(गत ब्लॉगसे आगेका)
देखो ! हमलोग सुनानेवाले हैं न ! चाहे अभिमान भले ही कर लें
कि हम सुनाते हैं; परन्तु हम वही सुनाते हैं,
जो आपकी चीज है । आप मान सकते हो कि स्वामीजीने हमारेको यह बताया,
पर सच्ची बात तो यह है कि आपकी चीज ही आपको दी जाती है । गीताप्रेसके
संस्थापक श्रीजयदयालजी गोयन्दका कई दफे पूछते थे, बोलो क्या सुनावें ? तो मेरे कहनेका
काम पड़ा है कि जो हमारी है, वो दे दो । सच्ची बात है, वह
ज्ञान आपका है, बिलकुल आपका है, वही मैं दे देता हूँ । अगर मैं यह अभिमान करता हूँ
कि ‘मैं देता हूँ’ तो यह बड़ी गलती है, इसका दण्ड होगा । आपकी बात आपको
दे दूँ तो उऋण हो जाऊँ । जबतक नहीं दी,
तबतक ऋणी था । आपने ले ली तो मेरा ऋण उतर गया । कर्जा
उतर गया । आपने मेरेको निहाल कर दिया,
कर्जेसे रहित कर दिया एकदम सच्ची बात है ।
मैं, मेरी देखी हुई अनुभवकी बात बताता हूँ । ऐसी बातें बीती हैं,
जहाँ मैंने कहा कि बहुत बढ़िया बात बताऊँगा तो वहाँ समयपर बात
उपजी नहीं है । मैंने खूब जोर लगाया, पर समय पूरा करना मुश्किल हो गया‒यह मेरी बीती हुई बात है ।
जहाँ मैंने कहा कि भाई, हमारेको तो कुछ आता नहीं,
हम जानते नहीं हैं‒ऐसा भाव रहता है तो इतनी बातें कहनेमें आती
हैं कि आश्चर्य आता है मेरेको ! यह हमारा अनुभव बताया है आपको । तात्पर्य यह हुआ कि
आपकी बात ही आपको देनी है, यह सच्ची बात है । इसी तरह जो चीजें आपके पास हैं,
उनको संसारकी समझकर संसारको देनी हैं । जो हमारे पास नहीं है
जैसे‒धन हमारे पास है नहीं, तो धन देनेकी हमारेपर जिम्मेवारी नहीं है । जो बातें हम जानते
हैं, आप पूछते हो और हम नहीं बतावें तो हमारेपर कर्जा है । बता देते हैं तो कर्जा उतर
गया । आपने ले लिया, हमारेको हलका कर दिया,
बड़ी कृपा कर दी । इस तरहका बर्ताव करो संसारके साथ,
तो मुक्ति स्वतःसिद्ध है, बन्धन तो किया हुआ है ।
जो अपनी चीज नहीं है, उसको अपनी मानी‒यही बेईमानी
है और यही बन्धन है;
क्योंकि ये चीजें अपनी हैं नहीं,
अपने तो परमात्मा हैं और हम परमात्माके हैं । यह बात सच्ची है
। जितनी मिली हुई चीजें हैं, चाहे स्थूल शरीर हो,
चाहे सूक्ष्म शरीर हो,
चाहे कारण शरीर हो‒ये सभी संसारके हैं,
संसारसे मिले हैं तो इनको संसारकी सेवामें लगा दो । अगलोंकी
(उनकी) चीज अगलोंको (उनको) बता दी, उनकी चीज उनको सौंप दी और उन्होंने स्वीकार कर ली,
यह उनकी कृपा है । अपने-आपको भगवान्को
दे दिया और अपनी चीज संसारको दे दी, तो
सदाके लिये निहाल हो जाओ, जो सच्ची बात है । कल मैंने कहा था कि आनेवाली और जानेवाली चीजोंसे आप सुखी और
दुःखी क्यों होते हो ? जो आयी है वह चली जायगी । सुखी हो जाओगे तो दुःखी होना ही पड़ेगा
। आनेवाली चीजसे सुखी नहीं होओगे तो दुःखी नहीं होना पड़ेगा ।
जैसे इस मकानमें आ गये और अब चले जाओगे तो दुःखी नहीं होना पड़ेगा
कि यह गोविन्दभवन छूट गया; क्योंकि हमने पकड़ा ही नहीं । तो इनको पकड़ना जन्म-मरणका कारण
है । ऐसे सब संसारकी चीज संसारको सौंप दो और अपनेको परमात्माको सौंप दो तो बिलकुल मुक्त
हो गये । अगर सौंप नहीं सको तो भगवान्से मदद माँगो कि ‘हे नाथ ! सच्चाईकी मदद चाहते
हैं’ और सच्चाईकी मदद सत्यस्वरूप परमात्मा जरूर करेंगे,
इसमें सन्देह नहीं है । झूठेकी मदद नहीं होती । सच्चेकी मदद
हरेक करेगा, दुनिया करेगी, भगवान् करेंगे, धर्म करेगा, सन्त-महात्मा करेंगे,
गुरुजन करेंगे, सभी करेंगे । सच्चे हदयसे जो परमात्मामें
लग जाय, उसकी दुनिया चिन्ता करती है । आजकलके गये-गुजरे जमानेमें भी उसके रोटीकी,
कपड़ेकी, रहनेकी कमी नहीं रहेगी;
क्योंकि वह सच्चे रास्तेपर है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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