(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
तुलसी
पूरब पाप ते, हरि
चर्चा न
सुहाय ।
जैसे
ज्वर के जोर
ते, भूख बिदा
ह्वै जाय ॥
मनुष्यको
बुखार आ जाता
है तो भूख
नहीं लगती, अन्न
अच्छा नहीं
लगता । अन्न
अच्छा नहीं
लगता तो इसका
अर्थ है उसको
रोग है । जब
पित्तका जोर
होता है तो
मिश्री भी
कड़वी लगती है ।
मिश्री कड़वी
नहीं है, उसकी
जीभ कड़वी है ।
इसी तरह जिसे
भगवान्की
चर्चा
सुहाती नहीं
तो इसका कारण
है कि उसे कोई
बड़ा रोग हो
गया । कथामें
रुचि नहीं
होती तो
स्पष्ट है कि
अन्तकरण
बहुत मैला है,
मामूली मैला
नहीं, ज्यादा
मात्रामें
मैला है ।
प्रश्न‒ज्यादा
मैला होनेपर
क्या उसको
सत्संग दूर
नहीं कर सकता ?
उत्तर‒सत्संग
सब मैलोंको
दूर कर सकता
है; पर मनुष्य
पासमें ही नहीं
आता ।
बुखारका जोर
होनेसे अन्न अच्छा
नहीं लगता और
मिश्री कड़वी
लगती है ।
कैसे करें ? मिश्री कड़वी
लगे तो भी
खाते रहो ।
मिश्रीमें
खुदमें ताकत
है कि वह
पित्तको
शान्त कर
देगी और मीठी
लगने लगेगी । ऐसे ही
भजनेमं रुचि
नहीं हो तो भी
भजन करते रहो ।
भजन
करते-करते
ज्यों-ज्यों
पाप नष्ट
होते हैं,
त्यों-त्यों
उसमें मिठास
आने लगता है । सत्संगमें
ऐसे लोग आये
हैं जो रुचि नहीं
रखते थे । पर
किसीके
कहनेसे आये
तो फिर
विशेषतासे
आने लग गये ।
प्रश्न‒सत्संग
प्रतिदिन
क्यों किया
जाय ?
उत्तर‒सत्संगकी
महिमा क्या
कहें ? सत्संग
तो रोजाना
करनेका है,
नित्यप्रति
करनेका है ।
यह
त्यागनेका
है ही नहीं । सत्संगसे
सांसारिक
बाधाएँ मिट
जाती हैं । कोई
बीमार होता
है, कोई लड़ाई
करता है,
किसीको कोई बाधा
लग जाती है‒ये
सब तरह-तरहके
साँप हैं जो
काटते हैं ।
उनसे जहर चढ़
जाता है तो वह
घबरा जाता है ।
वह अगर
सत्संगमें
जाकर
सत्संगरूपी
बूटी सूँघ ले
तो स्वस्थ हो
जाय, प्रसन्न
हो जाय ।
चित्तकी
चिन्ता दूर
हो जाय । फिर जाकर
संसारका काम
करे । काम
करते-करते
उसमें उलझ
जाते हैं तो
जहर चढ़ जाता
है । वह जहर
सत्संगमें
जानेसे ठीक
हो जाता है ।
इस तरह करते
हुए हमारे जो
शत्रु हैं‒काम,
क्रोध, राग,
द्वेष आदि वे
सब-के-सब मर
जाते हैं । जैसे अन्न,
जल आवश्यक है,
साँस लेना
आवश्यक है,
उसी तरह
सत्संग भी
प्रतिदिन
करना जरूरी
है । वह तो
रोजाना
खुराक है ।
सत्संगसे
बहुत शान्ति
मिलती है ।
बहुत-सी
मानसिक
बीमारियाँ
दूर होती हैं ।
सत्संग
सूर्यकी तरह
होता है जो
अन्तःकरणके
अन्धकारको
दूर कर देता
है । उससे पाप
दूर हो जाते
हैं, बिना
पूछे शंकाएँ
दूर हो जाती हैं ।
तरह-तरहकी जो
हृदयमें
उलझनें हैं,
वे सुलझ जाती
हैं । सत्संग जहाँ
हो जाय, मिल
जाय तो समझना
चाहिये कि
भगवान्ने
विशेष कृपा
की । भगवान्
शंकरने दो ही
बात माँगी‒‘पद सरोज
अनपायनी
भगति’ और ‘सदा
सत्संग ।’
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी
प्रवचन’
पुस्तकसे
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