संसारका राग, खिंचाव अज्ञानका चिह्न है,
मूर्खताकी खास पहचान है‒‘रागो लिंगमबोधस्य चित्तव्यायामभूमिषु ।’ जितने दर्जेका नाशवान्में खिंचाव है, उतने ही दर्जेका मूर्ख
है । वृक्षके कोटरमें आग लगा दे और फिर ऊपरकी तरफ देखकर प्रतीक्षा करे कि वृक्ष कब
हरा होगा, उसमें कब फल-फूल लगेंगे, तो यह मूर्खता ही है । इसी तरह संसारमें तो राग है और देखते हैं कि सुख-शान्ति मिलेगी, प्रसन्नता
होगी ! यह होगा नहीं कभी ।
मनुष्य क्या करते हैं ? राग तो बढ़ाते जाते हैं
और चाहते हैं शान्ति । इतना धन
हो जाय तो सुख हो जायगा, इतनी सम्पत्ति हो जाय तो सुख हो जायगा । अरे भाई ! धन-सम्पत्तिके होनेसे सुख नहीं होता । आपको वहम हो
तो परीक्षा करके देख लें । जिसके पास ज्यादा-से-ज्यादा धन हो, उससे मिलकर
पूछो कि आपको किसी तरहका दुःख तो नहीं है ? किसी तरहकी अशान्ति तो नहीं है ? वह
पोल निकाल देगा तो आपका समाधान हो जायगा !
एक घरमें चूहे बहुत हो गये । उनको मारना तो ठीक नहीं, पकड़कर
दूर जंगलमें छोड़ दें, जहाँ सुरक्षित रहें‒ऐसा सोचकर चूहोंको पकड़नेके लिये तारोंसे
बना पिंजड़ा ले आये । उसमें रोटीके टुकड़े रख दिये और उसको अँधेरेमें रख दिया । अब
चूहे आते हैं और चारों तरफ चढ़ते हैं कि किसी तरहसे पिंजड़ेमें पड़ी रोटी मिल जाय तो
हम निहाल हो जायँ ! ढूँढ़ते-ढूँढ़ते दरवाजा मिल जाता है । उधर जाते ही स्प्रिंग
लगी हुई पट्टी (बोज पड़नेपर) नीचे झुक जाती है और चूहा पिंजड़ेमें चला जाता है ।
भीतर जाते ही पट्टी वापस ऊपर हो जाती है । इधर बाहर खटका लगता है और उधर चूहेके
भीतर खटका लगता है । अब वह रोटी खाना भूलकर इधर-उधर दौड़ता है और बाहर निकलनेका
उद्योग करता है कि कैसे निकलूँ कैसे ? बाहरवाले चूहे समझते हैं कि यह भीतरवाला
चूहा बड़ी मौजमें है । अंदर कितनी रोटी पड़ी है और कितनी मौजमें धूमता है । हम ही
बाहर रह गये । उनमेंसे कोई दरवाजा ढूँढ़ लेता है और भीतर चला जाता है तो मुश्किल
हो जाती है । दोनों पिंजड़ेके भीतर लड़ते हैं और
इधर-उधर दौड़ते हैं । बाहरके चूहे देखते हैं कि ये तो मौज करते हैं, हम बाहर
वंचित रह गये । इस तरह चूहे उसमें फँसते जाते हैं । यह पिंजड़ा तो दूसरोंका बनाया
हुआ होता है । परन्तु जिस पिंजड़ेमें हम फँसते
हैं, वह हमारा ही बनाया हुआ होता है ।
जिसके पास धन कम होता है, वे देखते हैं कि झूठ,
कपट, बेईमानी, चोरी आदि करके किसी तरहसे अधिक-से-अधिक धन इकठ्ठा कर लें तो हम सुखी
हो जायँगे । धन हो जानेसे खूब मौज हो जायगी, आनन्द हो जायगा । जिनका विवाह नहीं
हुआ है, वे देखते हैं कि विवाह किये हुए बड़ी मौजमें हैं, हम रीते ही रह गये । किसी
तरहसे हमारा विवाह हो जाय ! जब उनका विवाह हो जाता है और पूछते
हैं‒जे रामजीकी ! क्या ढंग है ? तब वे कहते हैं‒फँस गये ! बड़े शहरोंमें
नौकरी करते हैं । अकेले होते तो कहीं भी रह जाते, पर अब बड़ी मुश्किल हो गयी !
बाल-बच्चोंको कहाँ रखें ? कैसे रहें ? उनकी पढ़ाई आदिका प्रबन्ध करना है । वे बड़े
हो जायँ तो उनका विवाह करना है । बड़ी आफत आ जाती है । ऐसे ही लोग कहते हैं कि बड़े
धनी आदमी हैं, बड़े सुखी हैं, बड़े आराममें हैं । उनके पास रहकर देखो । उनको रातमें चैनसे नींद नहीं आती । समयपर भोजन नहीं कर सकते ।
दोपहरके दो बज जायँ तो भी रोटी खानेकी फुरसत नहीं मिलती । रातमें ग्यारह-बारह बज
जाते हैं । मेरे सामने अनेक उदहारण आये हैं । मैं केवल पुस्तककी बात नहीं
कहता । देखी हुई बात भी कहता हूँ । पुस्तकोंकी बातें सच्ची हैं ही; क्योंकि
ऋषि-मुनियोंने अनुभव करके लिखा है ।
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