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(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
सुषुप्तिमें
वस्तुओंके बिना
भी हम जीते हैं
। जीते ही नहीं, सुखी भी होते
हैं और शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि सबमें
ताजगी भी आती है
। जाग्रत्में
जब वस्तुओंसे
सम्बन्ध रहता
है, तब हमारी शक्ति
क्षीण होती है
और नींदमें वस्तुओंका
सम्बन्ध न रहनेसे
शक्ति संचित होती
है । वस्तुओंके सम्बन्ध-विच्छेदके
बिना और नींदमें
क्या होता है ? यदि जाग्रत्
अवस्थामें ही
हम वस्तुओंसे
अलग हो जायँ, उनसे अपना
सम्बन्ध न मानें, उनका आश्रय
न लें, तो जीवन्मुक्त
हो जायँ ! नींदमें तो
बेहोशी (अज्ञान)
रहती है, इसलिये उससे जीवन्मुक्त
नहीं होते । सम्पूर्ण
वस्तुओंसे सम्बन्ध-विच्छेद
होना मुक्ति है
। मुक्तिमें जो
आनन्द है, वह बन्धनमें नहीं
है । मुक्तिमें
आनन्द होता है‒वस्तुओंसे
सम्बन्ध छूटनेसे
। नींदमें जब
वस्तुओंको भूलनेसे
भी सुख- शान्ति
मिलती है, तब जानकर उनका
सम्बन्ध-विच्छेद
करनेसे कितनी
सुख-शान्ति मिलेगी
!
शरीर और संसार
एक है । ये एक-दूसरेसे
अलग नहीं हो सकते
। शरीरको संसारकी
और संसारको शरीरकी
आवश्यकता है । पर हम स्वयं (आत्मा)
शरीरसे अलग हैं
और शरीरके बिना
भी रहते ही हैं
। शरीर उत्पन्न
होनेसे पहले भी
हम थे और शरीर नष्ट
होनेके बाद भी
रहेंगे‒इस बातका
पता न हो तो भी यह
तो जानते ही हैं
कि गाढ़ निद्रामें
जब शरीरकी यादतक
नहीं रहती, तब भी हम रहते
हैं और सुखी रहते
हैं । शरीरसे सम्बन्ध
न रहनेसे शरीर
स्वस्थ होता है
। संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद
होनपर आप भी ठीक
रहोगे और संसार
भी ठीक रहेगा ।
दोनोंकी आफत मिट
जायगी । शरीरादि
पदार्थोंकी गरज
और गुलामी मनसे
मिटा दें तो महान्
आनन्द रहेगा ।
इसीका नाम जीवन्मुक्ति
है । शरीर, कुटुम्ब, धन
आदिको रखो, पर
इनकी गुलामी मत
रखो । जड़ वस्तुओंकी
गुलामी करनेवाला
जड़से भी नीचे हो
जाता है, फिर
हम तो चेतन हैं
। जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति‒तीनों
अवस्थाओंसे हम
अलग हैं । ये अवस्थाएँ
बदलती रहती हैं, पर हम नहीं बदलते
। हम इन अवस्थाओंको
जाननेवाले हैं
और अवस्थाएँ जाननेमें
आनेवाली हैं ।
अत : इनसे अलग हैं
। जैसे, छप्परको हम जानते
हैं कि यह छप्पर
है तो हम छप्परसे
अलग हैं‒यह सिद्ध
होता है । अत: हम वस्तु, परिस्थिति, अवस्था आदिसे
अलग हैं‒इसका
अनुभव होना ही
मुक्ति है ।
नारायण !
नारायण !!
नारायण !!!
‒
‘तात्त्विक
प्रवचन’
पुस्तकसे
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