों बनायी जायँ, वे पुरानी हों, ताजी न हों, (५) रोगीका वैद्यपर और औषधपर विश्वास न हो (६) रोगी खान-पान आदिमें संयम नहीं रखे (७) रोगी ब्रह्मचर्यका पालन नहीं करे, आदि-आदि कारणोंसे कुपथ्यजन्य रोग भी जल्दी नहीं जाते ।
जो रोगी बार-बार तरह-तरहकी दवाइयाँ लेता रहता है, दवाइयोंका अधिक मात्रामें सेवन करता है, उसको दवाइयोंसे विशेष लाभ नहीं होता; क्योंकि दवाइयाँ उसके लिये आहाररूप हो जाती हैं । देहातमें रहनेवाले प्रायः दवाई नहीं लेते, पर कभी वे दवाई ले लें तो उनपर दवाई बहुत जल्दी असर करती है । जो मदिरा, चाय आदि नशीली वस्तुओंका सेवन करते हैं, उनकी आतें खराब हो जाती हैं,जिससे उनके शरीरपर दवाइयाँ असर नहीं करतीं । जो धर्मशास्त्र और आयुर्वेदशास्त्रके विरुद्ध खान-पान, आहार-विहार करता है, उसका कुपथ्यजन्य रोग दवाइयोंका सेवन करनेपर भी दूर नहीं होता ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे
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