(गत ब्लॉगसे आगेका)
सांसारिक पदार्थोंकी प्राप्तिके लिये तो भविष्यकी आशा करना उचित
है; क्योंकि सांसारिक पदार्थ सदा सब जगह विद्यमान नहीं है,
परन्तु सच्चिदानन्दघन परमात्मा तो
सम्पूर्ण देश, काल,
वस्तु और व्यक्तिमें विद्यमान हैं, उनकी
प्राप्तिमें भविष्यका क्या काम ? इस तथ्यकी ओर प्रायः साधकोंका ध्यान ही नहीं जाता
। वे यही मान बैठते है कि ‘इतना साधन करेंगे; इतना नाम जप करेंगे;
ऐसी-ऐसी वृत्तियाँ बनेंगी;
इतना अन्तःकरण शुद्ध होगा,
इतना वैराग्य होगा;
भगवान्में इतना प्रेम होगा;
ऐसी अवस्था होगी, ऐसी योग्यता होगी‒तब कहीं परमात्माकी प्राप्ति होगी ! इस प्रकारकी अनेक आड़े (रुकावटें) साधकोंने स्वयं ही लगा रखी है
यही महान् बाधा है ।
जिस दिन साधकके भीतर यह उत्कट अभिलाषा जाग्रत् हो
जाती है कि परमात्मा अभी ही प्राप्त होने चाहिये अभी अभी.....अभी ! उसी दिन उसे परमात्मप्राप्ति
हो सकती है ! साधककी योग्यता, अभ्यास आदिके बलपर परमात्माकी प्राप्ति हो जाय‒यह
सर्वथा असम्भव है । परमात्माकी प्राप्ति केवल उत्कट अभिलाषासे ही हो सकती है ।
आप सगुण या निर्गुण,
साकार या निराकार‒किसी भी तत्त्वको मानते हों,
उसके बिना आपसे रहा नहीं जाय उसके बिना चैन न पड़े । भक्तिमती
मीराबाईने कहा है‒
हेली म्हाँस्यूँ हरि बिन रह्यो न जाय ॥
‘हे सखी ! मुझसे हरिके बिना रहा नहीं जाता ।’
निर्गुण-उपासकोने भी यही कहा है‒
दिन नहिं भूख रैन नहिं निद्रा,
छिन-छिन व्याकुल होत हिया, चितवन
मोरी तुमसे लागी पिया ।
तत्त्वकी प्राप्तिके बिना दिनमें भूख नहीं लगती और रातमें नींद
नहीं आती ! आप कैसे मिलें ! क्या करूँ ? हृदयमें क्षण-क्षण व्याकुलता बढ़ रही है । उसे
छोड़कर और कुछ सुहाता नहीं ।
सन्तोंने भी कहा है‒
‘नारायण’ हरि लगन में ये पाँचों न सुहात
।
विषय भोग, निद्रा
हंसी, जगत प्रीति, बहू
बात ॥
ये विषयभोगादि पाँचों चीजें जिस दिन सुहायेंगी नहीं,
अपितु कड़वी अर्थात् बुरी लगेंगी,
भगवान्का वियोग सहा नहीं जायेगा । उसी दिन प्रभु मिल जायेंगे
। इतने प्यारे भगवान् ! इतने प्रियतम परमात्मा ! जिनके समान कोई प्यारा हुआ नहीं,
है नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं, ऐसे अपने प्यारे प्रभुके वियोगमें हम दिन बिता रहे है ! उनके
मिले बिना ही हम सुखसे रह रहे है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे
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