(गत ब्लॉगसे आगेका)
अपना सुख चाहनेवाला दुःखसे वंचित रह सकता ही नहीं । जो संसारका
सुख चाहता है, उसको दुःख भोगना पड़ेगा ही,
यह नियम है । इस बातका मेरेको खूब अनुभव है ! भाई हो,
चाहे बहन हो, जो दुनियाका, भोगोंका सुख चाहता है,
वह कभी सुखी नहीं हो सकता । यह मेरी खूब देखी हुई,
आजमाइश की हुई, लोगोंपर देखी हुई बात है । इसपर मैंने खूब विचार किया है । रुपयोंसे
सुविधा हो सकती है, पर सुख नहीं हो सकता । रुपयों जैसी निकम्मी चीज कोई नहीं है‒यह
मेरा निर्णय है । रुपयोंसे खरीदी हुई चीज काम आती है,
पर रुपया खुद कुछ काम नहीं आता । भोगोंसे सुख चाहनेवाला सांगोपांग
दुःख पाता है । सुख देनेकी चीज है, लेनेकी नहीं ।
भगवान्के भजनमें लग जाओ तो उन्नति जरूर होगी-यह नियम है । आप
भगवान्का नामजप करो, कीर्तन करो, भगवान्की बातें सुनो,
भक्तोंके चरित्र पढ़ो,
गीता-रामायण पढ़ो, विनयपत्रिका पढ़ो, आपको शान्ति जरूर मिलेगी । पहले गीता याद कर लो । फिर एकान्तमें
बैठकर गीताका उल्टा पाठ करो‒‘यत्र योगेश्वरः कृष्णो.......’
से लेकर ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे.......’
तक उल्टा पाठ करो तो समाधि लग जायगी,
आनन्द हो जायगा ! मैंने करके देखा है,
आप भी करके देखो । आपको जरूर शान्ति मिलेगी । चलते-फिरते,
उठते-बैठते हरदम भगवान्से कहो कि ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’
। आपको शान्ति मिलेगी ।
सत्संग सुननेसे अपने जीवनमें परिवर्तन होना चाहिये । अगर सत्संग
सुनकर भी भोग और संग्रहमें ही लगे रहें तो सत्संग सुनने और न सुननेमें फर्क क्या हुआ
? अगर आपके जीवनमें, आपके विचारोंमें परिवर्तन नहीं हुआ तो आपने सत्संगसे क्या लाभ
उठाया ? आप सत्संग अर्थात् ‘सत्’ का संग करते हो तो आपको सत्की तरफ चलना चाहिये कि असत्की तरफ
? सत्की तरफ चलें तो सत्संगका उपयोग है । अगर सत्की तरफ न चलें तो सत्संगका क्या
उपयोग हुआ ?
भोग भी असत् है और रुपया भी असत् है । परिवार-नियोजन केवल भोगके
लिये है । आज मर जायँ तो भोगा हुआ भोग क्या काम आयेगा ?
इकट्ठा किया हुआ रुपया क्या काम आयेगा ?
आप खुद विचार करो । भोग और संग्रह तो सदा साथ रहेंगे नहीं,
केवल भोगोंकी आसक्ति और रुपयोंका लोभ साथ रहेगा । आसक्ति और
लोभ बढ़ाकर अपना अन्तःकरण अशुद्ध कर लिया, क्या यह सत्संगका उपयोग हुआ ?
आपके विचार शुद्ध हो जाय,
आपका विवेक जाग्रत् हो जाय,
आप दुर्गुण-दुराचारसे हट जायँ तो आपका सत्संग सार्थक हो गया
।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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