।। श्रीहरिः ।।

                                                          




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक अमावस्या, वि.सं.२०७७, रविवा

भगवान्‌ आज ही मिल सकते है



हम तो भगवान्‌के पास नहीं पहुँच सकते तो क्या भगवान्‌ भी हमारे पास नहीं पहुँच सकते ? हम कितना ही जोर लगायें, पर भगवान्‌के पास नहीं पहुँच सकते । परन्तु भगवान्‌ तो हमारे हृदयमें ही विराजमान हैं । द्रौपदीने भगवान्‌को गोविन्द द्वारकावासिन् कहकर पुकारा तो भगवान्‌को द्वारका जाकर आना पड़ा । वह यहाँ कहती तो वे चट यहीं प्रकट हो जाते ! अगर हम ऐसा मानते है भगवान्‌ अभी नहीं मिलेंगे तो वे नहीं मिलेंगे; क्योंकि हमने आड़ लगा दी ।

गोरखपुरकी एक घटना है । संवत् २००० से पहलेकी बात है । मैं गोरखपुरमें व्याख्यान देता था । वहाँ सेवारामजी नामके एक सज्जन थे, जो बैंकमें काम करते थे । एक दिन मैंने व्यख्यानमें कह दिया कि अगर आपका दृढ़ विचार हो जाय कि भगवान्‌ आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे ! उन सज्जनको यह बात लग गयी । उन्होंने विचार कर लिया कि हमें तो आज ही भगवान्‌से मिलना है । वे पुष्पमाला, चन्दन आदि ले आये कि भगवान्‌ आयेंगे तो उनको माला पहनाऊँगा, चन्दन चढाऊँगा ! वे कमरा बन्द करके भगवान्‌के आनेकी प्रतीक्षामें बैठ गये । समयपर भगवान्‌के आनेकी सम्भावना भी हो गयी और सुगन्ध भी आने लगी, पर भगवान्‌ प्रकट नहीं हुए । दूसरे दिन उन्होंने मेरेसे कहा कि आज आप मेरे घरसे भिक्षा लें । मैं कई घरोंसे भिक्षा लेकर पाता था । उस दिन उनके घर गया तो उन्होंने मेरेसे पूछा कि भगवान्‌ मिलनेवाले थे, सुगन्ध भी आ गयी थी, फिर बाधा क्या लगी कि वे मिले नहीं ? मैंने कहा कि भाई ! मेरेको इसका क्या पता ? परन्तु मैं तुम्हारेसे पूछता हूँ कि क्या तुम्हारे मनमें यह बात आती थी कि इतनी जल्दी भगवान्‌ कैसे मिलेंगे ? वे बोले कि यह बात तो आती थी ! मैंने कहा कि इसी बातने अटकाया ! अगर मनमें यह बात होती कि भगवान्‌ मेरेको अवश्य मिलेंगे, उनको मिलना ही पड़ेगा तो वे जरूर मिलते । भगवान्‌ ऐसे कैसे जल्दी मिलेंगेऐसा भाव करके तुमने ही बाधा लगायी है ।

अगर आप विचार कर लें कि भगवान्‌ आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे ! परन्तु मनमें यह छाया नहीं आनी चाहिये कि इतनी जल्दी कैसे मिलेंगे ? भगवान्‌ आपके कर्मोंसे अटकते नहीं । अगर आपके दुष्कर्मसे, पापकर्मसे भगवान्‌ अटक जायँ तो वे मिलकर भी क्या निहाल करेंगे ? परन्तु भगवान्‌ किसी कर्मसे अटकते नहीं । ऐसी कोई शक्ति है ही नहीं, जो भगवान्‌को मिलनेसे रोक दे । वे न तो पापकर्मोंसे अटकते हैं, न पुण्यकर्मोंसे अटकते हैं । वे सबके लिये सुलभ हैं । अगर भगवान्‌ हमारे पापोंसे अटक जायँ तो हमारे पाप भगवान्‌से प्रबल हुए ! अगर पाप प्रबल (बलवान्) हैं तो भगवान्‌ मिलकर भी क्या निहाल करेंगे ? जो पापोंसे अटक जाय, उसके मिलनेसे क्या लाभ ? परन्तु भगवान्‌ इतने निर्बल नहीं हैं, जो पापोंसे अटक जायँ । उनके समान बलवान् कोई है नहीं, हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता ही नहीं । आपकी जोरदार इच्छा हो जाय तो आप कैसे ही हों, भगवान्‌ तो मिलेंगे, मिलेंगे, मिलेंगे ! उनको मिलना पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं है । परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही तो मानवजन्म मिला है, नहीं तो पशुमें और मनुष्यमें क्या फर्क हुआ ?

खादते मोदते नित्यं  शुनकः  शूकरः  खरः ।

तेषामेषां को विशेषो वृत्तिर्येषां तु तादृशी ॥

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सूकर कूकर ऊँट खर,   बड़  पशुअन  में चार ।

तुलसी हरि की भगति बिनु, ऐसे ही नर नार ॥