(गत ब्लॉगसे आगेका)
मालिकोंके प्रति
ये जो बड़े-बडे सेठ हैं, धनी हैं, ये भी
मजदूरोंको दबाते हैं और उनको कम दाम देकर ज्यादा-से-ज्यादा अनाज खींचते हैं ! उधर तो
वे दान-पुण्य करते हैं, सन्तोंको, ब्राह्मणोंको
भोजन कराते हैं, पर इधर बेचारे गरीबोंपर छुरी चलाते हैं ! एक गरीब आदमी साहूकारके यहाँ गया । वह उससे उधार लिया करता
था । साहूकारके कानपर टँगी कलम नीचे गिर गयी तो वह बोला सेठजी ! सेठजी !! आपकी छुरी
नीचे गिर गयी । सेठजीने कहा कि यह तो कलम है,
छुरी कहाँ है ? वह आदमी बोला कि महाराज ! मेरा गला तो इसीने काटा है ! आप साहूकार
कहलाते हो तो गरीबोंकी रक्षा करो, उनको पैसा ज्यादा दो,
उनके घरमें वस्तु बचाओ ।
दरसावे जगमें दया, पाप उठावे पोट ।
हितमें चितमें हाथमें, खतमें
मतमें खोट ॥
सब जगह खोट-ही-खोट है । किसानोंसे अनाज लेते समय तो अधिक लेते
हो, कम दाम देते हो, पर उनको वस्तु देते समय कम वस्तु देते हो,
कितना पाप है !
लेतां तो बदतो लेवे, देतां
कसर पाव री ।
पीपां प्रत्यक देखिये, बजारां में बावरी ॥
गरीबोंका कितना नुकसान करते हो और कहते हो कि दान-पुण्य करते
हैं ! दान-पुण्यका फल तो कम होगा, पर पापका पलड़ा बहुत भारी होगा । दान-पुण्य करनेसे पाप नहीं कटते
। दान-पुण्य करना ‘दीवानी’ है और पाप करना ‘फौजदारी’
है । दीवानी और फौजदारी‒दोनों परस्पर कटते नहीं हैं । पुण्यका
फल अलग होगा, पापका फल अलग होगा ।
ऐरण की चोरी करै, करै सुई को
दान ।
चढ़ चौबारे देखण लाग्यो, कद आसी
बीमान ॥
एक वेश्या थी । उसने सुन लिया कि सोमवती अमावस्याके दिन ब्राह्मणोंको
जिमाने (भोजन कराने) से और दक्षिणा देनेसे बड़ा भारी पुण्य होता है । उसने जाकर ब्राह्मणोंसे
कहा कि आप हमारे घर जीमने आओ । ब्राह्मणोंने कहा कि हम तेरा अन्न नहीं खायेंगे । एक
भाँड़ (बहुरूपिया) था और उसने ब्राह्मणका रूप धारण किया हुआ था । वेश्याने उसके पास
जाकर पूछा कि तुम कौन हो ? उसने कहा कि मैं पांडिया हूँ,
तुम कौन हो ? वेश्याने कहा कि मैं तो खत्राणी हूँ । अच्छा पांडियोजी ! अमावस्याके
दिन हमारे यहाँ भोजन कर लो । वह बोला‒हाँ-हाँ, कर लेंगे । सुबह पांडेजी आ गये । वेश्याने
खीर, मालपूआ आदि बढ़िया-बढ़िया भोजन बनाकर खिलाया और दक्षिणा भी खूब दी । यह सब करनेके
बाद वेश्या बाहर आकर आकाशकी तरफ देखने लगी । पांडे बने हुए भाँडने पूछा कि क्या देखती
हो ? वह बोली कि सोमवती अमावस्याके दिन ब्राह्मणको भोजन कराकर दक्षिणा दे तो ठाकुरजीका
विमान आता है, उसको देखती हूँ कि कहींसे आता है ?
भाँड़ बोला‒
तू खत्राणी मैं पांडियो, तू बेश्या
मैं भाँड ।
तेरे जिमाये मो जीमने, पत्थर
पड़सी राँड ॥
तात्पर्य है कि इस तरह करनेसे पुण्य नहीं होगा । आप अपना हृदय
सीधा-सरल, सच्चा रखो । पाप मत करो । कपड़ा मैला करके पीछे धोते हो,
तो पहले मैला ही क्यों करो ?
पहलेसे ही सावधान रहो,
पाप करो ही मत, जिससे पीछे उसे धोना ही न पड़े । मैला नहीं करोगे तो कपड़ा ज्यादा
दिन चलेगा और बार-बार मैला करोगे तथा साबुनसे धोओगे तो कपड़ा बहुत जल्दी फट जायगा ।
इसलिये बाहरसे भी सफाई रखो और भीतरसे भी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान
और गाय’ पुस्तकसे
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