जाग्रत्की
वस्तु स्वप्नमें
और स्वप्नकी वस्तु
सुषुप्तिमें
नहीं रहती । तात्पर्य
यह कि जाग्रत्
और स्वप्नकी वस्तुओंके
बिना भी हम रहते
हैं । इससे सिद्ध
यह हुआ कि वस्तुओंके
बिना भी हम सुखपूर्वक
रह सकते हैं अर्थात्
हमारा रहना वस्तु, अवस्था आदिके
आश्रित नहीं है
। इसलिये वस्तु, पदार्थ, व्यक्ति आदिके
द्वारा हम सुखी
होंगे और इनके
बिना हम दुःखी
होंगे‒यह बात
गलत सिद्ध हो गयी
। जाग्रत्में
भी अनेक पदार्थोंके
बिना हम रहते हैं, पर सुषुप्तिमें
तो सम्पूर्ण पदार्थोंके
बिना हम रहते हैं
और उससे हमें शक्ति
मिलती है । अच्छी
गहरी नींद आनेपर
स्वास्थ्य अच्छा
होता है और जगनेपर
व्यवहार अच्छा
होता है । नींदके
बिना मनुष्यका
जीना कठिन है ।
नींद लिये बिना
उसे चैन नहीं पडता
। इससे सिद्ध हुआ
कि सम्पूर्ण वस्तुओंके
अभावके बिना हम
रह नहीं सकते ।
वस्तुओंका अभाव
बहुत आवश्यक है
। अत: अनुभवके आधारपर
हमारी यह मान्यता
गलत सिद्ध हो गयी
कि धन, सम्पत्ति, कुटुम्ब
आदिके मिलनेसे
ही हम सुखी होंगे
और उनके बिना रह
नहीं सकेंगे ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒
‘तात्त्विक
प्रवचन’
पुस्तकसे
|