(गत ब्लॉगसे आगेका)
यह सम्पूर्ण संसार सूतके धागेमें पिरोयी हुई सूतकी मणियोंकी
तरह मेरेमें ओतप्रोत है; सम्पूर्ण प्राणियोंका सनातन बीज भी मैं ही हूँ; ब्रह्म,
अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ-रूपसे भी मैं ही हूँ‒इस प्रकार
‘वासुदेवः सर्वम’ का बोध करानेके लिये भगवान् सातवें अध्यायमें अर्जुनके सामने
‘समग्र’‒रूपसे प्रकट होते हैं (७ । २९-३०) ।
सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकारके ध्यानमें योगबलकी आवश्यकता
होनेसे उन दोनोंके ध्यानमें कठिनता है; परंतु मैं अपने अनन्य भक्तोंको सुलभतासे प्राप्त हो जाता हूँ‒यह
बात बतानेके लिये भगवान् आठवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सुलभ’‒रूपसे
प्रकट होते हैं (८ । १४) ।
इस संसारका माता पिता,
धाता, पितामह, गति, भर्ता, निवास, बीज आदि मैं ही हूँ अर्थात् कार्य-कारण,
सत्-असत्, नित्य आदि सब कुछ मैं ही हूँ‒यह बात बतानेके लिये
भगवान् नवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सत्-असत्’‒रूपसे
प्रकट होते है (९ । १९) ।
सम्पूर्ण प्राणियोंके आदि,
मध्य और अन्तमें मै ही हूँ;
सर्गोके आदि, मध्य और अन्तमें मैं ही हूँ सम्पूर्ण प्राणियोंका बीज मैं ही
हूँ; साधकको जहाँ-कहीं सुन्दरता, महत्ता, अलौकिकता दीखे, वह सब वास्तवमें मेरी ही है‒यह बात बतानेके लिये भगवान् दसवें
अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सर्वैश्वर्य’‒रूपसे प्रकट होते है (१० । ४१-४२) ।
मैं अपने किसी एक अंशसे सम्पूर्ण संसारको व्याप्त करके स्थित
हूँ‒इसे बतानेके लिये भगवान् ग्यारहवें अध्यायमें अर्जुनको दिव्यचक्षु देकर उनके सामने
‘विश्वरूप’ ‒से प्रकट होते हैं (११ । ५‒८) ।
जो भक्त मेरे परायण होकर,
सम्पूर्ण कर्मोंको मेरेमें अर्पण करके अनन्य भक्तियोगसे मुझ
सगुण-साकार परमेश्वरका ध्यान करते हुए मेरी उपासना करते हैं उनका मैं शीघ्र ही मृत्युरूप
संसार-समुद्रसे उद्धार करनेवाला बन जाता हूँ‒इसे बतानेके लिये भगवान् बारहवें अध्यायमें
अर्जुनके सामने ‘समुद्धर्ता’‒रूपसे प्रकट होते हैं (१२ । ७) ।
जाननेके लिये जितने विषय हैं,
उन सबमें अवश्य जाननेयोग्य तो एक परमात्मतत्त्व ही है । इस परमात्मतत्त्वके
सिवा दूसरे जितने भी जाननेयोग्य विषय हैं । उन्हें मनुष्य कितना ही जान ले,
पर उससे पूर्णता नहीं होगी । अगर वह परमात्मतत्त्वको जान ले
तो फिर अपूर्णता रहेगी ही नहीं‒यह बात जनानेके लिये भगवान् तेरहवें अध्यायमें अर्जुनके
सामने ‘ज्ञेयतत्त्व’‒रूपसे प्रकट होते हैं (१३ । १२‒१८) ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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