।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७४, सोमवार
संसार जा रहा है...!



(गत ब्लॉगसे आगेका)

संसार नहीं है और परमात्मा है । जो नहीं है, उसको ‘है’ मान लिया, इसीलिये जो ‘है’ वह परमात्मा नहीं दीखता । परमात्मा न दीखनेपर भी ‘यह संसार नाशकी तरफ जा रहा है’–क्या यह नहीं दीखता ? थोड़ा-सा विचार करो तो प्रत्यक्ष दीखता है कि हमारा बालकपन कहाँ गया ? कलवाला दिन कहाँ गया ? बताओ । वह तो चला गया । कलवाला दिन चला गया तो आजवाला दिन नहीं जायगा क्या ? महीना नहीं जायगा क्या ? वर्ष नहीं जायगा क्या ? उम्र नहीं जायगी क्या ? यह तो जा ही रही है, प्रत्यक्ष बात है । इस बातको दृढ़तासे मान लो । किसीके देखनेमें, सुननेमें यह बात नहीं आती हो तो बोलो !

श्रोता–आपने कहा कि परमात्माकी सत्ताको मान लो तो परमात्मा मिल जायँगे, प्रकट हो जायँगे । ऐसा हम मान ही रहे हैं; फिर हमारे माननेमें कहाँ भूल है ?

स्वामीजी–याद रखनेमें भूल होती है, माननेमें भूल नहीं होती । दो बाते हैं–एक याद रखना, स्मरण करना और एक उस बातको स्वीकार करना, मान लेना । जैसे, यह गोविन्दभवन है, यह कलकत्ता है–ऐसा मान लिया तो इस माने हुएमें भूल नहीं होती । माने हुएकी भूल तब मानी जायगी कि यह गोविन्दभवन नहीं है, यह तो कोई सरकारी आफिस है–ऐसा मान लें । यह कलकत्ता नहीं है, यह तो बम्बई है–ऐसा मान लिया तो भूल गये । याद न रहनेसे भूल नहीं होती । जैसे, भगवान्‌के नामका जप करते हैं और वह छूट जाय तो यह करनेकी भूल है, माननेकी भूल नहीं है ।

श्रोता–तो फिर दीखते क्यों नहीं ?

स्वामीजी–न दीखनेमें मुख्य आड़ यह है कि हम जानते हैं कि संसारका प्रतिक्षण नाश हो रहा है, फिर भी इसको स्थायी मान लेते हैं ।

एक संत खड़े थे नदीके पास, तो किसीने कहा कि देखो महाराज ! नदी बह रही है । संत बोले कि जैसे नदी बह रही है, ऐसे ही पुलपर आदमी भी बह रहे है और यह पुल भी बह रहा है । कैसे ? जिस दिन पुल बना था, उतना नया आज है क्या ? उसका नयापन बह गया न ? नयापन बह गया और पुरानापन आ गया । जब सर्वथा पुराना हो जायगा तो गिर जायगा । वास्तवमें वह जबसे बना, तभीसे उसका गिरना, नष्ट होना शुरू हो गया । ऐसे ही मनुष्य भी बह हैं । जितनी उम्र बीत गयी, उतने तो वे मर ही गये और अब भी प्रतिक्षण मर रहे हैं । इस प्रकार यह जो संसार प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है, इसको ‘है’ मान लेते हैं । यही कारण है कि वे जो प्रभु हैं, वे दीखते नहीं । ‘नहीं’ को ‘है’ मान लिया, यह उस प्रभुके दीखनेमें आड़ लगा दी ।

इस बातको बड़ी दृढ़तासे मान लो कि संसार निरन्तर बह रहा है । दृढ़तासे न मान सको तो बार-बार याद करो कि भाई, संसार तो बह रहा है । एक सिद्धान्त है कि जो आदि और अन्तमें नहीं होता है, वह वर्तमानमें भी नहीं होता । जो आदि और अन्तमें होता है, वह वर्तमानमें भी होता है । जब यह संसार नहीं बना थी, तब भी परमात्मा थे और जब यह संसार मिट जायगा, तब भी परमात्मा रहेंगे ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे