नरो न योगी न तु कारकश्च नांशावतारो न नयप्रवीणः ।
भवाश्रयत्वाच्च गुणाश्रयत्वात्कृष्णस्तु साक्षाद्
भगवान् स्वयं हि ॥
शास्त्रमें भगवत्ताके लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं‒
उत्पत्तिं प्रलयं चैव भूतानामागतिं गतिम् ।
वेत्ति विद्यामविद्यां च स वाच्यो भगवानिति ॥
(विष्णुपुराण ६ । ५ । ७८)
‘जो सम्पूर्ण प्राणियोके उत्पत्ति-प्रलय एवं आवागमनको
और विद्या-अविद्याको जानता है, उसका नाम भगवान् है ।’
गीताको देखनेसे पता चलता है कि भगवत्ताके ये सभी लक्षण भगवान्
श्रीकृष्णमें विद्यमान हैं; जैसे‒
भगवान् गीतामें कहते हैं‒महासर्गके आदिमें मैं अपनी प्रकृतिको
वशमें करके सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति करता हूँ और महाप्रलयके समय सम्पूर्ण प्राणी
मेरी प्रकृतिको प्राप्त हो जाते हैं (९ । ७-८) । ब्रह्माजीके दिनके आरम्भमें (सर्गके
आदिमें) सम्पूर्ण प्राणी ब्रह्माजीके सूक्ष्मशरीरसे पैदा हो जाते हैं और ब्रह्माजीकी
रातके आरम्भमें (प्रलयके समय) सम्पूर्ण प्राणी ब्रह्माजीके सूक्ष्मशरीरमें लीन हो जाते
हैं । (८ । १८-१९) । इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण सम्पूर्ण प्राणियोंके
उत्पत्ति-प्रलयको जानते हैं ।
भगवान् कहते हैं कि मैं भूतकालके,
वर्तमानके और भविष्यके सभी प्राणियोंको जानता हूँ (७ । २६) ।
जो स्वर्गप्राप्तिकी इच्छासे यज्ञ, दान आदि शुभकर्म करके स्वर्गादि लोकोंमें जाते हैं, वे उन लोकोंमें अपने पुण्योंका फल भोगकर पुनः मृत्युलोकमें आ
जाते हैं (९ । २०-२१) । शुक्ल और कृष्ण‒ये दो गतियाँ (मार्ग) हैं । इसमेंसे शुक्लगतिसे
गया हुआ प्राणी लौटकर नहीं आता और कृष्णगतिसे गया हुआ प्राणी लौटकर आता है (८ । २६)
। आसुर स्वभाववाले प्राणी बार-बार आसुरी योनियोंमें जाते हैं और फिर वे उससे भी अधम
गतिमें अर्थात् भयंकर नरकोंमें चले जाते हैं (१६ । १९‒२०) । इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण
सम्पूर्ण प्राणियोंके आवागमनको जानते हैं ।
अर्जुन भगवान्से कहते हैं कि गतियोंके विषयमें आपके सिवाय दूसरा
कोई नहीं बता सकता, आप ही मेरे गतिविषयक सन्देहको मिटा सकते हैं (६ । ३९) । अर्जुनके
इस कथनसे भी सिद्ध होता है कि प्राणियोंकी गतियोंको,
आवागमनको भगवान् श्रीकृष्ण पूर्णतया जानते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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