।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण द्वादशी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
वारुणीपर्वयोग प्रातः ६ बजेसे सूर्यास्ततक
सत्-असत्‌का विवेक


श्रोता‒संसारका सम्बन्ध नहीं है‒यह बात बुद्धितक तो समझमें आ गयीपर आगे साफ नहीं है !

स्वामीजी‒कोई बात नहीं ! बुद्धितक समझमें आ गयी तो भी अच्छा है । आप यह मान लो कि वास्तवमें बात ऐसी ही है । आपका बालकपन अभी है क्या नहीं है तो बालकपनका वियोग हो गया न बालकपनका वियोग हो गया तो अभी जो अवस्था हैउसका वियोग नहीं होगा क्या ? आगे जो अवस्था आयेगीउसका वियोग नहीं होगा क्या कोई भी अवस्था आयेकैसी ही परिस्थिति आयेउसका वियोग होगा ही‒इसमें कोई सन्देह नहीं है । परन्तु सबका वियोग होनेपर भी परमात्माका वियोग नहीं होगाक्योंकि परमात्मा सबमें परिपूर्ण है और सबसे अतीत है । जैसेयह आकाश कहाँ नहीं है ? जहाँ हम सब बैठे हैंवहाँ भी आकाश है और जहाँ हम सब नहीं हैंवहाँ भी आकाश है । ऐसे ही जहाँ हमलोग हैंवहाँ भी परमात्मा हैं और जहाँ हमलोग नहीं हैंवहाँ भी परमात्मा हैं । परमात्मा सबके भीतर,बाहरऊपरनीचेसर्वत्र परिपूर्ण हैं और सबसे अतीत भी हैं ।

ये सब शरीर पहले नहीं थेआगे नहीं रहेंगे और अब भी निरन्तर नहींमें ही जा रहे हैं । जैसे बालकपन नहीं रहाऐसे यह भी नहीं रहेगापर परमात्मा रहेंगे । बालकपन नहीं रहा तो क्या आप भी नहीं रहे ? अत: परमात्मा है और संसार नहीं है । परमात्मा है‒इसको मानो तो योग हो गया और संसार नहीं है‒इसको मानो तो योग हो गया । समताका नाम योग है‒‘समत्वं योग उच्यते’ (गीता २ । ४८) और दुःखरूप संसारके वियोगका नाम भी योग है‒‘तं विद्याद्ःदुखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्’ (गीता ६ । २३) । संसारका वियोग होनेपर समता ही रहेगीक्योंकि संसार विषम है और परमात्मा सम है‒समं सर्वेषु भूतेषु’ (गीता १३ । २७) । व्यक्ति अलग-अलग हैंपर आकाश अलग-अलग नहीं है प्रत्युत एक है । ऐसे ही वह परमात्मा एक है । वह सबमें है और सबसे अतीत भी है । संयोगमें भी वही है और वियोगमें भी वही है । पहले भी वही थापीछे भी वही रहेगा और अब भी वही है ।

संसार नहीं है और परमात्मा है‒ये दो बातें आप मान लें । यह जो संसार दीखता हैयह पहले नहीं थाआगे नहीं रहेगा और अब भी नहींमें जा रहा है । वह परमात्मा पहले भी थाआगे भी रहेगा और अब भी है । संसार नहीं है‒ऐसा कहो अथवा परमात्मा है‒ऐसा कहोएक ही बात है । इसमें क्या बाधा लगती है ?

श्रोता‒जो नहीं हैउसके लिये पाप कर देते हैं तो खाली कहना-सुनना हुआ !

स्वामीजी‒जो है उसको मुख्य मानो । कसौटी लगाकर उसको शिथिल मत करोप्रत्युत कसौटीको शिथिल करो । भूलको महत्त्व न देकर सही बातको महत्त्व दो । पाप निरन्तर नहीं रहता । जो निरन्तर नहीं रहताउसपर जोर मत दोप्रत्युत जो निरन्तर रहता है उसीपर जोर दो । आप स्वयं अनुभव करो कि निरन्तर कौन रहता है पाप निरन्तर रहता है या अपना होनापन (स्वरूप) निरन्तर रहता है जो निरन्तर रहता हैउसीपर दृढ़ रहो तो सब ठीक हो जायगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे