ऐसे ही आप अपनी करनीकी तरफ मत
देखो, अपने पापोंकी तरफ मत देखो, केवल भगवान्की तरफ देखो । जैसे विदुरानी
भगवान्को छिलका देती हैं तो भगवान् छिलका ही खाते हैं । छिलका खानेमें भगवान्को
जो आनन्द आता है, वैसा आनन्द गिरी खानेमें नहीं आता । कारण कि विदुरानीके मनमें यह
भाव है कि भगवान् मेरे हैं । जैसे बच्चेको भूखा देखकर माँ जिस भावसे उसको खिलाती
है, उससे भी विशेष भाव विदुरानीमें है । ऐसे ही आप
भगवान्को अपना मान लो । जीने-मरने आदि किसीकी भी परवाह मत करो । किसीसे डरो मत ।
किसीकी भी गरज करनेकी जरूरत नहीं । बस, एक ही विचार रखो कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई’ । अगर यह विचार कर लोगे तो निहाल हो जाओगे । परन्तु बहुत
धन कमा लो, बहुत सैर-शौकीनी कर लो, बहुत मान-बड़ाई प्राप्त कर लो यह सब कुछ काम
नहीं आयेगा‒
सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुम्ब धन धाम,
हो सचेत बलदेव नींदसे, जप ईश्वरका नाम ।
मनुष्य तन फिर फिर नहिन् होई,
किया शुभ कर्म नहीं कोई,
उम्र सब
गफलतमें खोई ।
अब आजसे भगवान्के होकर रहो । कोई क्या कर रहा
है, भगवान् जानें । हमें मतलब नहीं है । सब संसार नाराज हो जाय तो परवाह नहीं, पर
भगवान् मेरे हैं‒इस बातको
छोड़ो मत । मीराबाईको जँच
गयी कि अब मैं भगवान्से दूर होकर नहीं रह सकती‒ ‘मिल बिछुड़न
मत कीजै’ तो उनका डेढ़-दो मनका थैला शरीर भी नहीं मिला, भगवान्में समा गया
! एक ठाकुरजीके सिवाय किसीसे कोई मतलब नहीं है ।
अंतहुँ तोहिं तजैंगे पामर, तू न ताजे अबही ते ।
(विनयपत्रिका
११८)
अन्तमें तुझे छोड़ देंगे, कोई तुम्हारा नहीं रहेगा तो फिर
पहलेसे ही छोड़ दे ।
साधु विचारकर भली समझ्या, दिवी जगत
को पूठ ।
पीछे देखी बिगड़ती, पहले बैठा
रूठ ॥
पीछे तो सब बिगड़ेगी ही, फिर अपना काम बिगाड़कर बात बिगड़े तो
क्या लाभ ? अपने तो अभी-अभी भगवान्के हो जाओ । तुम तुम्हारे, हम हमारे । हमारा कोई नहीं, हम किसीके नहीं, केवल भगवान् हमारे हैं, हम
भगवान्के हैं । भगवान्के चरणोंकी शरण होकर मस्त हो जाओ । कौन राजी है,
कौन नाराज; कौन मेरा है, कौन पराया, इसकी परवाह मत करो । वे निन्दा करें या
प्रशंसा करें; तिरस्कार करें या सत्कार करें, उनकी मरजी । हमें निन्दा-प्रशंसा,
तिरस्कार-सत्कारसे कोई मतलब नहीं । सब राजी ही जायँ तो हमें क्या मतलब और सब नाराज हो जायँ तो हमें
क्या मतलब ?
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