।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.–२०७०, रविवार
बन्धन कैसे छूटे ?

 (गत ब्लॉगसे आगेका)
भलि सोचहि सज्जन जना, दिवी जगतको पूठ ।
पीछे  देखी  बिगड़ती,     पहले   बैठा    रूठ ॥

       जो पीछे बिगड़ जायगा, उसको पहले ही छोड़ दिया । अगर कोई अपने कुटुम्बको सच्चे हृदयसे छोड़कर साधु बन जाय, तो सब-का-सब कुटुम्ब एक साथ मर जाय अथवा कुटुम्बमें बीसों-पचासों आदमी हो जायँ, उसपर कोई फरक नहीं पड़ेगा । परन्तु कुटुम्बमें एक लड़का मर जाय और वह रोने लगे, तो उस साधुने कोरा कपड़ा ही मिट्टी लगाकर खराब किया ! जैसे साधु अपने कुटुम्बकी तरफसे मर जाता है, ऐसे ही आप भी सबसे मर जाओ, तो मुक्ति हो जायगी । मरते ही अमर हो जाओगे । जहाँ संसारसे मरे कि अमर हुए ! जीते हुए ही मर जाओ । सन्तोंके पदमें आया है—‘अरे मन जीवतड़ो ही मर रे ।’ आजसे ही मर जाओ । सब काम ठीक हो जायगा । घरवालोंसे मर जाओ तो उनकी भी आफत मिट जायगी । न तीजा करना पड़े, न कोई खर्चा करना पड़े, सब आफत मिट जाय ! घरवाले भी मौजमें और आप भी मौजमें !

       भगवान्‌की, सन्तोंकी, शास्त्रोंकी कृपा तो आपपर सदासे ही है, अब आप कृपा करो तो निहाल हो जाओ । आप स्वयं कृपा नहीं करोगे तो उनकी कृपा पड़ी रहेगी, कुछ काम नहीं करेगी । जिनको पकड़ा है, उनको छोड़ दो तो मुक्ति हो जायगी । अब घरवालोंको छोड़ दिया तो गुरुजीको पकड़ लिया कि ये मेरे गुरुजी हैं, ये गुरुभाई हैं, ये चाचा गुरु हैं, यह भतीजा चेला है । एकको छोड़ दिया और दूसरेको पकड़ लिया तो मुक्ति नहीं होगी, ज्यों-के-त्यों फँसे रहोगे । एक साधु मिले थे । वे कहते थे कि गुरुजीने हमें विद्या सिखा दी कि तुम कुटुम्बको छोड़ दो, तो हमने गुरुजीको भी छोड़ दिया ! अब न गुरु है, न चेला है, न चाचा गुरु है, न भतीजा चेला है । पहले गृहस्थसे साधु हुए, अब साधुसे साधु हो गये ।

        कुटुम्बको हमारा मानो मत और उनसे कुछ चाहो मत‒इतना ही कुटुम्बके साथ सम्बन्ध रखो । अपने पास जो पैसा है, सामर्थ्य है, समय है, वह उनकी सेवामें लगा दो । इससे सब कुटुम्बी राजी हो जायँगे और आपकी मुक्ति हो जायगी । पहलेका सम्बन्ध सेवा करके छोड़ दें और नया सम्बन्ध जोड़ें नहीं, तो मुक्ति ही रहेगी । मुक्तिके सिवा और क्या रहेगा ?

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

‒ ‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे