(गत ब्लॉगसे आगेका)
संसार नहीं है और परमात्मा है । जो नहीं है,
उसको ‘है’ मान लिया, इसीलिये जो ‘है’ वह परमात्मा नहीं दीखता । परमात्मा न दीखनेपर भी ‘यह संसार नाशकी तरफ जा रहा है’–क्या
यह नहीं दीखता ? थोड़ा-सा
विचार करो तो प्रत्यक्ष दीखता है कि हमारा बालकपन कहाँ गया ? कलवाला दिन
कहाँ गया ? बताओ । वह तो चला गया । कलवाला दिन चला गया तो आजवाला दिन नहीं जायगा
क्या ? महीना नहीं जायगा क्या ? वर्ष नहीं जायगा क्या ? उम्र नहीं जायगी क्या ? यह
तो जा ही रही है, प्रत्यक्ष बात है । इस बातको दृढ़तासे मान लो । किसीके देखनेमें, सुननेमें यह बात नहीं
आती हो तो बोलो !
श्रोता–आपने
कहा कि परमात्माकी सत्ताको मान लो तो परमात्मा मिल जायँगे, प्रकट हो जायँगे । ऐसा
हम मान ही रहे हैं; फिर हमारे माननेमें कहाँ भूल है ?
स्वामीजी–याद रखनेमें भूल होती है, माननेमें भूल नहीं होती । दो बाते
हैं–एक याद रखना, स्मरण करना और एक उस बातको स्वीकार करना, मान लेना । जैसे, यह गोविन्दभवन है, यह कलकत्ता है–ऐसा मान लिया तो इस
माने हुएमें भूल नहीं होती । माने हुएकी भूल तब मानी जायगी कि यह गोविन्दभवन नहीं
है, यह तो कोई सरकारी आफिस है–ऐसा मान लें । यह कलकत्ता नहीं है, यह तो बम्बई है–ऐसा मान लिया तो भूल गये । याद न
रहनेसे भूल नहीं होती । जैसे, भगवान्के नामका जप करते
हैं और वह छूट जाय तो यह करनेकी भूल है, माननेकी भूल नहीं है ।
श्रोता–तो
फिर दीखते क्यों नहीं ?
स्वामीजी–न दीखनेमें मुख्य आड़ यह है कि हम जानते हैं कि संसारका
प्रतिक्षण नाश हो रहा है, फिर भी इसको स्थायी मान लेते हैं ।
एक संत खड़े थे नदीके पास, तो किसीने कहा कि देखो महाराज !
नदी बह रही है । संत बोले कि जैसे नदी बह रही है, ऐसे ही पुलपर आदमी भी बह रहे है
और यह पुल भी बह रहा है । कैसे ? जिस दिन पुल बना था, उतना नया आज है क्या ? उसका
नयापन बह गया न ? नयापन बह गया और पुरानापन आ गया । जब सर्वथा पुराना हो जायगा तो
गिर जायगा । वास्तवमें वह जबसे बना, तभीसे उसका गिरना, नष्ट होना शुरू हो गया ।
ऐसे ही मनुष्य भी बह हैं । जितनी उम्र बीत गयी, उतने तो वे मर ही गये और अब भी
प्रतिक्षण मर रहे हैं । इस प्रकार यह जो संसार प्रतिक्षण
नष्ट हो रहा है, इसको ‘है’ मान लेते हैं । यही कारण है कि वे जो प्रभु हैं, वे
दीखते नहीं । ‘नहीं’ को ‘है’ मान लिया, यह उस प्रभुके दीखनेमें आड़ लगा दी ।
इस बातको बड़ी दृढ़तासे मान लो कि संसार
निरन्तर बह रहा है । दृढ़तासे न मान सको तो बार-बार याद
करो कि भाई, संसार तो बह रहा है । एक सिद्धान्त है कि जो आदि और अन्तमें नहीं होता है, वह
वर्तमानमें भी नहीं होता । जो आदि और अन्तमें होता है, वह वर्तमानमें भी होता है । जब यह संसार नहीं बना थी, तब भी परमात्मा थे और जब यह संसार
मिट जायगा, तब भी परमात्मा रहेंगे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे
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