।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७९, रविवार

गीतामें मूर्तिपूजा


जैसे घुटनोंके बलपर चलनेवाला छोटा बालक कोई वस्तु उठाकर अपने पिताजीको देता है तो उसके पिताजी बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और हाथ ऊँचा करके कहते हैं कि बेटा ! तू इतना बड़ा हो जा अर्थात् मेरेसे भी बड़ा हो जा । क्या वह वस्तु अलभ्य थी ? क्या बालकके देनेसे पिताजीको कोई विशेष चीज मिल गयी ? नहीं । केवल बालकके देनेके भावसे ही पिताजी राजी हो गये । ऐसे ही भगवान्‌को किसी वस्तुकी कमी नहीं है और उनमें किसी वस्तुकी इच्छा भी नहीं है, फिर भी भक्तके देनेके भावसे वे प्रसन्न हो जाते हैं । परन्तु जो केवल लोगोंको दिखानेके लिये, लोगोंको ठगनेके लिये मन्दिरोंको सजाते हैं, ठाकुरजी (भगवान्‌के विग्रह)-का शृंगार करते हैं, उनको बढ़िया-बढ़िया पदार्थोंका भोग लगाते हैं तो उसको भगवान्‌ ग्रहण नहीं करते; क्योंकि वह भगवान्‌का पूजन नहीं है, प्रत्युत रुपयोंका, व्यक्तिगत स्वार्थका ही पूजन है ।

जो लोग किसी भी तरहसे ठाकुरजीको भोग लगानेवालेको, उनकी पूजा करनेवालेको पाखण्डी कहते हैं और खुद अभिमान करते हैं कि हम तो उनसे अच्छे हैं; क्योंकि हम पाखण्ड नहीं करते, ऐसे लोगोंका कल्याण नहीं होता । जो किसी भी तरहसे उत्तम कर्म करनेमें लगे हैं, उनका उतना अंश तो अच्छा है ही । परन्तु जो अभिमानपूर्वक अच्छे आचरणोंका त्याग करते हैं, उसका परिणाम तो बुरा ही होगा ।

प्रश्नदुष्टलोग मूर्तियोंको तोडते हैं तो भगवान्‌ उनको अपना प्रभाव, चमत्कार क्यों नहीं दिखाते ?

उत्तरजिनकी मूर्तिमें सद्भावना नहीं है, जिनका मूर्तिमें भगवत्पूजन करनेवालोंके साथ द्वेष है और द्वेषभावसे ही जो मूर्तिको तोड़ते हैं, उनके सामने भगवान्‌का प्रभाव, महत्त्व प्रकट होगा ही क्यों ? कारण कि भगवान्‌का महत्त्व तो श्रद्धाभावसे ही प्रकट होता है ।

मूर्तिपूजा करनेवालोंमें ‘मूर्तिमें भगवान्‌ हैं’इस भावकी कमी होनेके कारण ही दुष्टलोगोंके द्वारा मूर्ति तोड़े जानेपर भगवान्‌ अपना प्रभाव प्रकट नहीं करते । परन्तु जिन भक्तोंका ‘मूर्तिमें भगवान्‌ हैं’ऐसा दृढ श्रद्धा-विश्वास है, वहाँ भगवान्‌ अपना प्रभाव प्रकट कर देते हैं । जैसे, गुजरातमें सूरतके पास एक शिवजीका मन्दिर है । उसमें स्थित शिवलिंगमें छेद-ही-छेद हैं । इसका कारण यह था कि जब मुसलमान उस शिवलिंगको तोड़नेके लिये आये, तब उस शिवलिंगसे असंख्य बड़े-बड़े भौरें प्रकट हो गये और उन्होंने मुसलमानोंको भगा दिया ।

जो परीक्षामें पास होना चाहता हैं, वे ही परीक्षकको आदर देते हैं, परीक्षकके अधीन होते हैं; क्योंकि परीक्षक जिसको पास कर देता है, वह पास हो जाता है और जिसको फेल कर देते है, वह फेल हो जाता है । परन्तु भगवान्‌को किसीकी परीक्षामें पास होनेकी जरूरत ही नहीं है; क्योंकि परीक्षामें पास होनेसे भगवान्‌का महत्त्व बढ़ नहीं जाता और परीक्षामें फेल होनेसे भगवान्‌का महत्त्व घट नहीं जाता । जैसे, रावण भगवान्‌ रामकी परीक्षा लेनेके लिये मारीचको मायामय सुवर्णमृग बनाकर भेजता है तो भगवान्‌ सुवर्णमृगके पीछे दौड़ते हैं अर्थात् रावणकी परीक्षामें फेल हो जाते हैं; क्योंकि भगवान्‌को पास होकर दुष्ट रावणसे कौन-सा सर्टिफिकेट लेना था ! ऐसे ही दुष्टलोग भगवान्‌की परीक्षा लेनेके लिये मन्दिरोंको तोड़ते हैं तो भगवान्‌ उनकी परीक्षामें फेल हो जाते हैं, उनके सामने अपना प्रभाव प्रकट नहीं करते; क्योंकि वे दुष्टभावसे ही भगवान्‌के सामने आते हैं ।