(गत ब्लॉगसे आगेका)
(३) एक आदमीके हाथसे गिलास गिरकर टूट गया तो यह उसकी असावधानी है या प्रारब्ध ?
कर्म करते समय तो सावधान रहना चाहिये पर जो (अच्छा या बुरा) हो गया, उसे पूरी तरहसे प्रारब्ध‒होनहार ही मानना चाहिये । उस समय जो यह कहते हैं कि यदि तू सावधानी रखता तो गिलास न टूटता-इससे यह समझना चाहिये कि अब आगेसे मुझे सावधानी रखनी है कि दुबारा ऐसी गलती न हो जाय । वास्तवमें जो हो गया, उसे असावधानी न मानकर होनहार मानना चाहिये । इसलिये करनेमें सावधान और होनेमें प्रसन्न रहे ।
(४) प्रारब्धसे होनेवाले और कुपथ्यसे होनेवाले रोगमें क्या फर्क है ?
कुपथ्यजन्य रोग दवाईसे मिट सकता है; परन्तु प्रारब्धजन्य रोग दवाईसे नहीं मिटता । महामृत्युञ्जय आदिका जप और यज्ञ-यागादि अनुष्ठान करनेसे प्रारब्धजन्य रोग भी कट सकता है अगर अनुष्ठान प्रबल हो तो ।
रोगके दो प्रकार हैं‒आधि (मानसिक रोग) और व्याधि (शारीरिक रोग) । आधिके भी दो भेद हैं‒एक तो शोक, चिन्ता आदि और दूसरा पागलपन । चिन्ता, शोक आदि तो अज्ञानसे होते हैं और पागलपन प्रारब्धसे होता है । अतः ज्ञान होनेपर चिन्ता-शोकादि तो मिट जाते हैं पर प्रारब्धके अनुसार पागलपन हो सकता है । हाँ, पागलपन होनेपर भी ज्ञानीके द्वारा कोई अनुचित, शास्त्रनिषिद्ध क्रिया नहीं होती ।
(५) आकस्मिक मृत्यु और अकाल मृत्युमें क्या फर्क है ? कोई व्यक्ति साँप काटनेसे मर जाय, अचानक ऊपरसे गिरकर मर जाय, पानीमें डूबकर मर जाय, हार्टफेल होनेसे मर जाय, किसी दुर्घटना आदिसे मर जाय तो यह उसकी‘आकस्मिक मृत्यु’ है । स्वाभाविक मृत्युकी तरह आकस्मिक मृत्यु भी प्रारब्धके अनुसार (आयु पूरी होनेपर) होती है ।
कोई व्यक्ति जानकर आत्महत्या कर ले अर्थात् फाँसी लगाकर, कुएँमें कूदकर, गाड़ीके नीचे आकर, छतसे कूदकर,जहर खाकर, शरीरमें आग लगाकर मर जाय तो यह उसकी ‘अकाल मृत्यु’ है । यह मृत्यु आयुके रहते हुए ही होती है । आत्महत्या करनेवालेको मनुष्यकी हत्याका पाप लगता है । अतः यह नया पाप-कर्म है, प्रारब्ध नहीं । मनुष्यशरीर परमात्मप्राप्तिके लिये ही मिला है; अतः उसको आत्महत्या करके नष्ट करना बड़ा भारी पाप है ।
कई बार आत्महत्या करनेकी चेष्टा करनेपर भी मनुष्य बच जाता है, मरता नहीं । इसका कारण यह है कि उसका दूसरे मनुष्यके प्रारब्धके साथ सम्बन्ध जुड़ा हुआ रहता है;अतः उसके प्रारब्धके कारण वह बच जाता है । जैसे,भविष्यमें किसीका पुत्र होनेवाला है और वह आत्महत्या करनेका प्रयास करे तो उस (आगे होनेवाले) लड़केका प्रारब्ध उसको मरने नहीं देगा । अगर उस व्यक्तिके द्वारा भविष्यमें कोई विशेष अच्छा काम होनेवाला हो, लोगोंका उपकार होनेवाला हो अथवा इसी जन्ममें, इसी शरीरमें प्रारब्धका कोई उत्कट भोग (सुख-दुःख) आनेवाला हो तो आत्महत्याका प्रयास करनेपर भी वह मरेगा नहीं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे
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