।। श्रीहरिः ।।

                                                                              




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७७, शनिवा
शरणागतिकी विलक्षणता

परमात्माका आश्रय लिये बिना सब आश्रय अधूरे हैं, क्योंकि परमात्माके सिवाय और कोई सर्वोपरि तथा पूर्ण नहीं है । रुपये, बेटे-पोते, पद, योग्यता, समाजका बल, अस्त्र-बल, शस्त्र-बल आदि सब-के-सब तुच्छ ही हैं और पूर्ण भी नहीं हैं । अगर परमात्माका आश्रय ले ले, तो फिर और किसीका आश्रय लेना नहीं पड़ेगा । जो भगवान्‌के चरणोंका आश्रय ले लेता है, उसको फिर दूसरे आश्रयकी जरूरत ही नहीं रहती । सुग्रीवने भगवान्‌ श्रीरामका आश्रय लिया तो भगवान्‌ने कह दिया‒

सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥

(मानस ४/७/५)

लोक-परलोकका सब तरहका काम सिवा ईश्वरके कोई कर ही नहीं सकता । ऐसे सर्वोपरि ईश्वरको छोड़कर जो दूसरी तुच्छ चीजोंका सहारा लेता है, दूसरी तुच्छ चीजोंको लेकर अपनेमें बड़प्पनका अनुभव करता है, वह एक तरहसे नास्तिक है‒ईश्वरको न माननेवाला है । अगर वह ईश्वरको मानता तो उसको ईश्वरका ही सहारा होता ।

भगवान्‌का सहारा लेनेवाला परतन्त्र नहीं रहता । एक विचित्र बात है कि पराधीन रहनेवाला पराधीन नहीं रहता ! तात्पर्य है कि भगवान्‌के अधीन रहनेवाला पराधीन नहीं रहता; क्योंकि भगवान्‌ ‘पर’ नहीं हैं । मनुष्य पराधीन तब होता है, जब वह ‘पर’ के अधीन हो अर्थात् धन, बल, विद्या, बुद्धि आदिके अधीन हो । भगवान्‌ तो अपने हैं‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’, इसलिये उनका आश्रय लेनेवाला पराधीन नहीं होता है; निश्चिन्त होता है, निर्भय होता है, निःशोक होता है, निशंक होता है । दूसरेके अधीन रहनेवालेको स्वप्नमें भी सुख नहीं होता‒‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं’ (मानस १/१०२/३); परन्तु भगवान्‌के अधीन रहनेवालेको स्वप्नमें भी दुःख नहीं होता । मीराबाईने कहा‒

ऐसे  बरको  क्या  बरूँ,   जो  जन्मे  अरु  मर  जाय ।

बर बरिये गोपालजी, म्हारो चुड़लो अमर हो जाय ॥

इस तरह केवल भगवान्‌का आश्रय ले ले तो सदाके लिये मौज हो जाय । स्वप्नमें भी किसीकी किंचिन्मात्र भी गरज न रहे ! जब किसी-न-किसीका आश्रय लेना ही पड़ता है तो सर्वोपरिका ही आश्रय लें, छोटेका आश्रय क्या लें ? अतः सबसे पहले ही यह मान लें कि भगवान्‌ हमारे और हम भगवान्‌के हैं‒

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या  द्रविणं त्वमेव

त्वमेव   सर्वं   मम   देवदेव ॥

माता रामो   मत्पिता रामचन्द्रः

स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।

माँ कौन है भगवान्‌ । सखा कौन है ? भगवान्‌ । धन कौन है ? भगवान्‌ । विद्या कौन है ? भगवान्‌ । हमारे सब कुछ भगवान्‌ ही हैं ।