केवल भगवान् ही मेरे हैं । मैं औरोंका नहीं हूँ तथा मेरा और
कोई नहीं है‒ऐसा अपनापन करके साथमें फिर नाम जपो तो उस नामका भगवान्पर असर होता है
। परन्तु कइयोंसे सम्बन्ध रखते
हैं, धन-परिवारसे सम्बन्ध रखते हैं और नाम लेते हैं तो नाम न लेनेकी अपेक्षा लेना तो
श्रेष्ठ है ही और जितना नाम लेता है, उतना तो लाभ होगा ही;
परन्तु वह लाभ नहीं होगा,
जो लाभ सच्चे हृदयसे अपना सम्बन्ध परमात्माके साथ जोड़कर फिर
नाम लेनेवालेको होता है ।
‘तुलसी तजि कुसमाजु’ कुसंगका त्याग करो । कुसंग क्या है
? यह धन हमारा है, सम्पत्ति
हमारी है‒यह कुसंग है । जो धनके
लोभी हैं, भोगोंके कामी हैं, उनका संग कुसंग है । जो परमात्मासे
विमुख हैं, उनका संग महान् कुसंग है । वह कुसमाज है, उनसे
बचो । नहीं तो महाराज ! थोड़ा-सा
कुसंग भी आपकी वृत्तियोंको बदल देगा, एकदम भगवान्से विमुख कर देगा । लोग कहते हैं कि भगवद्भजनमें
इतनी ताकत नहीं, जो कुसंग इतना असर कर जाय । वह ताकत कुसंगमें नहीं है भाई,
प्रत्युत अपने भीतरमें अनेक तरहके जो विरुद्ध संस्कार पड़े हुए
हैं, भगवद्भजनके विरुद्ध संस्कार पड़े हैं । वे संस्कार कुसंगसे उभर जाते हैं,
जग जाते हैं । इस वास्ते कुसंगका बड़ा असर पड़ता है । आप भजन करोगे
तो वे सब संस्कार नष्ट हो जायेंगे, फिर‒‘बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं । फनि
मनि सम निज गुन अनुसरहीं ॥’ कभी किसी कारणसे कोई सज्जन कुसंगमें पड़ भी जायें तो जैसे साँपकी
मणि होती है, उसको जहर नहीं लगता । वह तो जहरके ऊपर रखनेसे जहरका शोषण कर
लेती है, पर वह खुद जहरीली नहीं होगी । इसी तरहसे आप भजनमें तल्लीन हो जाओगे, तदाकार
हो जाओगे तो फिर आपका मन नहीं बदलेगा,
आपके ऊपर कुसंगका असर नहीं पड़ेगा । कारण कि आपके
अन्तःकरणमें भगवत्-सम्बन्धी संस्कार दृढ़ हो गये, प्रत्युत
कुसंगपर आपका असर पड़ेगा, भजनका असर पड़ेगा । परन्तु इतनी शक्ति होनेसे पहले
सावधान रहो । कुसंगका त्याग करके और भगवान्के होकर मस्तीसे भगवान्के नामका जप करो
। चलते-फिरते,
उठते-बैठते हर समय करो । इसमें जब मन लग जाता है,
फिर छूटता नहीं ।
मैंने एक सज्जन देखे हैं । उनके सफेद ही कपड़े थे,
पर वे ‘राम-राम-राम’ करते रहते थे । जैसे चलते-चलते कोई पीछे रह जाता है और फिर दौड़कर
आ जाता है, इसी तरहसे वे पहले धीरे-धीरे ‘राम-राम-राम’
करते थे, फिर बड़ी तेजीसे जल्दी-जल्दी करते थे । रातमें भी उनके पास रहनेका
मेरा काम पड़ा है तो वे रातमें भी और दिनमें भी नाम जपते । थोड़ी देर नींद आती,
नींद खुलनेपर फिर ‘राम-राम-राम’
। हर समय ही ‘राम-राम-राम’
। भोजन करते हैं तो '
राम-राम-राम ' । ग्रास लेते हैं तो ‘राम-राम-राम’
। किसी समय जाकर देखें तो वे भगवान्का नाम लेते हुए ही मिलते
थे । ऐसी लौ लग जायगी तो फिर नहीं छूटेगी । फिर हाथकी बात
नहीं है कि आप छोड़ दें । वह एक ऐसा विलक्षण रस है कि एक बार जो लग जाता है तो फिर वह
लग ही जायगा । परमात्मतत्त्व-सम्बन्धी बातें हों,
परमात्म-सम्बन्धी नाम हो,
भगवान्की लीला हो,
गुण हो, प्रभाव हो, रहस्य हो‒भगवान्का जो कुछ भी समझ आ जायगा,
उसको आप छोड़ सकोगे नहीं ।
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