(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒गीतामें आये ‘अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय’ (गीता १२ । ९) ‘अभ्यासयोगके द्वारा तू मेरी
प्राप्तिकी इच्छा कर’‒इसका क्या अर्थ
हुआ ?
स्वामीजी‒यहाँ अभ्यास नहीं कहा है, प्रत्युत ‘अभ्यासयोग’
कहा है । ‘योग’ का अर्थ समता है‒‘समत्वं योग
उच्यते’ (गीता २ । ४८) ।
सबके भीतर अभ्यासकी बात बैठी हुई है कि जो कुछ होगा, अभ्याससे होगा । इसीलिये
बोध होनेमें कठिनता हो रही है !
यद्यपि नामजप, कीर्तन, प्रार्थना
भी अभ्यासके अन्तर्गत हैं, तथापि ये अभ्याससे तेज हैं । ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ यह पुकार अभ्याससे बहुत तेज है । पुकार, नामजप आदिमें भगवान्की
सहायता है, पर अभ्यासमें अपनी सहायता है । अभ्यासमें अपने उद्योगसे
काम होता है, पर पुकारमें भगगवान्की कृपा
काम करती है । आप अभी अभ्यासके राज्यमें ही बैठे हुए हैं । आपके संस्कार अभ्यासके हैं
। अगर आप नामजप,
कीर्तन, प्रार्थनामें लग जाओ तो आपको बहुत लाभ
होगा ।
मेरेको खास बात यह जँचती है कि जड़ और चेतनका विभाग होना
चाहिये । जितने भी साधक हैं, उनके लिये आरम्भमें ही जड़ और चेतनका विभाग करना
बहुत आवश्यक है । इसीलिये गीतामें सबसे पहले (गीता २ । ११ से
२ । ३० तक) देह और देही, शरीर और शरीरीका
विवेचन हुआ है । इस विवेचनको टीकाकार आत्मा-अनात्माका विवेचन
बताते हैं, पर इन बीस श्लोंकोंमें आत्मा-अनात्माका नाम ही नहीं है ! न ईश्वरका नाम है,
न जगत्का नाम है, न मायाका
नाम है, न अविद्याका नाम है, न प्रकृतिका
नाम है ! इसलिये मैं एक बात कहा करता हूँ कि गीताका विवेचन और
शास्त्रका विवेचन दो तरहका है । कई आदमियोंने ऐसा कहा है
और वे प्रचार करते हैं कि गीताका अर्थ समझना हो तो पहले शास्त्रोंको पढ़ो । शास्त्र
पढ़े बिना गीताका अर्थ समझमें नहीं आता । परन्तु मैं कहता हूँ कि शास्त्र पढ़नेसे गीताका
अर्थ समझमें आयेगा ही नहीं !
आपको यह बात खास जाननी चाहिये कि आप शरीरी (शरीरवाले) हैं, शरीर नहीं हैं । आप शरीरसे अलग हैं । चौरासी लाख
योनियोंमें किसी शरीरके साथ आप नहीं रहे, फिर इस शरीरके साथ आप
कैसे रहेंगे ? यह ज्ञान पहले होना चाहिये कि शरीर अलग है,
आप अलग हो । शरीर जड़ है और शरीरी चेतन है । थोड़ा विचार करो, चौरासी लाख योनियाँ आपने छोड़ दी तो क्या मनुष्यशरीरको साथ रखोगे ? क्या आप शरीरके साथ रहोगे ? क्या शरीर आपके साथ रहेगा
? मनुष्यशरीरकी जो महिमा है, वह ढाँचेको लेकर नहीं है, प्रत्युत उसमें जो विवेकशक्ति है, उसकी महिमा है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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