।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
  आषाढ़ कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७९, शनिवार

गीतामें फलसहित विविध

उपासनाओंका वर्णन


प्रश्न‒भूत-प्रेतोंको खुराक कैसे मिलती है ? वे कैसे तृप्त होते हैं ?

उत्तर‒भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता है; अतः इत्र आदि सुगन्धित वस्तुओंको सूँघकर उनको खुराक मिल जाती है और वे बड़े प्रसन्न हो जाते हैं । उनके निमित्त किसी ब्राह्मणको अथवा अपनी बहन, बेटी या भानजीको बढ़िया-बढ़िया मिठायी खिलानेसे उनको खुराक मिल जाती है ।

दस-बारह वर्षका एक बालक जलमें डूबकर मर गया और प्रेत बन गया । वह अपनी बहनमें आया करता और अपना दुःख सुनाया करता था । एक दिन वह अपनी बहनमें आकर बोला कि मैं बहुत भूखा हूँ । तब उसके परिवारवालोंने उसके नामसे एक ब्राह्मणको भोजन कराया । जब ब्राह्मण भोजन करने लगा, तब जैसे भोजन करते समय मनुष्यका मुख हिलता है, वैसे ही दूसरे कमरेमें बैठी उस प्रेतकी बहनका भी मुख हिलने लगा । जब ब्राह्मणने भोजन कर लिया, तब वह प्रेत बहनके मुखसे बोला कि मेरी तृप्ति हो गयी ! अतः प्रेतात्माके नामसे शुद्ध-पवित्र ब्राह्मणको भोजन करानेसे वह भोजन उसको मिलता है ।

पासमें ही तालाब है, नदी बह रही है और उसके जलको प्रेत देखते भी हैं, पर वे उस जलको पी नहीं सकते, प्यासे ही रहते हैं ! स्नानके बाद प्रेतके नामसे अथवा अज्ञात नामवाले प्रेतात्माओंको जल मिल जाय’‒इस भावसे गीली धोतीको किसी स्थानपर निचोड़ दिया जाय तो प्रेत उस जलको पी लेते हैं । शौचसे बचा हुआ जल काँटेदार वृक्षपर अथवा आकके पौधेपर डाल दिया जाय तो उस जलको भी प्रेत पी लेते हैं और तृप्त हो जाते हैं ।

तुलसीदासजी महाराज शौच जाते थे तो बचा हुआ जल प्रतिदिन यों ही एक काँटेवाले पेड़पर डाल दिया करते थे । उस पेड़में एक प्रेत रहता था जो उस अशुद्ध जलको पी लेता था । एक दिन वह प्रेत तुलसीदासजीके सामने प्रकट होकर बोला‒मैं बहुत प्यासा मरता था, तुम्हारे जलसे अब मैं बहुत तृप्त हो गया हूँ । तुम मेरेसे जो माँगना चाहो, माँग लो । तुलसीदासजी महाराजको भगवद्दर्शनकी लगन लगी हुई थी; अतः उन्होंने कहा‒मेरेको भगवान्‌ रामके दर्शन करा दो ! प्रेतने कहा‒दर्शन तो मैं नहीं करा सकता, पर दर्शनका उपाय बता सकता हूँ । तुलसीदासजीने कहा‒उपाय ही सही, बता दो । उसने कहा‒अमुक स्थानपर रातमें रामायणकी कथा होती है । वहाँपर कथाको सुननेके लिये हनुमान्‌जी आया करते हैं । तुम उनके पैर पकड़ लेना, वे तुमको भगवान्‌के दर्शन करा देंगे । तुलसीदासजीने कहा‒वहाँ तो बहुत-से लोग आते होंगे, उनमेंसे मैं हनुमान्‌जी कैसे पहचानूँ ? प्रेतने कहा‒हनुमान्‌जी कोढ़ीका रूप धारण करके और मैले-कुचैले कपड़े पहनकर आते हैं तथा कथा समाप्त होनेपर सबके चले जानेके बाद जाते हैं । तुलसीदासजी महाराजने वैसा ही किया तो उनको हनुमान्‌जीके दर्शन हुए और हनुमान्‌जीने उनको भगवान्‌ रामके दर्शन करा दिये‒

तुलसी नफा पिछानिये, भला बुरा क्या काम ।

प्रेतसे  हनुमत  मिले,  हनुमत  से  श्री   राम ॥

प्रेतोंके नामसे पिण्ड-पानी दिया जाय, ब्राह्मणोंको छाता आदि दिया जाय तो वे वस्तुएँ प्रेतोंको मिल जाती हैं । परन्तु जिसके नामसे छाता आदि दिया जाय, उसके साथी प्रेत अगर प्रबल होते है तो वे बीचमें ही छाता आदि छीन लेते हैं, उसको मिलने ही नहीं देते । अतः बड़ी सावधानीसे, उसके नामसे ही उसके निमित्त ही पिण्ड-पानी आदि दे तो वह सामग्री उसको मिल जाती है ।