वास्तवमें महिमा
है शरीरके सदुपयोगकी । इसका उपयोग ठीक तरहसे किया जाय तो भगवान्की श्रेष्ठ भक्ति
मिल जाय, वैराग्य मिल जाय, सब कुछ मिल जाय । ऐसी कोई चीज नहीं जो मनुष्य-शरीरसे न
मिल सके । गीतामें आया है‒
यं लब्ध्वा चापरं
लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।
(६/२२)
जिस लाभकी
प्राप्ति होनेके बाद कोई लाभ शेष न रहे । माननेमें भी नहीं आ सकता कि इससे बढ़कर
कोई लाभ होता है और जिसमें स्थित होनेपर वह बड़े भारी दुःखसे भी विचलित नहीं किया
जा सकता । किसी कारण शरीरके टुकड़े-टुकड़े किये जायँ तो टुकड़े करनेपर भी आनन्द रहे,
शान्ति रहे, मस्ती रहे । दुःखसे वह विचलित नहीं हो सकता । उसके आनन्दमें कमी नहीं
आ सकती ।
तं
विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् ।
(गीता ६/२३)
इतना आनन्द होता है कि दुःख वहाँ रहता ही नहीं । ऐसी चीज प्राप्त
हो सकती है मानव-शरीरसे । मनुष्य-शरीरको प्राप्त करके
ऐसे ही तत्त्वकी प्राप्ति करनी चाहिये । उसे प्राप्त न करके झूठ, कपट, बेईमानी,
विश्वासघात, पाप करके नरकोंकी तैयारी कर लें तो कितना महान् दुःख है ।
यह खयाल करनेकी
बात है कि मनुष्य-शरीर मिल गया । अब भाई अपनेको नरकोंमें नहीं जाना है । चौरासी लाख योनियोंमें नहीं जाना है । नीची योनियोंमें
क्यों जायें ? चोरी करनेसे, हत्या करनेसे, व्यभिचार करनेसे, हिंसा करनेसे,
अभक्ष्य-भक्षण करनेसे, निषिद्ध कार्य करनेसे मनुष्य नरकोंमें जा सकता है । कितना सुन्दर अवसर भगवान्ने दिया है कि जिसे देवता भी प्राप्त
नहीं कर सकते, ऐसा ऊँचा स्थान प्राप्त किया जा सकता है‒इसी जीवनमें । प्राणोंके
रहते-रहते बड़ा भारी लाभ लिया जा सकता है । बहुत शान्ति, बड़ी प्रसन्नता, बहुत
आनन्द‒इसमें प्राप्त हो जाता है । ऐसी प्राप्तिका अवसर है मानव-शरीरमें । इसलिये
इसकी महिमा है । इसको प्राप्त करके भी जो नीचा काम करते
हैं, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं ।
कोई बढ़िया चीज
मिल जाय तो उसका लाभ लेना चाहिये । जैसे किसीको पारस मिल जाय तो उससे लोहेके
छुआनेसे लोहा सोना बन जाय । अगर ऐसे पारससे कोई बैठा चटनी पिसता है तो वह पारस
चटनी पीसनेके लिये थोड़े ही है । पारस पत्थरसे चटनी पीसना ही नहीं, कोई अपना सिर ही
फोड ले तो पारस क्या करे ? इसी तरह मानव-शरीर मिला, इससे
पाप, अन्याय, दुराचार करके नरकोंकी प्राप्ति कर लेना अपना सिर फोड़ना है । संसारके
भोगोंमें लगना‒चटनी पीसना है ।
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