।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७७ रविवार
नाशवान‌्की मुख्यतासे हानि



हमलोगोंकी मुख्य भूल क्या होती है ? कि जो जड है, नाशवान्‌ है, परिवर्तनशील है, उसको सच्‍चा मान लेते हैं; मुख्य मान लेते हैं और जो चेतन है, अविनाशी है, अपरिवर्तनशील है, उसको गौण मान लेते हैं । हम शरीरकी मुख्यताको ले करके सब काम करते हैं । हम तो यहीं (संसारमें) रहनेवाले हैं, यहाँके ही आदमी हैं–इस प्रकार हमने अपनेको शरीर-संसारके साथ मान लिया । शरीरका आदर हमारा आदर हो गया, शरीरकी निन्दा हमारी निन्दा हो गयी–इस प्रकार जड़ताकी मुख्यताको लेकर चलने लगे और चेतनकी मुख्यताको बिलकुल भुला दिया, मानो है ही नहीं ! मुख्यमें अमुख्यकी भावना और अमुख्यमें मुख्यकी भावना; जो वास्तविक है, उसका तिरस्कार और जो अवास्तविक है, उसका आदर–यह मूल भूल हो गयी । अब कई भूलें होंगी । एक भूलमें अनन्त भूलें होती हैं ।

धुर बिगड़े सुधरे नहीं, कोटिक करो उपाय ।
ब्रह्माण्ड लौं बड़ गये, वामन नाम न जाय ॥

भगवान्‌के अवतारोंमें सबसे लम्बा ‘त्रिविक्रम’ अवतार हुआ, जिसके तीन कदम भी त्रिलोकीमें पूरे नहीं हुए ! परन्तु उसका नाम तो ‘वामन-अवतार’ ही हुआ । इतना बड़ा अवतार होनेपर भी नाम तो छोटा ही रहा । कारण कि आरम्भमें, मूलमें ही बात बिगड़ गयी, तो अब कितना ही प्रयत्‍न करो, बात सुधरेगी नहीं । ऐसे ही मूलमें जड़ताको मुख्यता दे दी, तो अब भूलोंका अन्त नहीं आयेगा, तरह-तरहकी भूलें होंगी । अगर हम इस भूलको सुधारना चाहें तो हमारे लिये एक बहुत आवश्यक बात है कि जड़ क्षणभंगुर शरीरकी मुख्यता न रखें ।


यह प्रत्यक्ष अनुभवकी बात है कि मैं नहीं बदला हूँ, शरीर बदला है । फिर भी बदलनेवालेकी ही मुख्यता देते हैं कि हम छोटे हो गये, हम बड़े हो गये, हम स्वस्थ हो गये, हम बीमार हो गये, हमारा आदर हो गया, हमारा निरादर हो गया ! कहाँ तुम्हारा आदर हो गया ? कहाँ निरादर हो गया ? हमारी बात नहीं रही, तुम्हारी बात रह गयी तो बाधा क्या लगी ? इस न रहनेवाली चीजकी भी कोई सत्ता है क्या ? इसकी भी कोई महत्ता है क्या ? पर मूलमें है क्या ? पर मूलमें जड़ताकी, नाशवान्‌की मुख्यता मान ली । जो वास्तविक है, उसकी परवाह ही नहीं ! अब बातें सुनाओ, पढ़ाओ, सब कुछ करो, पर भूलको छोड़ेंगे नहीं ! बस, हमारे नामकी महिमा होनी चाहिये, हमारे रूपका आदर होना चाहिये–यह बात भीतर बैठी है । अब कितना ही सुनो-सुनाओ, सब रद्दी हो जायगा ! अब इस बातको जान लें कि वास्तवमें नाम हमारा नहीं है, हमारा रूप शरीर नहीं है । जब पेटमें थे, तब नाम नहीं था । जब जन्में, तब भी नाम नहीं था । दस दिनके बाद नाम धर दिया । वह नाम भी अगर बादमें बदल दिया तो उसको पकड़ लिया । नाम और रूप–दोनों ही बदलनेवाले हैं, मिटनेवाले हैं । जो मिटनेवाला है, उसको तो पकड़ लिया और जो रहनेवाला है उसकी परवाह ही नहीं ! आप-से-आप विचार नहीं करते और कहनेपर भी खयाल नहीं करते, कितनी बड़ी गलतीकी बात है ! कम-से-कम उसका खयाल तो करना चाहिये कि यह बात ऐसी है; अब तो हम चेत गये, होशमें आ गये; अब ऐसी गलती नहीं करेंगे । अगर अभी खयाल नहीं किया तो जितना दुःख पाना पड़ेगा, इसीसे ही पाना पड़ेगा । जन्म-मरण भी इसीसे होगा । नरक भी इसीसे होगा । बिलकुल उलटी बात पकड़ ली, तो अब उसका नतीजा सुलटा कैसे होगा ? उलटा ही नतीजा होगा । अभीसे सावधान हो करके अपना काम ठीक तरहसे कर लेना चाहिये, नहीं तो बड़ी दुर्दशा होगी भाई !