जैसे घुटनोंके बलपर चलनेवाला छोटा बालक कोई वस्तु उठाकर
अपने पिताजीको देता है तो उसके पिताजी बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और हाथ ऊँचा करके
कहते हैं कि बेटा ! तू इतना बड़ा हो जा अर्थात् मेरेसे भी बड़ा हो जा । क्या वह
वस्तु अलभ्य थी ? क्या बालकके देनेसे पिताजीको कोई विशेष चीज मिल गयी ? नहीं ।
केवल बालकके देनेके भावसे ही पिताजी राजी हो गये । ऐसे ही भगवान्को किसी वस्तुकी
कमी नहीं है और उनमें किसी वस्तुकी इच्छा भी नहीं है, फिर भी भक्तके देनेके भावसे
वे प्रसन्न हो जाते हैं । परन्तु जो केवल लोगोंको
दिखानेके लिये, लोगोंको ठगनेके लिये मन्दिरोंको सजाते हैं, ठाकुरजी (भगवान्के
विग्रह)-का शृंगार करते हैं, उनको बढ़िया-बढ़िया पदार्थोंका भोग लगाते हैं तो
उसको भगवान् ग्रहण नहीं करते; क्योंकि वह भगवान्का पूजन नहीं है, प्रत्युत
रुपयोंका, व्यक्तिगत स्वार्थका ही पूजन है । जो लोग किसी भी तरहसे ठाकुरजीको भोग लगानेवालेको, उनकी पूजा
करनेवालेको पाखण्डी कहते हैं और खुद अभिमान करते हैं कि हम तो उनसे अच्छे हैं;
क्योंकि हम पाखण्ड नहीं करते, ऐसे लोगोंका कल्याण नहीं होता । जो किसी भी तरहसे
उत्तम कर्म करनेमें लगे हैं, उनका उतना अंश तो अच्छा है ही । परन्तु जो
अभिमानपूर्वक अच्छे आचरणोंका त्याग करते हैं, उसका परिणाम तो बुरा ही होगा । प्रश्न‒दुष्टलोग
मूर्तियोंको तोडते हैं तो भगवान् उनको अपना प्रभाव, चमत्कार क्यों नहीं दिखाते ? उत्तर‒जिनकी मूर्तिमें सद्भावना नहीं है, जिनका मूर्तिमें भगवत्पूजन करनेवालोंके साथ
द्वेष है और द्वेषभावसे ही जो मूर्तिको तोड़ते हैं, उनके सामने भगवान्का प्रभाव,
महत्त्व प्रकट होगा ही क्यों ? कारण कि भगवान्का महत्त्व तो श्रद्धाभावसे ही
प्रकट होता है । मूर्तिपूजा करनेवालोंमें ‘मूर्तिमें भगवान् हैं’‒इस भावकी कमी होनेके कारण ही दुष्टलोगोंके द्वारा मूर्ति
तोड़े जानेपर भगवान् अपना प्रभाव प्रकट नहीं करते । परन्तु जिन भक्तोंका
‘मूर्तिमें भगवान् हैं’‒ऐसा दृढ
श्रद्धा-विश्वास है, वहाँ भगवान् अपना प्रभाव प्रकट कर देते हैं । जैसे,
गुजरातमें सूरतके पास एक शिवजीका मन्दिर है । उसमें स्थित शिवलिंगमें छेद-ही-छेद
हैं । इसका कारण यह था कि जब मुसलमान उस शिवलिंगको तोड़नेके लिये आये, तब उस
शिवलिंगसे असंख्य बड़े-बड़े भौरें प्रकट हो गये और उन्होंने मुसलमानोंको भगा दिया ।
जो परीक्षामें पास होना चाहता हैं, वे ही परीक्षकको आदर देते
हैं, परीक्षकके अधीन होते हैं; क्योंकि परीक्षक जिसको पास कर देता है, वह पास हो
जाता है और जिसको फेल कर देते है, वह फेल हो जाता है । परन्तु भगवान्को किसीकी
परीक्षामें पास होनेकी जरूरत ही नहीं है; क्योंकि परीक्षामें पास होनेसे भगवान्का
महत्त्व बढ़ नहीं जाता और परीक्षामें फेल होनेसे भगवान्का महत्त्व घट नहीं जाता ।
जैसे, रावण भगवान् रामकी परीक्षा लेनेके लिये मारीचको मायामय सुवर्णमृग बनाकर
भेजता है तो भगवान् सुवर्णमृगके पीछे दौड़ते हैं अर्थात् रावणकी परीक्षामें फेल हो
जाते हैं; क्योंकि भगवान्को पास होकर दुष्ट रावणसे कौन-सा सर्टिफिकेट लेना था !
ऐसे ही दुष्टलोग भगवान्की परीक्षा लेनेके लिये मन्दिरोंको तोड़ते हैं तो भगवान्
उनकी परीक्षामें फेल हो जाते हैं, उनके सामने अपना प्रभाव प्रकट नहीं करते;
क्योंकि वे दुष्टभावसे ही भगवान्के सामने आते हैं । |