।। श्रीहरिः ।।

भगवान्‌से

..

नित्ययोग-१

श्रोता—भगवान्‌ तो प्रत्यक्ष नहीं दिखते, पर धन प्रत्यक्ष दीखता है; तो फिर धनका आश्रय कैसे छोड़ें ?

स्वामीजी—वास्तवमें धन है ही नहीं, दीखे कहाँसे ? अभी आपको धन कहाँ दीखता है ? धनका आश्रय हरदम दीखता है, धन हरदम नहीं दीखता । इस बातपर खूब विचार करो । धन आता हुआ दीखता है अथवा जाता हुआ दीखता है, रहता हुआ नहीं दीखता । धन पहले था नहीं और बादमें रहेगा नहीं, पर भगवान्‌ पहले भी थे अब भी हैं और बादमें भी रहेंगे । भगवान्‌ आते-जाते नहीं । अतः यह कैसे कहा जाय कि भगवान्‌ नहीं दीखते और धन दीखता है ? हाँ, भगवान्‌ नेत्रोंसे नहीं दीखते । वे तो बुद्धिरूपी नेत्रोंसे दीखते हैं, आस्तिक-भावसे दीखते हैं ।

धनका आश्रय पहले नहीं था, पहले (छोटी अवस्थामें) माँका आश्रय था । धनका आश्रय बादमें पकड़ा है । परन्तु भगवान्‌का आश्रय पहलेसे है । उनके आश्रयसे अनन्त ब्रह्माण्ड चल रहे हैं । उनका आश्रय पहले भी था, अब भी है और आगे भी रहेगा । उनके आश्रयका कभी अभाव नहीं होता । परन्तु धनका आश्रय सदा रहेगा—यह बात है ही नहीं ।

धन सदा साथमें नहीं रहेगा । हम धनके साथ नहीं रहेंगे और धन हमारे साथ नहीं रहेगा । परन्तु भगवान्‌ सदा हमारे साथ रहेंगे । हम भगवान्‌के बिना नहीं रह सकते और भगवान्‌ हमारे बिना नहीं रह सकते । हमारी ताकत नहीं है कि हम भगवान्‌से अलग हो सकें । इतना ही नहीं, भगवान्‌की भी ताकत नहीं है कि वे हमारेको छोड़कर अलग रह सकें । जिस दिन भगवान्‌ हमारेको छोड़कर अलग रहेंगे, उस दिन हम एक अलग भगवान्‌ हो जायँगे । इस प्रकार दो भगवान्‌ हो जायँगे, जो कि सम्भव नहीं है । अतः भगवान्‌ हमारा साथ छोड़ ही नहीं सकते, इसलिये भगवान्‌का ही आश्रय लेना चाहिये ।

आश्रय उसीका लेना चाहिये, जिसकी स्वतन्त्र सत्ता हो । जिसकी परतन्त्र सत्ता हो, उसका आश्रय हमें लेना ही नहीं है । भगवान्‌की स्वतन्त्र सत्ता है; अतः हमें भगवान्‌का ही आश्रय लेना चाहिये । वे भगवान्‌ कभी हमारेसे अलग नहीं होते । हमारेसे अलग होनेकी उनमें सामर्थ्य ही नहीं है । भगवान्‌ सर्वव्यापक हैं, सब देश,काल, वस्तु, व्यक्ति आदिमें परिपूर्ण हैं, अतः वे हमें कैसे छोड़ देंगे ? अगर छोड़ देंगे तो सर्वव्यापक कैसे हुए ? भगवान्‌को छोडकर हम रह ही नहीं सकते । हम रहेंगे तो उसीमें रहेंगे, नहीं रहेंगे तो उसीमें रहेंगे, जन्मेंगे तो उसीमें रहेंगे, मरेंगे तो उसीमें रहेंगे और जन्म-मरणसे रहित (मुक्त) हो जायँगे तो उसीमे रहेंगे । हम भगवान्‌को छोडकर नहीं रह सकते और भगवान्‌ हमें छोडकर नहीं रह सकते । हम दूसरेका आश्रय लेते हैं, यही बाधा है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)

—‘कल्याणकारी प्रवचन’ पुस्तकसे