।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७९, रविवार

गीतामें भगवन्नाम


कृष्णेति नामानि च निःसरन्ति रात्रन्दिवं वै प्रतिरोमकूपात् ।

यस्यार्जुनस्य प्रति तं सुगीतगीते न नाम्नो महिमा भवेत्किम् ॥ 

नाम और नामीमें अर्थात् भगवन्नाम और भगवान्‌में अभेद है; अतः दोनोंके स्मरणका एक ही माहात्म्य है । भगवन्नाम तीन तरहसे लिया जाता है‒

(१) मनसे‒मनसे नामका स्मरण होता है,

जिसका वर्णन भगवान्‌ने ‘यो मां स्मरति नित्यशः’ (८ । १४) पदोंसे किया है ।

(२) वाणीसे‒वाणीसे नामका जप होता है, जिसे भगवान्‌ने ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ (१० । २५) पदोंसे अपना स्वरूप बताया है ।

(३) कण्ठसे‒कण्ठसे जोरसे उच्चारण करके कीर्तन किया जाता है, जिसका वर्णन भगवान्‌ने ‘कीर्तयन्तः’ (९ । १४) पदसे किया है ।

गीतामें भगवान्‌ने ॐ, तत् और सत्‒ये तीन परमात्माके नाम बताये हैं‒‘ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः’ (१७ । २३) । प्रणव (ओंकार)-को भगवान्‌ने अपना स्वरूप बताया है‒‘प्रणवः सर्ववेदेषु’ (७ । ८), ‘गिरामस्म्येकमक्षरम्’ (१० । २५) । भगवान्‌ कहते हैं कि जो मनुष्य ‘ॐ’इस एक अक्षर प्रणवका उच्चारण करके और मेरा स्मरण करके शरीर छोड़कर जाता है, वह परमगतिको प्राप्त होता है (८ । १३) ।

अर्जुनने भी भगवान्‌के विराट्‌रूपकी स्तुति करते हुए नामकी महिमा कही है; जैसे‒‘हे प्रभो ! कई देवता भयभीत होकर हाथ जोड़े हुए आपके नाम आदिका कीर्तन कर रहे है’ (११ । २१), ‘हे अन्तर्यामी भगवन् ! आपके नाम आदिका कीर्तन करनेसे यह सम्पूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और अनुराग (प्रेम)-को प्राप्त हो रहा है । आपके नाम आदिके कीर्तनसे भयभीत होकर राक्षसलोग दसों दिशाओंमें भागते हुए जा रहे हैं और सम्पूर्ण सिद्धगण आपको नमस्कार कर रहे हैं । यह सब होना उचित ही है’ (११ । ३६) ।

ज्ञातव्य

सुषुप्ति (गाढ़ निद्रा)-के समय सम्पूर्ण इन्द्रियाँ मनमें, मन बुद्धिमें, बुद्धि अहम्‌में और अहम् अविद्यामें लीन हो जाता है अर्थात् सुषुप्तिमें अहंभावका भान नहीं होता । गाढ़ निद्रासे जगनेपर ही सबसे पहले अहंभावका भान होता है, फिर देश, काल, अवस्था आदिका भान होता है। परन्तु गाढ़ निद्रामें सोये हुए व्यक्तिके नामसे कोई आवाज देता है तो वह जग जाता है अर्थात् अविद्यामें लीन हुए, गाढ़ निद्रामें सोये हुए व्यक्तितक शब्द पहुँच जाता है । तात्पर्य है कि शब्दमें अचिन्त्य शक्ति है, जिससे वह अविद्याको भेदकर अहम्‌‌तक पहुँच जाता है । जैसे, अनादिकालसे अविद्यामें पड़े हुए, मूर्च्छित व्यक्तिकी तरह संसारमें मोहित हुए मनुष्यको गुरुमुखसे श्रवण करनेपर अपने स्वरूपका बोध हो जाता है अर्थात् अविद्यामें पड़े हुए मनुष्यको भी शब्द तत्त्वज्ञान करा देता है[*] । ऐसे ही जो तत्परतासे भगवन्नामका जप करता है, उसको वह नाम स्वरूपका बोध, भगवान्‌के दर्शन करा देता है ।


[*] शब्दमें ऐसी विलक्षण शक्ति है कि वह जो इन्द्रियोंके सामने नहीं है. उस परोक्षका भी ज्ञान करा देता है ।