।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७६ बुधवार 
         देशकी वर्तमान दशा और
               उसका परिणाम


देशमें जिस गतिसे हिंसा बढ़ रही है, ऐसे बढ़ती रही तो एक समय पशुधन नष्ट हो जायगा और मांसाहारी मनुष्य मनुष्योंको ही खाने लगेंगे ! ऐसे मनुष्य ही राक्षस होते हैं । रामावतारके समय भी ऐसी दशा हुई थी कि राक्षसोंने मुनियोंको खा-खाकर उनकी हड्डियोंके ढेर लगा दिए थे—

अस्थि समूह देखि रघुराया  ।  पूछी  मुनिन्ह  लागि अति दाया ॥
जानतहूँ  पूछीअ  कस  स्वामी  ।   सबदरसी  तुम्ह  अंतरजामी ॥
निसिचर निकर सकल मुनि खाए ।  सुनी रघुबीर नयन जल छाए ॥
                                          (मानस, अरण्यकाण्ड ९/३-४)


राक्षसोंने गृहस्थोंको न खाकर मुनियोंको ही क्यों खाया ? ऐसा अनुमान होता है कि घास खानेवाले मांसकी अपेक्षा अन्न खानेवालेका मांस बढ़िया होना चाहिये । सिंहके मुखमें भी मनुष्यका मांस लग जाय तो वह नरभक्षी बन जाता है । मनुष्योंमें भी जो संयमी, ब्रह्मचारी और साधु पुरुष हैं, उनका मांस ज्यादा बढ़िया होना चाहिये; क्योंकि संयमी पुरुषकी हर चीज बढ़िया होती है । आजकल भी हम देखते हैं कि जो बछड़े बैल बना दिये जाते हैं, उनके मांसमें वह शक्ति नहीं होती, जो बैल न बनाये हुए बछड़ोंके मांसमें रहती है । अतः बैल बनाये हुए बछड़ोंका मांस मुस्लिम देशोंमें सस्ता बिकता है । इसलिये राक्षसोंने गृहस्थोंको न खाकर संयमी मुनियोंको खाया । जितने भी श्रेष्ठ पुरुष होते हैं, वे संयमी होते हैं । संयमी पुरुषोंके नाशसे कितना महान् पतन होगा !