अतः इस संसारके रहते हुए भी परमात्मा हैं । संसार
पहले नहीं था और पीछे नहीं रहेगा, तो बीचमें दीखते हुए भी संसार नहीं है । कारण कि
बीचमें दीखते हुए भी वह प्रतिक्षण ‘नहीं’ में जा रहा है । हमारी
बाल्यावस्था जैसे ‘नहीं’ में चली गयी, ऐसे ही जवानी भी ‘नहीं’ में चली जायगी,
वृद्धावस्था भी ‘नहीं’ में चली जायगी, जीवन भी ‘नहीं’ में चला जायगा । इसमें असावधानी यह होती है कि संसारको ‘नहीं’ जानते हुए भी
उसको ‘है’ मान लेते हैं । अज्ञानी किसका नाम है ? जो जानते हुए भी
न माने, उसका नाम अज्ञानी है । भीत-(-दीवार) को कोई अज्ञानी नहीं कहता; क्योंकि वह
तो कुछ भी नहीं जानती । जो जानता है, उसको मानता है,
उसका नाम ज्ञानी है ।
श्रोता–महाराजजी
! रामका नाम लेनेसे प्रारब्ध कट जाता है ? जान-अनजानमें हुए पाप कट जाते हैं ?
स्वामीजी–कट जाते हैं । मैंने जो बात
कही है न, उससे सब-के-सब पाप कट जायँगे । परमात्मा है और संसार नहीं है–इस बातको
दृढ़तासे मानते हुए नामजप करो तो जल्दी काम होगा । संसारको ‘है’ मानते रहोगे तो
वर्षोंतक नामजप करनेपर भी सिद्धि नहीं होगी । नामजप निरर्थक नहीं जायगा;
परन्तु प्रत्यक्ष उसका फल नहीं दीखेगा ।
परमात्मा है–यह तो हम शास्त्रोंसे,
सन्तोंसे सुन करके मानते हैं । परन्तु संसार प्रतिक्षण नाशकी तरफ जा रहा है–यह तो प्रत्यक्ष दीखता है । अगर इस बातको मान लें कि जो दीखता
है, वह संसार है नहीं, तो संसारका ज्ञान हो जायगा । अगर संसारको ‘है’ मानते है, तो
संसारका ज्ञान नहीं हुआ है । संसारका ज्ञान होनेसे परमात्माका ज्ञान हो जायगा और
परमात्माका ज्ञान होनेसे संसारका ज्ञान हो जायगा ।
संसार अभावकी तरफ जा रहा है, नष्ट हो रहा है–यह जागृति हरदम
रहनी चाहिये । यह बहुत
बढ़िया साधन है । यह सब तो जा रहा है–ऐसी सावधानी रखते हुए नामजप करो । ये शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धि, यह जबान, यह जप–सब जा रहा
है, पर जिसके नामका जप कर रहे हैं, वह जाता ही नहीं कभी । वह तो रहेगा ही | उसीका
जप कर रहे हैं, उसीको याद कर रहे हैं ।
श्रोता–यह
जा रहा है–ऐसा कहनेसे जागृति हो जायगी ?
स्वामीजी–ऐसा कहनेसे
जागृति नहीं होगी, भीतर माननेसे जागृति होगी । अगर परमात्माको और संसारको जाननेकी सच्ची नीयत है तो ऐसा कहनेसे भी वह बात माननेमें आ जायगी । परमात्मा अविनाशी है और संसार नाशवान् है–इसको जाननेके
उद्देश्यसे आप बार-बार कहोगे तो भी जागृति हो जायगी । परन्तु जो बात वर्तमानमें काम न
आये, उससे क्या लाभ ? यह जो बात मैं कह रहा हूँ, इस बातको आप दृढ़तासे मान लो तो
वर्तमानमें काम आयेगी । आज एक दिन मानकर देख लो ।
इसको सजग होना, जाग्रत् होना कहते हैं । एक दिन आप सजग होकर देखो । सन्तोंकी
वाणीमें आता है–‘दिलमें जाग्रत रहिये बन्दा’ और ‘जाग्रत नगरीमें चोर न लागे, झख मारेला जमदूता । जाग्या गोरखनाथ
जग सूता ॥’ जाग्रत् रहनेवालेको यमदूत नहीं मार सकेगा । वह शरीरको मारेगा,
तो शरीर तो पहलेसे ही मर रहा है ! अब यमदूत क्या करेगा ? बताओ ।
‘इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।’
(गीता ५/१९)
समरूप परमात्मामें जिनका मन स्थिर हो गया है, उन्होंने
मात्र संसारको जीत लिया । वे विजयी हो गये । उनके सामने सब संसार हार गया । जो मर
रहा है, वह संसार हमारा क्या बिगाड़ सकता है ? आप कृपा
करके इस बातको मान लें ।
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