एक बड़ी सीधी
बात है । उसे ठीक
तरहसे समझ लें
तो बड़ी अच्छी तरह
साधन चल पड़ेगा
। जैसे गंगाजीका
प्रवाह चलता है, इसे मान लिया और
जान लिया, तो फिर कभी सन्देह
नहीं होगा कि प्रवाह
चलता है या नहीं
चलता । तो जैसे
गंगाजीका प्रवाह
चल रहा है, वैसे संसारका
प्रवाह चल रहा
है । यह सब-का-सब
संसार निरन्तर
अदृश्यकी तरफ
जा रहा है । यह दीखनेवाला
सब प्रतिक्षण
न दीखनेमें जा
रहा है । जो कल
दीखता था, वह आज नहीं दीखता
है । थोड़ा विचार
करके देखें कि
कल जो शरीर था, वह आज नहीं है
। प्रतिक्षण बदल
रहा है । इस
प्रकार दृश्य
प्रतिक्षण
अदृश्य हो रहा
है । सीधी-सरल बात
है । सीखनेकी कोई
जरूरत नहीं है
। चाहे मान ले, चाहे जान
ले । यह सब-का-सब
जा रहा है । इसमें
कोई सन्देह हो
तो बोलो ! जिस दिन कोई
मर जाता है तो कहते
हैं कि आज वह मर
गया । पर वास्तवमें
जिस दिन जन्मा, उसी दिनसे उसका
मरना शुरू हो गया
था और वह मरना आज
पूरा हुआ है ।
जो अवस्था
अभी है, वह प्रतिक्षण
जा रही है । धनवत्ता और
निर्धनता, आदर और निरादर, मान और अपमान, बलवत्ता और निर्बलता, सरोगता और नीरोगता
इत्यादि जो भी
अवस्था है, वह सब जा रही है
। अब इसमें क्या
राजी और क्या नाराज
होवें ? इस बातको समझनेके
बाद इसपर दृढ़ रहें
। अभी कोई आकर कहे
कि अमुक आदमी मर
गया, तो
भीतर भाव रहे कि
नयी बात क्या हो
गयी ? जो
बात प्रतिक्षण
हो रही है, वही तो हुई । यदि इसमें कोई
नयी बात दीखती
है तो दृश्य हर
समय अदृश्यमें
जा रहा है‒इस तरफ
दृष्टि नहीं है, तभी मरनेका
सुनकर चिन्ता
होती है, मनमें चोट
लगती है । यह तो मृत्युलोक
है । मरनेवालोंका
ही लोक है । यहाँ
सब मरने-ही-मरनेवाले
रहते हैं । मृत्युके
सिवाय और है ही
क्या ? प्रत्यक्षमें
ही सब कुछ अभावमें
जा रहा है । इस बातको
ठीक तरह समझ लो
। जो जीवन है, वह मृत्युमें
जा रहा है । अभीतक जितने
दिन जी गये, उतना मर ही
गये; जी गये, यह बात तो
झूठी है । और मर
गये, यह बाइ बिलकुल
सच्ची है । इस बातको
समझना है, याद नहीं
करना है ।
अब कहो कि जितने
दिन जी गये उसमें
मरनेकी क्रिया
दिखायी नहीं देती
। तो विचार करें
कि यदि काले बाल
नहीं मरते तो आज
बाल सफेद कैसे
हो गये ? आप कहें कि रूपान्तरित
हो गये, तो मरनेमें क्या
होता है ? रूपान्तर ही तो
होता है । पहले
जैसे जीता हुआ
दिखता था, वैसे अब नहीं दीखता
। आधी उम्र आपकी
चली गयी, तो आधा मर ही गये
!
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒
‘तात्त्विक
प्रवचन’
पुस्तकसे
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