(गत ब्लॉगसे आगेका)
वास्तवमें अन्नादि वस्तुओंकी कमी तभी आ सकती है, जब
मनुष्य काम न करें और भोगी, ऐयाश,
आरामतलब हो जायँ । आवश्यकता ही आविष्कारकी जननी है । अतः जब जनसंख्या बढ़ेगी,
तब उसके पालन-पोषणके साधन भी बढ़ेंगे,
अन्नकी पैदावार भी बढ़ेगी,
वस्तुओंका उत्पादन भी बढ़ेगा,
उद्योग भी बढ़ेंगे । जहाँतक हमें ज्ञात हुआ है,
पृथ्वीमें कुल सत्तर प्रतिशत खेतीकी जमीन है,
जिसमें केवल दस प्रतिशत भागमें ही खेती हो रही है,
जिसका कारण खेती करनेवालोंकी कमी है ! अतः जनसँख्याकी वृद्धि
होनेपर अन्नकी कमीका प्रश्न ही पैदा नहीं होता । यदि भूतकालको देखें तो पता लगता है
कि जनसंख्यामें जितनी वृद्धि हुई है, उससे कहीं अधिक अन्नके उत्पादनमें वृद्धि हुई है । इसलिये जे॰ डी॰ बर्नेल आदि विशेषज्ञोंका कहना है कि जनसंख्यामें वृद्धि होनेपर
भी आगामी सौ वर्षोंतक अन्नकी कमीकी कोई सम्भावना मौजूद नहीं है । प्रसिद्ध अर्थशास्त्री
कोलिन क्लार्कने तो यहाँतक कहा है कि ‘अगर खेतीकी जमीनका ठीक-ठीक उपयोग किया जाय तो
वर्तमान जनसंख्यासे दस गुनी ज्यादा जनसंख्या बढ़नेपर भी अन्नकी कोई समस्या पैदा नहीं
होगी’ (पापुलेशन ग्रोथ एण्ड लिविंग स्टैण्डर्ड) ।
सन् १८८० में जर्मनीमें जीवन-निर्वाहके साधनोंकी बहुत कमी थी,
पर उसके बाद चौंतीस वर्षोंके भीतर जब जर्मनीकी जनसंख्या बहुत
बढ़ गयी, तब जीवन-निर्वाहके साधन और कम होनेकी अपेक्षा इतने अधिक बढ़ गये
कि उसको काम करनेके लिये बाहरसे आदमी बुलाने पड़े ! इंग्लैंडकी जनसंख्यामें तीव्रगतिसे
वृद्धि होनेपर भी वहाँ जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कोई कमी नहीं आयी । यह प्रत्यक्ष बात
है कि संसारमें कुल जनसंख्या जितनी बढ़ी है,
उससे कहीं अधिक जीवन-निर्वाहके साधन बढ़े हैं ।
परिवार-नियोजनके समर्थनमें एक बात यह भी कही जाती है कि जनसंख्या
बढ़नेपर लोगोंको रहनेके लिये जगह मिलनी कठिन हो जायगी । विचार करें,
यह सृष्टि करोड़ों-अरबों वषोंसे चली आ रही है,
पर कभी किसीने यह नहीं देखा,
पढ़ा या सुना होगा कि किसी समय जनसंख्या बढ़नेसे लोगोंको पृथ्वीपर
रहनेकी जगह नहीं मिली ! जनसंख्याको नियन्त्रित रखना और उसके
जीवन-निर्वाहका प्रबन्ध करना मनुष्यके हाथमें नहीं है, प्रत्युत
सृष्टिकी रचना करनेवाले भगवान्के हाथमें है । भगवान् कहते हैं‒
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
(गीता
१५ । १३)
‘मैं ही पृथ्वीमें प्रविष्ट होकर अपनी शक्तिसे समस्त प्राणियोंको
धारण करता हूँ ।’
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥
(गीता
१५ । १७)
‘वह अविनाशी ईश्वर तीनों लोकोंमें प्रविष्ट होकर
सबका भरण-पोषण करता है ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे |