(गत ब्लॉगसे आगेका)
ब्याहा हुआ लड़का मर जाय तो हृदयमें एक चोट पहुँचती है कि ऐसा कमानेवाला सुपुत्र बेटा मर गया तो उससे भी ज्यादा दुःख होना चाहिये एक नाम-उच्चारण करें इतना खाली समय जानेपर । क्योंकि जो लड़के छोटे हैं वे बड़े हो जायँगे । गृहस्थोंके और फिर पैदा भी हो जायँगे । परन्तु समय थोड़े ही पैदा हो जायगा । जो समय खाली गया,वह जो घाटा पड़ा, वह तो पड़ ही गया । इस वास्ते हमें सावधानी रखनी चाहिये कि हमारा समय बरबाद न हो जाय‒‘जो दिन जाय भजनके लेखे, सो दिन आसी गिणतीमें’वह दिन गिनतीमें आवेगा । बिना भजनके जो समय गया,उसकी कोई कीमत नहीं, वह तो बरबाद हो गया । बड़ा भारी नुकसान हो गया, घाटा लग गया बड़ा भारी !
अबतक जो समय संसारमें लग गया, वह तो लग ही गया । अब सावधान हो जायँ । सज्जनो ! भाइयो-बहिनो ! दिनमें थोड़ी-थोड़ी देरीमें देखो कि नाम याद है कि नहीं ।घरमें जगह-जगह भगवान्का नाम लिख दो और याद करो । भगवान्की तस्वीर इस भावसे सामने रख दो कि वे हमें याद आते रहें । हमें भगवान्को याद करना है । घरमें भगवान्का चित्र रखो पर इस भावनासे रखो कि तस्वीरपर हमारी दृष्टि पड़ते ही हमें भगवान् याद आयें । ऐसे भावसे रखकर सुन्दर-सुन्दर नाम लिख दो । जहाँ ज्यादा दृष्टि पड़ती हो, वहाँ नाम लिख दो ।
ऐसे गृहस्थके घरको मैंने देखा है । सीढ़ीसे उतरते हैं तो वहाँ नाम लिखा हुआ । सीढ़ीसे ऊपर चढ़ते हैं तो सामने नाम लिखा हुआ । जहाँ घूमते-फिरते हैं, वहाँ नाम लिखा हुआ । वे नाम इस वास्ते लिखे कि मैं भूल न जाऊँ, प्रभुके नामकी भूल न हो जाय । ऐसी सावधानी रखो सज्जनो ! यह असली काम है असली ! बड़ा भारी लाभ है इसमें‒‘भक्ति कठिन करूरी जाण ! ड़समें नफा घणा नहीं हाण ॥’ इसमें नुकसान है ही नहीं । केवल नफा-ही-नफा है । बस, फायदा-ही-फायदा है । इस प्रकार अपना सब समय सार्थक बन जाय‒‘एक भी श्वास खाली खोय ना खलक बीच ।’
संसारके भीतर जो समय खाली चला गया तो बड़ा भारी नुकसान हो गया । श्रीदादूजी महाराज फरमाते हैं‒‘दादू जैसा नाम था तैसा लीन्हा नाय ।’ इस नामकी जितनी महिमा है, वैसा नाम नहीं लिया, जब कि उन्होंने उम्रभरमें क्या किया ? नाम ही तो जपा । परन्तु उनको लगता है कि नाम जैसा जपना चाहिये था वैसा नहीं जपा अर्थात् मुखसे जितना नाम लेना था, उतना नहीं लिया । अब‘देह हलावा हो रहा’ देहमेंसे बस, प्राण गये... गये... ऐसी उनकी दशा हो रही है, पर वे कहते हैं‒‘हुंस रही मन माय’भगवान्का नाम और लेते, और लेते । जैसे, धन कमानेवालेका लोभ जाग्रत् होता है तो उसके पास लाखों,करोड़ों रुपये हो जानेपर भी फिर नये-नये कारखाने खोलकर और धन ले लूँ‒ऐसा लोभ बढ़ता ही रहता है । यह धन तो यहीं रह जायगा और हमारा समय बरबाद हो जायगा । यदि भगवान्में लग जाओगे तो नामका वैसे लोभ लगेगा जैसे सन्तोंने प्रार्थना की है कि हे भगवान् ! हमारी एक जिह्वासे नाम लेते-लेते तृप्ति नहीं हो रही है, इस वास्ते हमारी हजारों जिह्वा हो जायँ, जिनसे मैं नाम लेता ही चला जाऊँ । उनकी ऐसी नामकी लालसा बढ़ती ही चली जाती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
|