।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७६ रविवार 
         देशकी वर्तमान दशा और
               उसका परिणाम


भीष्मजी कौरवसेनाकी रक्षा करनेवाले थे−‘अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीमाभिरक्षितम्’ (गीता १/१०); परंतु दुर्योधन उनकी रक्षा करनेके लिए अपनी सेनाको आदेश देता है−‘भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि’ (गीता १/११) । कारण कि दुर्योधन जानता था कि शिखण्डीके सामने आनेपर भीष्मजी उसपर कभी शस्त्र नहीं चलायेंगे, भले ही अपने प्राण चले जायँ ! शिखण्डी पहले स्त्री था, वर्तमानमें नहीं; परंतु वर्तमानमें पुरुषरूपसे होनेपर भी भीष्मजी उसको स्त्री ही मानते हैं और उसपर शस्त्र नहीं चलाते, प्रत्युत मरना स्वीकार कर लेते हैं−यह स्त्री-जातिका कितना सम्मान है !

थोड़े वर्ष पहलेकी बात है । एक बार जोधपुरके राजा सर उम्मेदसिंहजी और बीकानेरके राजा शार्दूलसिंहजी शिकारके लिये जंगल गये । वहाँ शार्दूलसिंहजीकी गोली पैरमें लगनेसे एक सिंहनी घायल हो गयी । घायल होकर वह गुर्राती हुई उनकी तरफ आयी तो उम्मेदसिंहजीने कहा−‘हीरा ! यह क्या किया ? यह तो मादा है !’ पता लगनेपर उन्होंने पुनः उसपर गोली नहीं चलायी और खुद चेष्टा करके उससे अपना बचाव किया । यह नारी-जातीका कितना सम्मान है !

शास्त्रोंने पुरुषोंके लिये तो सन्ध्योपासना, अग्निहोत्र, यज्ञ, वेदपाठ आदि कई कर्तव्य-कर्म बताये हैं, पर स्त्रियोंको उन सब कर्तव्य-कर्मोंसे, पितृऋण आदि ऋणोंसे मुक्त रखा है और उसको पतिके आधे पुण्यकी भागीदार बनाया है । परंतु शास्त्रको न जाननेवाले इस विषयको क्या समझें ? आज स्त्रियोंको उनके कर्तव्यसे विमुख करके अनेक झंझटोंमें फँसाया जा रहा है । शास्त्रोंने केवल पुरुषको ही यज्ञोपवीत धारण करके सन्ध्योपासना आदि विशेष कर्मोंको करनेकी आज्ञा दी है | परंतु आज स्त्रीको यज्ञोपवीत देकर उसको उलटे आफतमें डाला जा रहा है ! क्या यह बुद्धिमानीकी बात है ? पत्नी पतिके द्वारा किये गये पुण्य-कर्मोंकी भागीदार तो होती है, पर पाप-कर्मोंकी भागीदार नहीं होती । उसको मुफ्तमें आधा पुण्य मिलता है । समाजमें भी देखा जाता है कि अगर डॉक्टर, पण्डित आदिकी पत्नी अनपढ़ हो तो भी वह डॉक्टरनी, पण्डितानी आदि कहलाती है ! वास्तवमें आज अभिमानको मुख्यता दी जा रही है, इसलिए नम्रता बढ़ानेकी बात न कहकर अभिमान बढ़ानेकी बात ही कही और सिखायी जा रही है, जो कि पतनका हेतु है । ‘पुरुष ऐसा करते है तो हम क्यों न करें ? हम पीछे क्यों रहें ?’−यह केवल अभिमान बढ़ानेकी बात है । अभिमान जन्म-मरणका मूल और अनेक प्रकारके क्लेशों तथा समस्त शोकोंका देनेवाला है−

संसृति  मूल    सूलप्रद  नाना  ।
सकल सोक दायक अभिमाना ॥
                             (मानस. उत्तर. ७४/३)