।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७३, रविवार
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

समयकी जरूरत नहीं है । अपने-आपको बदलनेके बाद समयकी जरूरत नहीं रहती । अपनेको तो संसारी मानते हैं और भगवान्‌का भजन करना चाहते है तो वह पूरा भजन नहीं होता । समय लगाते हैं तो वह पूरा भजन नहीं होता ! अपने-आपको लगा देते हैं तो पूरा भजन होता है । साधकका पूरा समय ही साधन है । वह चौबीस घण्टे जो कुछ करता है, वह भगवान्‌का ही काम होता है । भगवान् संसारके मालिक हैं तो हमारे भी मालिक भगवान् हुए । अतः उनके लिये ही हम सब काम करते हैं । उपर्युक्त पंचामृत’ की एक-एक बात कल्याण करनेवाली है । भावकी जरूरत है, समयकी नहीं । आप भाव बदल दो तो सब समय भगवान्‌का भजन हो जायगा । भाव बदल दो तो दुनिया बदल जायगी‒‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) ! भगवत्प्राप्तिके समान सरल कोई काम है ही नहीं !

श्रोता‒हम किसीका बुरा करते नहीं, पर दूसरा हमारा बुरा करे तो क्या करें ?

स्वामीजी‒उससे हमें अपने कल्याणमें मदद मिलेगी ! वे बुरा करेंगे तो हमारेको दुःख होगा । उस दुःखसे हमारा पाप कटेगा, हम पवित्र होंगे । वास्तवमें हमारा बुरा कोई कर ही नहीं सकता । दुनिया सब मिलकर भी हमारा कल्याण नहीं कर सकती और अकल्याण भी नहीं कर सकती । दीखनेमें बुरा दीखता है, पर वास्तवमें हमारा भला ही होता है, हमारे पाप नष्ट होते हैं । दुःखसे अन्तःकरण शुद्ध होता है‒इसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है । किसीको मियादी बुखार हो जाय तो बादमें उसको भगवान्‌की बात सुनाओ तो वह बहुत जल्दी गद्‌गद हो जायगा !

श्रोता‒बुराई करनेवालेके प्रति हम बुराई करना नहीं चाहते, पर बुराई करनेसे उसकी बुराई कम होती दीखती है, इसलिये बुराई कर लेते हैं ।

स्वामीजी‒अगर बुराई करनेसे बुराई कम होती तो बुराई मिट जाती, पर वास्तवमें बुराई करनेसे बुराई बढ़ती है । दूसरेकी बुराईके बदले बुराई करनेपर बुराई दुगुनी होती है । बुरा बने बिना बुराई होती ही नहीं । चोर बने बिना चोरी होती ही नहीं । हत्यारा बने बिना हत्या होती ही नहीं । मनुष्य पहले बुरा बनता है, फिर बुराई करता है, और बुराई करनेसे बुराई दृढ़ हो जाती है ।

श्रोता‒पाठ आदि करते समय मन स्थिर नहीं रहता, इधर-उधर घूमता रहता है !

स्वामीजी‒बस, एक ही बात याद रखो, भगवान्‌को कह दो कि हे नाथ, देखो, मेरा मन चला गया !’ यह नियम बना लो कि जब पता लगे कि मन दूसरी ओर चला गया, तभी भगवान्‌को कह दो । आप निःसन्देह पवित्र हो जाओगे । आपका जीवन पवित्र हो जायगा ! कितनी सुगम, सरल बात है !

नारायण !     नारायण !! नारायण !!!

‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे