प्रश्न‒भूत-प्रेतोंको
खुराक कैसे मिलती है ? वे कैसे तृप्त होते
हैं ? उत्तर‒भूत-प्रेतोंका
शरीर वायुप्रधान होता है; अतः इत्र आदि सुगन्धित वस्तुओंको सूँघकर उनको खुराक मिल जाती
है और वे बड़े प्रसन्न हो जाते हैं । उनके निमित्त किसी ब्राह्मणको अथवा अपनी बहन,
बेटी या भानजीको बढ़िया-बढ़िया मिठायी खिलानेसे उनको खुराक मिल
जाती है । दस-बारह वर्षका एक बालक जलमें डूबकर मर गया और प्रेत बन गया
। वह अपनी बहनमें आया करता और अपना दुःख सुनाया करता था । एक दिन वह अपनी बहनमें आकर
बोला कि मैं बहुत भूखा हूँ । तब उसके परिवारवालोंने उसके नामसे एक ब्राह्मणको भोजन
कराया । जब ब्राह्मण भोजन करने लगा, तब जैसे भोजन करते समय मनुष्यका मुख हिलता है,
वैसे ही दूसरे कमरेमें बैठी उस प्रेतकी बहनका भी मुख हिलने लगा
। जब ब्राह्मणने भोजन कर लिया, तब वह प्रेत बहनके मुखसे बोला कि मेरी तृप्ति हो गयी ! अतः प्रेतात्माके
नामसे शुद्ध-पवित्र ब्राह्मणको भोजन करानेसे वह भोजन उसको मिलता है । पासमें ही तालाब है, नदी बह रही है और उसके जलको प्रेत देखते भी हैं,
पर वे उस जलको पी नहीं सकते, प्यासे ही रहते हैं ! स्नानके बाद प्रेतके नामसे अथवा ‘अज्ञात नामवाले प्रेतात्माओंको जल मिल जाय’‒इस भावसे गीली धोतीको किसी स्थानपर निचोड़ दिया जाय तो प्रेत
उस जलको पी लेते हैं । शौचसे बचा हुआ जल काँटेदार वृक्षपर अथवा आकके पौधेपर डाल दिया
जाय तो उस जलको भी प्रेत पी लेते हैं और तृप्त हो जाते हैं । तुलसीदासजी महाराज शौच जाते थे तो बचा हुआ जल प्रतिदिन यों ही
एक काँटेवाले पेड़पर डाल दिया करते थे । उस पेड़में एक प्रेत रहता था जो उस अशुद्ध जलको
पी लेता था । एक दिन वह प्रेत तुलसीदासजीके सामने प्रकट होकर बोला‒मैं बहुत प्यासा
मरता था,
तुम्हारे जलसे अब मैं बहुत तृप्त हो गया हूँ । तुम मेरेसे जो
माँगना चाहो, माँग लो । तुलसीदासजी महाराजको भगवद्दर्शनकी लगन लगी हुई थी;
अतः उन्होंने कहा‒मेरेको भगवान् रामके दर्शन करा दो ! प्रेतने
कहा‒दर्शन तो मैं नहीं करा सकता, पर दर्शनका उपाय बता सकता हूँ । तुलसीदासजीने कहा‒उपाय ही सही,
बता दो । उसने कहा‒अमुक स्थानपर रातमें रामायणकी कथा होती है
। वहाँपर कथाको सुननेके लिये हनुमान्जी आया करते हैं । तुम उनके पैर पकड़ लेना,
वे तुमको भगवान्के दर्शन करा देंगे । तुलसीदासजीने कहा‒वहाँ
तो बहुत-से लोग आते होंगे, उनमेंसे मैं हनुमान्जी कैसे पहचानूँ ? प्रेतने कहा‒हनुमान्जी
कोढ़ीका रूप धारण करके और मैले-कुचैले कपड़े पहनकर आते हैं तथा कथा समाप्त होनेपर सबके
चले जानेके बाद जाते हैं । तुलसीदासजी महाराजने वैसा ही किया तो उनको हनुमान्जीके
दर्शन हुए और हनुमान्जीने उनको भगवान् रामके दर्शन करा दिये‒ तुलसी
नफा पिछानिये, भला बुरा क्या काम । प्रेतसे हनुमत
मिले, हनुमत से श्री राम ॥
प्रेतोंके नामसे पिण्ड-पानी दिया जाय, ब्राह्मणोंको छाता आदि
दिया जाय तो वे वस्तुएँ प्रेतोंको मिल जाती हैं । परन्तु जिसके नामसे छाता आदि दिया
जाय,
उसके साथी प्रेत अगर प्रबल होते है तो वे बीचमें ही छाता आदि
छीन लेते हैं, उसको मिलने ही नहीं देते । अतः बड़ी सावधानीसे, उसके नामसे ही उसके निमित्त ही पिण्ड-पानी आदि दे तो वह सामग्री
उसको मिल जाती है । |