हम भगवान्के अंश हैं‒ ‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५/७);
अतः हमारे गुरु, माता, पिता आदि सब वे ही हैं । वास्तवमें हमें गुरुसे सम्बन्ध नहीं
जोड़ना है, प्रत्युत भगवान्से ही सम्बन्ध जोड़ना है । सच्चा गुरु वही होता है, जो
भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ दे । भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़नेके लिये किसीकी सलाह
लेनेकी जरुरत नहीं है । भगवान्के साथ जीवमात्रका स्वतन्त्र सम्बन्ध है । उसमें
किसी दलालकी जरुरत नहीं है । हम पहले गुरु बनायेंगे, फिर गुरु हमारा सम्बन्ध
भगवान्के साथ जोड़े तो भगवान् हमारेसे एक पीढ़ी दूर हो गये ! हम पहलेसे ही सीधे
भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ लें तो बीचमें दलालकी जरूरत ही नहीं । मुक्ति हमारे न
चाहनेपर भी जबर्दस्ती आयेगी‒
अति दुर्लभ कैवल्य परम पद ।
संत
पुरान निगम आगम बद ॥
राम भजत सोई मुकुति गोसाई ।
अनइच्छत
आवइ बरिआईं ॥
(मानस, उत्तर॰ ११९/२)
इसलिये
भगवान् गीतामें कहते हैं‒
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां
नमस्कुरु ।
(गीता ९/३४, १८/६५)
‘तू मेरा भक्त हो जा, मुझमें मनवाला हो जा, मेरा पूजन
करनेवाला हो जा और मुझे नमस्कार कर ।’
सर्व धर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं
व्रज ।
(गीता १८/६६)
‘सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा
।’ भगवान् गुरु न बनकर अपनी शरणमें आनेके लिये कहते हैं ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ?’
पुस्तकसे
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